तुम पुरुष अहं के हो सुमेरु,
मैं नारी आन की प्रतिमा हूँ |
तुम पुरुष दंभ के परिचायक,
मैं सहज मान की गरिमा हूँ |
मैं परम-शक्ति, तुम परम-तत्व,
तुम व्यक्त-भाव मैं व्यक्त-शक्ति |
तुमको फिर रूप-दंभ कैसा,
तुम बद्ध-जीव मैं सदा मुक्त |
जिस माया में बांध जाते हो,
मैं ही वह माया-बंधन हूँ |
तुम जीव बने हरषाते हो,
मैं ही जीवन-स्पंदन हूँ |
तुम मुझे मान जब देते हो,
बन शक्ति-पराक्रम हरषाऊं |
तुम मेरी आन का मान रखो,
जीवन का अनुक्रम बन जाऊं |
तुम मेरे मान का मान धरो,
मैं पुरुष अहं पर इठलाऊँ |
तुम मेरी गरिमा पहचानो,
मैं सृष्टि-क्रम बनी हरषाऊं |
बन पूरक एक दूसरे के,
इक दूजे का सम्मान करें |
तुम मेरे मान की सीमा हो,
मैं पुरुष अहं की गरिमा हूँ ||
मैं नारी आन की प्रतिमा हूँ |
तुम पुरुष दंभ के परिचायक,
मैं सहज मान की गरिमा हूँ |
मैं परम-शक्ति, तुम परम-तत्व,
तुम व्यक्त-भाव मैं व्यक्त-शक्ति |
तुमको फिर रूप-दंभ कैसा,
तुम बद्ध-जीव मैं सदा मुक्त |
जिस माया में बांध जाते हो,
मैं ही वह माया-बंधन हूँ |
तुम जीव बने हरषाते हो,
मैं ही जीवन-स्पंदन हूँ |
तुम मुझे मान जब देते हो,
बन शक्ति-पराक्रम हरषाऊं |
तुम मेरी आन का मान रखो,
जीवन का अनुक्रम बन जाऊं |
तुम मेरे मान का मान धरो,
मैं पुरुष अहं पर इठलाऊँ |
तुम मेरी गरिमा पहचानो,
मैं सृष्टि-क्रम बनी हरषाऊं |
बन पूरक एक दूसरे के,
इक दूजे का सम्मान करें |
तुम मेरे मान की सीमा हो,
मैं पुरुष अहं की गरिमा हूँ ||
9 टिप्पणियां:
suNDER kAVITA ...
nARI kE MAN kA sAHI chITRAN..
http://yayavar420.blogspot.in/
तुम मेरे मान का मान धरो,
मैं पुरुष अहं पर इठलाऊँ |
तुम मेरी गरिमा पहचानो,
मैं सृष्टि-क्रम बनी हरषाऊं |
bahut hi sundar sandesh deti rachna......
धन्यवाद शिवम व् सुरेश जी...
सुन्दर चित्रण्।
वाह...
धन्यवाद वन्दना जी...व् रीना जी ..
तुम मेरे मान की सीमा हो,
मैं पुरुष अहं की गरिमा हूँ ||
sateek bat kahi hai .aabhar
धन्यवाद शिखा जी...
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