शुक्रवार, 29 जून 2012

क्या लिखूं कैसे लिखूं,... डा श्याम गुप्त ....

क्या लिखूं कैसे लिखूं,
अब कुछ लिखा जाता नहीं ;
बेखुदी मैं हम हैं डूबे,
कुछ ख्याल आता नहीं |

उनके ख्यालों की अतल-
गहराइयों में डूब कर ,
होश खो बैठे हैं हम,
अब होश से नाता नहीं |

उनका उठना बैठना,
चलना  मचलना उलझना,
बेरुखी  और वो रूखे अंदाज़ से,
लट  झटकना;
और  लिपट रहना -
मेरी यादों से अब जाता नहीं |

अब तो बस उस शोख के ,
दीदार का है इंतज़ार ;
उनकी इस तस्वीर से ,
अब दिल बहल पाता नहीं ||


सोमवार, 25 जून 2012

जबर्दस्ती करा दी गई एक लड़की की शादी

ओड़ीशा के भद्रक शहर की कल की ही घटना है | एक लड़की है आशा (नाम बदला हुआ), जिसकी माँ उसके पैदा होते ही स्वर्ग सिधार गई थी और उसके पिता ने दूसरी शादी कर ली थी | बहुत दिनों से उसकी शादी की बात चल रही थी | एक अच्छा रिश्ता आया पर वहाँ उसके पिता ने इसलिए शादी नहीं कराई क्योकि 40000 रुपये दहेज के तौर पे मांगे जा रहे थे | फिर एक और रिश्ता आया जिसमे दहेज की रकम 20000 रुपये थी | आशा की सौतेली माँ ने आशा को एक लड़के का फोटो दिखाया और उसे शादी के लिए राज कर लिया | कल एक मंदिर मे उसकी शादी तय थी | मंदिर के रजिस्टर मे हस्ताक्षर के लिए जब लड़का-लड़की दोनों गए तब दोनों ने पहली बार एक दूसरे को देखा | तभी अचानक आशा रोने लगी और रोते हुए वहाँ से हट गयी और कोने मे जाकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी | जब रिशतेदारों ने रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि उसकी सौतेली माँ ने किसी और लड़के का फोटो दिखाया था और उसके बारे मे भी गलत बात बताई थी | जो लड़का अभी शादिकारने आया उसके चचेरे भाई कि फोटो दिखाई गई थी और ये बताया गया था कि लड़का मोबाइल दुकान मे रेपइरिंग का काम करता है | पर जो लड़का अभी सामने था वो बहुत ज्यादा उम्रदराज और कुछ काम न करने वाला लड़का था | सबने आशा कि माँ से बात करनी चाही तो वो उल्टा वही पे आशा के बाल पकड़ के मारने लगी और ये कहने लगी कि तू झूठ बोल रही है, सब नाटक कर रही है | अन्य रिशतेदारों ने जब विरोध किया तो आशा कि सौतेली माअ ने कहा कि जो बोलेगा उसी को इसका ज़िम्मेदारी संभालना होगा | यह सुन के सभी लोग शांत हो गए और सौतेली माँ ने उसी लड़के से आखिरकार उसकी शादी करवा ही दी | इस तरह एक और बेबस लड़की के अरमानों का खून हो गया और ये हमारा सभ्य समाज सब देखता ही रह गया | क्या कभी इस तरह कि घटनाओं का अंत हो पाएगा?

एक बच्चे की चाहत पारिवारिक रिष्ते को अंसतुलित करती है

आज  हम सहेलिया का एक समारोह में मिलना हुआ मेरी एक सहेली को उदास देखकर मैने पूछा क्या हुआ रेखा  तु इतनी परेषान क्यो है मेरी सहेली ने कहा क्या बताउ मेरा पोता 6 साल का हो गया है लेकिन मेरी बहु दूसरी संतान के लिए ना कहती है कहती आज के युग मे एक की देखभाल अच्छी तरह कर ले तो ही बहुत है।इसके जबाब से मेरे मन में कई तर्क-वितर्क पैदा कर दीये।

आधुनिक युग में भौतिकवादिता और पाष्चात्यति संस्कृति के प्रभाव के कारण अधिकांष माता-पिता एक ही बच्चे की प्राथमिकता देते है उनका कहना है कि इससे उनकी परवरिष अच्छी होगी।आज पहले की तरह हम दो हमारे दो की मानसिकता के बजाय हम दो हमारा एक की होती जा रही है।यह तर्क दिया जाता हैकि आजकल उच्चस्तरीय जीवन की चाहत में ज्यादा बच्चों की परवरिष कर पाना मुष्किल है। इससे पारिवारिक जिम्मेदारी का बोझ भी कम होजाता है ,बच्चे को सभी सुख सुविधा आराम से दी जासकती है ।आजकल नौकरी -पेषा माता-पिता को जीवन में व्यस्ता अधिक होने से वे दूसरे बच्चे की जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते है।आज की प्रमुख समस्या अनियत्रित जनसंख्या ,सीमित रोजगार के साधन और बढती हुई मंहगाई के जमाने में एक बच्चे का लालन-पालन ही ठीक ढग से किया जा सकता है।आजकल संयुक्त परिवार का स्थान एकल परिवार ने ले लिया है जिसमें नौकरी -पेषा माता पिता एक से अधिक बच्चो की जिम्मेदारी उठाने में अपने को अक्षम पाते  है।लेकिन एक बच्चे की अवधारणा से हमारे पारिवारिक सामाजिक ढाॅचे पर कई दुषपरिणाम नजर आने लगे है जिस पर हमें विचार करना होगा।
ऽ एक बच्चे की अवधारणा से हमारे कई महत्वपूर्ण पारिवारिक रिष्ते खत्म होते जा रहे है जैसे एक लडका है तो उसके बच्चो के ना बुआ होगी ना अंकल ,एक लडकी है उसके बच्चो के ना मामा होगा ना मौसी।ये रिष्ते बच्चों के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।एक बच्चे की चाहत में कई रिष्तो से हमारी भावी पीढी अनभिज्ञ रहेगी।

ऽ बच्चों के सर्वागीण विकास के लिए भाई-भाई,बहन-बहन,बहन-भाई अर्थात् दो बच्चो का होना जरूरी है।

ऽ एक बच्चा होने से समाज में स्त्री पुरूष का अनुपात गडबडा जायेगा क्योंकि एक अधिंकाष माता-पिता एक बच्चे के रूप में लडके को प्राथमिकता देते है। इससे लडकियोें की संख्या घटेगी और भविष्य में लडके के लिए लडकी मिलना कठिन होजाएगा।

ऽ इससे बच्चों में असुरक्षा की भावना बढेगी क्योंकि अकेला बच्चा अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है।

ऽ इससे वंष आगे नहीं बढ पायेगा पारिवारिक और पारिवारिक संगठन घटता चला जायगा।

ऽ अकेला व्यक्ति अवसाद,डिप्रेषन तनाव का ज्यादा षिकार होता है।

ऽ जीवन के दुखद क्षणों में या मुसीबत के समय सहयोग,सहायता और सांत्वना देने वाला कोई नहीं मिलेगा।

ऽ अकेला बच्चा अंर्तमुखी स्वभाव का हो जायेगा और उसकी सोच का दायरा सीमित हो जायगा।

ऽ एक बच्चे का होना मतलब अन्य भाई बहन के साथ खिलौने पैसे या अन्य किसी वस्तु को साझेदारी नही होना है।इससे वह अपनी वस्तू को किसी के साथ जल्दी से साझा नहीं कर पायंेगा।

ऽ  अत्यघिक ध्यान व देखभाल के कारण एक बच्चे का बर्ताव हानिकारक हो सकता है ,वह जीवन की वास्तविक समस्याओं का सामना करने और उसे सहन करने में सक्षम नही हो सकते है।

ऽ एक बच्चा बडा होने पर घर मे किसी हमउम्र भाई-बहन के न होने से और प्रत्येक पल माता-पिता की भागीदारी से उब जाता है।उसके जीवन में नीरसता आजाती है।

ऽ  एक बच्चा होने से वह कई मानवीय गुणों से वंचित रह जायेगा।

                                    श्रीमति भुवनेष्वरी मालोत
                                       महादेव काॅलोनी
                                       बाॅसवाडा राज
 

शनिवार, 23 जून 2012

अपने बच्चो को आत्महत्या से कैसे बचाएं ?

इंसान के लिए अच्छा क्या है और बुरा क्या है ?
इसे इंसान खुद नहीं जानता . जब तक इंसान अपने पैदा करने वाले के हुक्म को नहीं मानता तब तक वह अच्छा इंसान नहीं बन सकता.
पैदा करने वाला क्या चाहता है ?
आज इसकी परवाह कम लोगों को है. इस धरती पर ज़िंदा रहने का हक़ ऐसे ही लोगों का है. धरती पर जीवन और नैतिकता इन से ही है. दूसरे लोग तो जब तक ज़िंदा रहते हैं अनैतिकता और अनाचार करते हैं और उनमें से बहुत से आत्महत्या करके मर जाते हैं. आज भारत में हर चौथे मिनट पर एक नागरिक आत्महत्या कर रहा है. अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका लांसेट का सर्वे कहता है कि भारत में युवाओं की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है आत्महत्या। जीवन का अंत करने वाले इन युवाओं की उम्र है 15 से 29 वर्ष है। आमतौर पर माना जाता है कि गरीबी, अशिक्षा और असफलता से जूझने वाले युवा ऐसे कदम उठाते हैं। ऐसे में इस सर्वे के परिणाम थोड़ा हैरान करने वाले हैं। इस शोध के मुताबिक उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में आत्महत्या करने वाले युवाओं की संख्या अधिक है। इतना ही नहीं देशभर में आत्महत्या से होने वाली कुल मौतों में से चालीस प्रतिशत केवल चार बड़े दक्षिणी राज्यों  में होती हैं । जबकि शिक्षा का प्रतिशत दक्षिण भारत में उत्तर भारत से कहीं ज़्यादा  है। वहाँ पहले से ही रोजगार के बेहतर मौक़े भी मौजूद हैं। इसके बावुजूद देश के इन हिस्सों में भी आए दिन ऐसे समाचार अखबारों में सुर्खियां बनते हैं । इनमें एक बड़ा प्रतिशत जीवन से हमेशा के लिए पराजित होने वाले ऐसे युवाओं का भी है, जो सफल भी हैं, शिक्षित भी और धन दौलत तो इस पीढ़ी ने उम्र से पहले ही बटोर लिया है। सफल असफल और धनी निर्धन सभी मर रहे हैं. आत्महत्या एक महामारी का रूप ले चुकी है.
आपका बच्चा कब आत्मह्त्या कर , कोई नहीं कह सकता.
आत्महत्या के रुझान को रोकना है , अपने बच्चों को सलामत रखना है तो उसे बचपन से ही सही सोच और ज़िन्दगी का सच्चा मकसद दीजिये . उस पैदा करने वाले मालिक ने अपनी वाणी में यही सब बताया है .
सबका मालिक एक.
उस मालिक का नाम अमृत है. जो आदमी अपनी ख़्वाहिश पर चलता है वह कब आत्महत्या कर ले , कुछ पता नहीं है लेकिन जो अपने पैदा करने वाले उस एक मालिक के दिखाए सीधे रास्ते पर चलता है. वह कभी आत्महत्या नहीं कर सकता क्योंकि उस मालिक ने आत्महत्या को अवैध घोषित कर दिया है.
इसी बात से धर्म की पहचान भी हो जाती है कि धर्म का सच्चा विधान वही है जिसमें आत्महत्या का प्रावधान न हो.
महापुरुष भी वही है जो जीवन की कठिनाइयों का सामना करके उन पर विजय पाकर दिखाए. जो आत्महत्या कर ले, वह महापुरुष नहीं हो सकता. ऐसे लोगों के नाम और काम का चर्चा अपने बच्चों के सामने भूलकर भी न करें वरना वह जानकारी उसके अवचेतन मन में बैठ जाएगी और मुसीबत पड़ने पर वह भी उनकी तरह आत्महत्या कर सकता है.
सच्चे महापुरुषों के मार्ग पर चलकर हम हरेक कठिनाई पर विजय पा सकते हैं.
आओ विजय की ओर
आओ कल्याण की ओर

शुक्रवार, 22 जून 2012

आश्रित कुल परिवार, चलाती कुशल स्त्रियाँ-

त्याग प्रेम बलिदान की, नारी सच प्रतिमूर्ति ।
दफनाती सारे सपन, सरल समस्या-पूर्ति ।


सरल समस्या-पूर्ति
, पाल पति-पुत्र-पुत्रियाँ ।
आश्रित कुल परिवार, चलाती कुशल स्त्रियाँ ।

 
निभा रही दायित्व, किन्तु अधिकार घटे हैं ।
  हरते जो अधिकार, पुरुष वे बड़े लटे हैं ।।

रविवार, 17 जून 2012

पश्चिम का अन्धानुकरण न करे भारतीय नारी


यमन देश के छात्र के प्रति यौन हिंसा करने के इल्ज़ाम में 5 अमेरिकी छात्राएं गिरफ़्तार

वाशिंगटन (एजेंसियां)। ऐरिज़ोना राज्य के एक कॉलिज में यमन का एक छात्र असाम अश-शरई पढ़ता है। उसके आवास में 5 लड़कियां दाखि़ल हुईं और अंदर से ताला लगाकर अपने कपड़े उतार कर असाम अश-शरई को पकड़ लिया। असाम ने उनकी मिन्नत समाजत की लेकिन वे उस पर यौन संबंध बनाने के लिए दबाव डालती रहीं। उन पर कोई असर न पड़ा और उनकी हरकतें बढ़ती गईं तो असाम ने कहा कि ‘मैं एक दीनदार मुसलमान हूं और इसलाम अपनी बीवी के अलावा किसी दूसरी औरत से नाजायज़ ताल्लुक़ात की इजाज़त नहीं देता।‘
उन पांचों लड़कियों पर इस बात का भी कोई असर नहीं पड़ा तो असाम अश-शरई ने खिड़की से कूदकर अपनी जान बचाई और पुलिस को इत्तिला दी। पुलिस ने पांचों लड़कियों को उसके आवास से गिरफ़्तार कर लिया है। उन लड़कियों ने इल्ज़ाम क़ुबूल करते हुए बताया कि उनकी नज़र में असाम साइकोलोजिकली टेंशन में था। हमने उसे कई बार कहा था कि वह उनके साथ अपनी मर्ज़ी से सेक्स करे लेकिन वह तैयार नहीं हुआ तो उन्हें इस तरह उसके आवास में घुसना पड़ा।
यह वाक़या एक ऐसी यूनिवर्सिटी में हुआ है जिसमें शिक्षा सत्र पूरा होने के बाद 5 हज़ार लड़कियां नंगे होकर मैराथन रेस में हिस्सा लेती हैं। उनकी कपड़ों की निगरानी यूनिवर्सिटी की तरफ़ से की जाती है। उनके कपड़ों को तौला गया तो आधा टन वज़्न हुआ।

यह ख़बर 15 मई 2012 को राष्ट्रीय सहारा उर्दू के पृ. 12 पर छपी।
इस ख़बर से इस्लाम और पश्चिमी दुनिया की सोच और किरदार एक साथ सामने आ जाते हैं। पश्चिमी दुनिया का नंगापन हिंदुस्तान में भी आम होता जा रहा है। नई तालीम दिलाने वाले मां-बाप अपनी औलाद के लिए ऊंचे ओहदे का ख़याल तो रखते हैं लेकिन उसके किरदार का क्या होगा ?
इसे वे भुला देते हैं।
यही वजह है कि अकेले बेंगलुरू में ही हर साल 2 हज़ार से ज़्यादा लोग ख़ुदकुशी कर रहे हैं।
नंगेपन और ख़ुदकुशी दोनों का इलाज क्या है ?
यह सोचना ज़रूरी है .
सलाह : भारतीय नारी पश्चिम का अन्धानुकरण न करे.

प्रेम : हमारे दौर का सबसे बड़ा संदेह


- प्रेम प्रकाश  
संबंधों के मनमाफिक निबाह को लेकर विकसित हो रही स्वच्छंद मानसिकता और पैरोकारी के ग्लोबल दौर में जिस एक चीज को लेकर सबसे ज्यादा संदेह और विरोध है, वह है प्रेम। इन दो विरोधाभासी स्थितियों को सामने रखकर ही मौजूदा दौर की देशकाल और रचना को समझा जा सकता है। हाल में अखबारों में ऑनर किलिंग के दो मामले आए। इनमें एक घटना बुलंदशहर और दूसरी मेरठ की है। ये मामले एक ही राज्य उत्तर प्रदेश के हैं पर ऐसी घटनाएं हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार या दिल्ली समेत देश के किसी भी सूबे में हो सकती हैं।
बुलंदशहर वाले मामले में प्रेमिका की आंखों के सामने उसकी ही चुन्नी से प्रेमी का सरेआम गला घोंट दिया गया। जान युवती की भी शायद ही बच पाती पर शुक्र है कि ग्रामीणों ने हत्यारों को घेर लिया। मेरठ में तो युवक की हत्या युवती के घर पर पीट-पीटकर कर दी गई। मामला कहीं न कहीं प्रेम प्रसंग का ही था। अभी 'सत्यमेव जयते' नाम से अभिनेता आमिर खान जो चर्चित टीवी शो पेश कर रहे हैं, उसके पिछले एपिसोड में भी इस मसले को उठाया गया था। कार्यक्रम में लोगों ने एक बार फिर देखा-समझा कि हमारा समय और समाज युवकों की अपनी मर्जी से शादी के फैसले के कितना खिलाफ है। यह विरोध कितना बर्बर हो सकता है, इसके लिए आज किसी आपवादिक मामले को याद करने की जरूरत भी नहीं। आए दिन ऐसा कोई न कोई मामला अखबारों की सुर्खी बनता है।
ऐसे में हमारी समाज रचना और दृष्टि को लेकर कुछ जरूरी सवाल खड़े होते हैं, जिनका सामना किसी और को नहीं बल्कि हमें ही करना है। पहला सवाल तो यही कि जिस पारिवारिक-सामाजिक प्रतिष्ठा के नाम पर नौजवान प्रेमियों पर आंखें तरेरी जाती हैं, उस प्रतिष्ठा की रूढ़ अवधारणा को टिकाए रखने वाले लोग कौन हैं? समझना यह भी होगा कि स्वीकार की विनम्रता की जगह विरोध की तालिबानी हिमाकत के पीछे कहीं पहचान का संकट तो नहीं है? क्योंकि यह संकट उकसावे की कार्रवाई से लेकर हिंसक वारदात तक को अंजाम देने की आपराधिक मानसिकता को गढ़ने वाला आज एक बड़ा कारण है।
मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक; हर रोज ऐसी करतूतें सामने आती हैं, जब लोगों की दिमागी शैतानी लोकप्रियता की भूख में शालीनता और सभ्यता की हर हद को तोड़ने के तपाकीपन दिखाने पर उतारू हो जा रही है। समाज वैज्ञानिक बताते हैं कि समाज का समरस और समन्वयी चरित्र जब से व्यक्तिवादी आग्रहों से विघटित होना शुरू हुआ है, परिवार और परंपरा की रूढ़ पैरोकारी का प्रतिक्रियावादी जोर भी बढ़ा है। इसका प्रकटीकरण पढ़े-लिखे समाज में जहां ज्यादा चालाक तरीके से होता है, वहीं अपढ़ और निचले सामाजिक तबकों में ज्यादा नंगेपन में दिखाई दे जाता है। वैसे प्रेम को लेकर तेजाबी नफरत दिखाने के पीछे यह अकेला कारण नहीं है। हां, एक विलक्षण और सामयिक केंद्रीय कारण जरूर है।  
http://puravia.blogspot.in/2012/06/blog-post.html

शनिवार, 16 जून 2012

तुम्हारी आराधना,,, डा श्याम गुप्त की कविता ...

प्रिये !
उस दिन जब तुम्हें
 पहली बार देखा ;                    
टूट गयी पल भर में,
मन की लक्ष्मण रेखा ।

हम तो थे प्यार में,
बड़े ही सौदाई ;
एक ही भ्रूभंग में
होगये धराशायी ।

कितने पल-छिन ,
कितने मुद्दों की साधना,
एक ही क्षण में होगई,
तुम्हारी आराधना ।

कि,  तेरे पलकों की छाँव में,
तभी से -जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न  की तरह ,
उस पल को -
आज तक याद करते हैं ।।

रविवार, 10 जून 2012

आधुनिक- लिंग पुराण...व....कन्या-भ्रूण ह्त्या... डा श्याम गुप्त...



                  

           विश्व की सबसे श्रेष्ठ व उन्नत भारतीय शास्त्र-परम्परा  ---पुराण साहित्य में मूलतः अवतारवाद की प्रतिष्ठा हैं निर्गुण निराकार की सत्ता को मानते हुए सगुण साकार की उपासना का प्रतिपादन  इन ग्रंथों का मूल विषय हैउनसे एक ही निष्कर्ष निकलता है कि आखिर मनुष्य और इस सृष्टि का आधार-सौंदर्य तथा इसकी मानवीय अर्थवत्ता में कही- -कहीं सद्गुणों की प्रतिष्ठा होना ही चाहिए उसका मूल उद्देश्य सद्भावना का विकास और सत्य की प्रतिष्ठा ही है | 

पौराणिक लिंग पुराण--भारत में शिव-लिंग पूजा की परंपरा आदिकाल से ही है। पर लिंग-पूजा की परंपरा सिर्फ भारत में ही नहीं है, बल्कि दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में आरंभ से ही इसका चलनयूनान में इस देवता को 'फल्लुस'तथा रोम में 'प्रियेपस' कहा जाता था'फल्लुस' शब्द  संस्कृत के 'फलेश' शब्द का ही अपभ्रंश है, जिसका प्रयोग शीघ्र फल देने वाले 'शिव' के लिए किया जाता है। मिस्र में 'ओसिरिस' , चीन में 'हुवेड् हिफुह' था। सीरिया तथा बेबीलोन में भी शिवलिंगों के होने का उल्लेख मिलता  है।


       लिंग' का सामान्य अर्थ 'चिन्ह' होता है। "प्रणव तस्य लिंग ” उस ब्रह्म का चिन्ह प्रणव , ओंकार है ...अतः  'लिंग' का अर्थ  'पहचान चिह्न' से है, जो अज्ञात तत्त्व का परिचय देता है। यह पुराण प्रधान प्रकृति को ही लिंग रूप मानता है |  
         प्रधानं प्रकृतिश्चैति यदाहुर्लिंगयुत्तमम्।
          गन्धवर्णरसैर्हीनं शब्द स्पर्शादिवर्जितम् ॥ (लिंग पुराण 1/2/2)
       अर्थात् प्रधान प्रकृति उत्तम लिंग कही गई है जो गन्ध, वर्ण, रस, शब्द और स्पर्श से तटस्थ या वर्जित है।  
       परन्तु इस आलेख में हम पौराणिक लिंग या लिंग पुराण नहीं अपितु लिंग की आधुनिक व्याख्या द्वारा स्त्री-पुरुष के अभेद पर  विस्तृत प्रकाश डालेंगे | जिसमें लिंग का तात्विक अर्थ --आत्मतत्व,आध्यात्मिक, जैविक, भौतिक व साहित्यक  व भाषायी  आधार पर व्याख्यायित किया जाएगा |
          लिंग का मूल अर्थ किसी भी वस्तु..जीव ,जड़, जंगम ...भाव आदि का चिन्ह या पहचान होता है |

  १- आध्यात्मिक-वैदिक आधार में - 

  -- ब्रह्म अलिंगी है| 
  ----उससे व्यक्त ईश्वर व माया भी अलिंगी हैं |
  ---जो ब्रह्मा , विष्णु, महेश व ...रमा, उमा, सावित्री ..के आविर्भाव के पश्चात ----विष्णु व रमा के संयोग से ....व विखंडन से असंख्य चिद्बीज  अर्थात “एकोहं बहुस्याम” के अनुसार विश्वकण बने जो समस्त सृष्टि के मूल कण थे | यह सब संकल्प सृष्टि ( या अलिंगी-अमैथुनीASEXUALविज्ञान ) सृष्टि थी | लिंग का कोइ अर्थ नहीं था |  

  --प्रथमबार लिंग-भिन्नता ...रूद्र-महेश्वर के अर्ध-नारीश्वर रूप की आविर्भाव से  हुई,   
  जो स्त्री व पुरुष के भागों में भाव-रूप से विभाजित होकर प्रत्येक जड़, जंगम व जीव के  चिद्बीज या विश्वकण में प्रविष्ट हुए | 

  ----मानव-सृष्टि में ब्रह्मा ने स्वयं को पुरुष व स्त्री रूप ----मनु-शतरूपा में विभाजित किया और लिंग –अर्थात पहचान की व्यवस्था स्थापित हुई | क्योंकि शम्भु -महेश्वर लिंगीय-प्रजनन प्रथा के जनक हैं अतः –इसे माहेश्वरी प्रजा व लिंग के चिन्ह को शिव का प्रतीक लिंग माना गया |

  २- जैविक-विज्ञान ( बायोलोजिकल ) आधार पर 

     सर्वप्रथम व्यक्त जीवन एक कोशीय बेक्टीरिया के रूप में आया जो अलिंगी ( एसेक्सुअल.. ) था ..समस्त जीवन का मूल आधार ----> जो एक कोशीय प्राणी प्रोटोजोआ ( व बनस्पति—प्रोटो-फाइट्स--यूरोगायरा आदि ) बना| ये सब विखंडन (फिजन) से प्रजनन  करते थे |
द्विलिंगी पुष्प

----- बहुकोशीय जीव  ...हाईड्रा आदि हुए जो विखंडन –संयोग ,बडिंग, स्पोरुलेशन से प्रजनन करते थे |---. वाल्वाक्स आदि पहले कन्जूगेशन( युग्मन ) फिर विखंडन से असंख्य प्राणी उत्पन्न करते थे |  इस समय सेक्स –भिन्नता अर्थात लिंग –पहचान नहीं थी |

----- पुनः द्विलिंगीय जीव( अर्धनारीश्वर –भाव ) ...केंचुआ, जोंक..या द्विलिंगी पुष्प वाले पौधे .. अदि के साथ लिंग-पहचान प्रारम्भ हुई | एक ही जीव में दोनों स्त्री-पुरुष लिंग होते थे |

------;तत्पश्चात एकलिंगी जीव( भिन्न-लिंगी) ...उन्नत प्राणी ..व वनस्पति आये जो ..स्त्री-पुरुष अलग अलग होते हैं ... मानव तक जिसमें अति उन्नत भाव—प्रेम स्नेह, संवेदना आदि उत्पन्न हुए| तथा विशिष्ट लिंग पहचान आरम्भ हुई |

    --वनस्पति में –लिंग-पहचान---- पुष्पों का  सुगंध, रंग, भडकीलापन...एकलिंगी-द्विलिंगी पुष्प ..पुरुषांग –स्टेमेन ..स्त्री अंग ...जायांग ...पराग-कण आदि|

-तत्व-भौतिकी  आधार पर लिंग... 

        मूल कणों को विविध लिंग रूप में -----ऋणात्मक (नारी रूप) इलेक्ट्रोन ...धनात्मक (पुरुष रूप ) पोजीत्रोन..  के आपस में क्रिया करने पर ही सृष्टि ...न्यूट्रोन..का निर्माण होता है| शक्ति रूप ऋणात्मक –इलेक्ट्रोन....मूल कण –प्रोटोन के चारों और चक्कर लगाता रहता है| रासायनिकी में ...लिंगानुसार ...ऋणात्मक आयन व धनात्मक आयन समस्त क्रियाओं के आधार होते हैं |
  
 -आयुर्वेद में भी .... लिंग -- निदान ...अर्थात रोग की पहचान, डायग्नोसिस को..... (अर्थात पहचान )...  कहते हैं |

 -साहित्य व भाषाई जगत में....लिंग.... कर्ता व क्रियाओं की पहचान को कहते हैं | प्रत्येक कर्ता या क्रिया ...स्त्रीलिंग, पुल्लिंग या नपुंसक लिंग होता है । 


 ६-आत्म-तत्व की लिंग-व्यवस्था ....
         आत्मा न नर है न नारी । वह एक दिव्य सत्ता भर है, समयानुसार, आवश्यकतानुसार वह तरह-तरह के रंग बिरंगे परिधान पहनती बदलती रहती है । यही लिंग व्यवस्था है संस्कृत में 'आत्मा' शब्द नपुंसक लिंग है, इसका कारण यही है-आत्मा वस्तुतः लिंगातीत है । वह न स्त्री है, और न पुरुष ।
     

         अब  प्रश्न उठता है कि आत्मा जब न स्त्री है,और न पुरुष तो फिर स्त्री या पुरुष के रूप में जन्म लेने का आधार क्या है?
 

         इस अन्तर का आधार जीव की स्वयं की अपने प्रति मान्यताएँ हैं जीव चेतना में भीतर से जैसी मान्यता दृड होजाती है वही अन्तःकरण में स्थिर होजाती है |  अन्तःकरण के मुख्य अंग-- मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार में अहंकार  वह अस्मिता-भाव है जिसके सहारे व्यक्ति-सत्ता का समष्टि-सत्ता से पार्थक्य टिका है ।  इसी अहं-भाव में जो मान्यताएँ अंकित-संचित हो जाती हैं वे ही व्यक्ति की विशेषताओं का आधार बनती हैं। आधुनिक मनोवैज्ञानिक शब्दावली में अहंकार को अचेतन की अति गहन पर्त कह सकते हैं । इन विशेषताओं में लिंग-निर्धारण भी सम्मिलित है । जीवात्मा में जैसी इच्छा उमड़ेगी जैसी मान्यताएँ जड़ जमा लेंगी, वैसा  जीवात्मा का वही लिंग बन जाता है|  
         पुराणों में इस प्रकार के अगणित उदाहरण भरे पड़े हैं जिनमें व्यक्तियों ने अपने संकल्प बल एवं साधना उपक्रम के द्वारा लिंग परिवर्तन में सफलता प्राप्त की है--यथा ..अम्बा की शिखंडी वेश ...देव-गुरु बृहस्पति का स्त्री-वेश आदि .. 

        
            अतः  लिंग के आधार पर नर-नारी, कन्या-पुत्र का विभेद  क्यों ?

-- यह सर्वथा अर्थहीन है...      

    ----प्रत्येक मनुष्य के भीतर उभयलिंगों का अस्तित्व विद्यमान रहता है । नारी के भीतर एक नर सत्ता भी होती हैं,  इसी प्रकार हर नर के भीतर नारी की सूक्ष्म सत्ता विद्यमान होती है, इसे ऐनिमेसिस  कहते हैं । प्रजनन अगों के गह्वर में विपरीत-लिंग का अस्तित्व भी होता है । नारी के स्तन विकसित रहते हैं, परन्तु नर में भी उनका अस्तित्व होता है ।

    अतः यह आवरण सामयिक है  आत्मा का कोई लिंग नहीं होता । एक ही जीवात्मा अपने संस्कारों और इच्छा के अनुसार पुरुष या नारी, किसी भी रूप में वैसी ही कुशलता के जीवन जी सकता है । नर नारी के भेद, प्रवृत्तियों की प्रधानता के परिणामस्वरूप शरीर मन में हुए परिवर्तनों में भेंद हैं । उनमें से कोई भी रूप श्रेष्ठ या निष्कृष्ट नहीं, अपने व्यक्तित्व यानी गुण क्षमताओं और विशेषताओं के आधार पर ही कोई व्यक्ति उत्कृष्ट या निष्कृष्ट कहा जा सकता है,लिंग के आधार पर नहीं । 

 ------अतः कन्या-भ्रूण ह्त्या  पूर्णतः अतात्विक, अतार्किक, अवैज्ञानिक, अधार्मिक व  
असामाजिक, अमानवीय कर्म है एवं राष्ट्रीय अपराध |



                  ---- चित्र गूगल साभार ..
























      'र 




        

शुक्रवार, 1 जून 2012

डा श्याम गुप्त का गीत .....मधु कल्पना हो....

तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो |
तुम सवालों से सजी नव अल्पना हो ||

रंग तुम हो तूलिका के
काव्य का  हर अंग हो |
काव्य-स्फुरणा से तू,
मन में उठी तरंग हो |

तुम रचयिता मन की,
सुन्दर औ सुखद सी प्रेरणा |
तुम हो रचना धर्मिता ,
रस भाव की उत्प्रेरणा |

काव्य भावों से भरे ,शुचि-
ज्ञान  की तुम व्यंज़ना |
मन बसी सुख-स्वप्न सी ,
भावुक क्षणों की संजना |

तुम चलो तो चल् पड़े संसार का क्रम |
 तुम रुको थम जाय सारा विश्व-उपक्रम |

तुम सवालों से सजी मन-अल्पना हो |
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो ||

जलज-दल पलकें उठालो ,
नित  नवीन विहान हो |
तुम अगर पलकें झुकालो,
दिवस का अवसान हो |

तुम सृजन की भावना ,
इस मन की अर्चन वन्दना |
तुम ही मेरा काव्य-सुर हो,
तृषित मन की रंजना |

तुम  ज़रा सा मुस्कुरालो,
मुस्कुराए  ये   जहां  |
तुम ज़रा सा गुनागुनालो ,
खिलखिलाए आसमां |

तुम बनालो मीत तो खिल जाय तन मन |
तुम छिटक दो हाथ तो हो विश्व अनमन |

तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो |
तुम सवालों से सजी , नव अल्पना हो ||