प्रिये !
उस दिन जब तुम्हें
पहली बार देखा ;
टूट गयी पल भर में,
मन की लक्ष्मण रेखा ।
हम तो थे प्यार में,
बड़े ही सौदाई ;
एक ही भ्रूभंग में
होगये धराशायी ।
कितने पल-छिन ,
कितने मुद्दों की साधना,
एक ही क्षण में होगई,
तुम्हारी आराधना ।
कि, तेरे पलकों की छाँव में,
तभी से -जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह ,
उस पल को -
आज तक याद करते हैं ।।
उस दिन जब तुम्हें
पहली बार देखा ;
टूट गयी पल भर में,
मन की लक्ष्मण रेखा ।
हम तो थे प्यार में,
बड़े ही सौदाई ;
एक ही भ्रूभंग में
होगये धराशायी ।
कितने पल-छिन ,
कितने मुद्दों की साधना,
एक ही क्षण में होगई,
तुम्हारी आराधना ।
कि, तेरे पलकों की छाँव में,
तभी से -जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह ,
उस पल को -
आज तक याद करते हैं ।।
3 टिप्पणियां:
लाजवाब ....बहुत खूब
बहुत भाव पूर्ण कोमल अभिव्यक्ति
धन्यवाद अयोध्या जी व डिमरी जी...
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