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शुक्रवार, 29 जून 2012

क्या लिखूं कैसे लिखूं,... डा श्याम गुप्त ....

क्या लिखूं कैसे लिखूं,
अब कुछ लिखा जाता नहीं ;
बेखुदी मैं हम हैं डूबे,
कुछ ख्याल आता नहीं |

उनके ख्यालों की अतल-
गहराइयों में डूब कर ,
होश खो बैठे हैं हम,
अब होश से नाता नहीं |

उनका उठना बैठना,
चलना  मचलना उलझना,
बेरुखी  और वो रूखे अंदाज़ से,
लट  झटकना;
और  लिपट रहना -
मेरी यादों से अब जाता नहीं |

अब तो बस उस शोख के ,
दीदार का है इंतज़ार ;
उनकी इस तस्वीर से ,
अब दिल बहल पाता नहीं ||