
तुम सवालों से सजी नव अल्पना हो ||
रंग तुम हो तूलिका के
काव्य का हर अंग हो |
काव्य-स्फुरणा से तू,
मन में उठी तरंग हो |
तुम रचयिता मन की,
सुन्दर औ सुखद सी प्रेरणा |
तुम हो रचना धर्मिता ,
रस भाव की उत्प्रेरणा |
काव्य भावों से भरे ,शुचि-
भावुक क्षणों की संजना |
तुम चलो तो चल् पड़े संसार का क्रम |
तुम रुको थम जाय सारा विश्व-उपक्रम |
तुम सवालों से सजी मन-अल्पना हो |
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो ||
जलज-दल पलकें उठालो ,
नित नवीन विहान हो |
तुम अगर पलकें झुकालो,

तुम सृजन की भावना ,
इस मन की अर्चन वन्दना |
तुम ही मेरा काव्य-सुर हो,
तृषित मन की रंजना |
तुम ज़रा सा मुस्कुरालो,
मुस्कुराए ये जहां |
तुम ज़रा सा गुनागुनालो ,
खिलखिलाए आसमां |
तुम छिटक दो हाथ तो हो विश्व अनमन |
तुम ख्यालों की मेरी मधु कल्पना हो |
तुम सवालों से सजी , नव अल्पना हो ||