पहनावे की ले आड़ ...अपना पल्ला झाड़ !
स्त्री के पहनावे से अधिक यदि पुरुष के आचरण पर अधिक ध्यान दिया जाये तो स्त्री के विरूद्ध अपराध में कमी आने की ज्यादा सम्भावना है .यदि स्त्री का पहनावा ही हर स्त्री विरूद्ध अपराध हेतु जिम्मेदार है तो द्वापर में द्रौपदी का चीर-हरण न होता .इंद्र द्वारा अहिल्या का बलात्कार न होता .वस्त्र एक सीमा तक ही किसी को अपराध करने के लिए उकसा सकते हैं पर हर पुरुष तो विश्वामित्र नहीं होता कि मेनका ने उन्हें मोह लिया और वे तपस्या विमुख हो गए . योगी से भोगी बन गए .मैं स्वयं स्त्री के शालीन पहनावे की कट्टर पक्षधर हूँ पर मैंने भी पिछले वर्ष उमंग सबरवाल द्वारा दिल्ली में आयोजित ''सलट वॉक '' का समर्थन किया था क्योंकि सम्पूर्ण व्यवस्था स्त्री के विरूद्ध अपराध हेतु स्त्री के वस्त्रों को ही जिम्मेदार ठहराकर अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेती है .गुवाहाटी में युवती के साथ दुर्व्यवहार की घटना साफ तौर पर कानून एवं सुरक्षा व्यवस्था की विफलता थी .प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेदारी प्रशासन पर है .जनता में ऐसी घटनाओं से यही सन्देश जाता है कि कानून व्यवस्था नाम की अब कोई चीज नहीं रही .इसे यदि स्त्री के वस्त्रों से जोड़ दिया जायेगा तो पहले से पंगु प्रशासन के लिए तो सोने पर सुहागा वाली बात हो जाएगी .किसी भी पहनावे में कोई बुराई नहीं यदि वह देश व् संस्कृति के हिसाब से पहना जाये .जींस भी शालीन तरीके से पहनी हुई एक युवती को स्मार्ट लुक देती है .
पुलिस की व् सेना की वर्दी में महिलाएं किस को आकर्षित नहीं कर लेती ?मिनी स्कर्ट में सानिया व् साइना के प्रति किसके ह्रदय में बुरे भाव आ सकते हैं ? वही साड़ी में भी अशालीन भाव वाली स्त्री को सराहा नहीं जा सकता .वस्त्रों पर बहस को विराम दिया जाना चाहिए क्योकि ये बहस तो वही खत्म हो जाती है जब स्कूली छात्राओं के साथ आते जाते समय छेड़कानी की जाती है .क्या स्कूली यूनिफ़ॉर्म भी भड़काऊ होती है ?सन २००३ में धनबाद में तेजाबी हमले की शिकार सोनाली घर के छज्जे पर सोयी हुई थी .उस समय पर क्या उसके वस्त्रों ने गुंडों को यह अपराध करने हेतु उकसाया था ? वास्तव में हर स्त्री विरूद्ध अपराध का कारण भिन्न ही होता है . ऐसे अपराधों में कई बार आहत पुरुष अहम् भूमिका निभाता है तो कई बार पीड़ित लड़की के परिवार से उसकी रंजिश .कभी लड़की द्वारा किये गए छल के कारण ऐसा होता है और कई बार प्रेमी कहलाने वाले पुरुष का मानसिक रूप से अस्वस्थ होना .इन घटनाओं पर अंकुश लगाने हेतु सबसे कारगर उपाय है सदाचरण व् हमारी कानून व्यवस्था का चुस्त-दुरुस्त होना .सड़कों पर अपराध रोकने में तो कानून व्यवस्था ही अहम् भूमिका निभा सकती है और घर के भीतर के स्त्री विरूद्ध अपराधों में सदाचरण .पहनावा एक बहुत छोटा मुद्दा है इस पर पारिवारिक स्तर पर ही हो तो बेहतर है क्योकि भारतीय परिवार ही अपने शिशुओं में संस्कार भरने का काम करते आये हैं .पहनावे को आधार बनाकर पुलिस प्रशासन यदि अपनी विफलता से पल्ला झाड़ने का प्रयास करेगा तो यह मेरे लिए स्वीकार करना असंभव ही है .
shikha kaushik
15 टिप्पणियां:
स्मार्ट लुक ---यही तो सब झगड़े की जड है....स्मार्ट अपने कार्यों से या सिर्फ कपड़ों से ....
----कपड़ों से , अर्ध-नग्न शरीर देखने से वासना का ज्वार मन में समाता-उठता है जो जहाँ भी मौक़ा मिलेगा वहाँ फटता है .... आवश्यक नहीं आप जहां कहें वहीं उसका असर हो...
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (28-07-2012) के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
चर्चा मंच सजा दिया, देख लीजिए आप।
टिप्पणियों से किसी को, देना मत सन्ताप।।
मित्रभाव से सभी को, देना सही सुझाव।
शिष्ट आचरण से सदा, अंकित करना भाव।।
कुछ भी कहें , लेकिन आज के आकडे देखने से तो यही लगता है की कहीं न कहीं पहनावा भी इसके लिए जिम्मेदार है , वरना अभी २,४ दिन पहले की घटना के मद्देनजर गाँव की औरतें और लड़कियां ऐसे ही घर घर से लड़कियों की जींस की पैंट इकठ्ठी करके न जलाती.
ek ek shabd satyta byan kar raha hai .sarthak post aabhar
डॉ श्याम गुप्त को एनाटोमी से ऊपर उठके सोचना चाहिए यदि पहरावा ही सारे यौन अपराध की बुनियाद होता तो फिर अमरीका के लास वेगस में अपराध दर न्यूनतम नहीं होती .यहाँ तो एक इंद्र लोक रचा गया है सौन्दर्य का शिखर है यह नगर और यहाँ की रूपसियाँ जो ब्यूटी पेजेंट्स को मात करती दिखलाई देतीं हैं .अमरीका का अमरावती (इंद्र लोक ) है यह नगरी जहां अपराध इतर अमरीकी राज्यों से बहुत कम है यह बात में वहां कई दीं के प्रवास के बाद लिख रहा हूँ तहकीकात करने के बाद ..कृपया यहाँ भी पधारें -
कविता :पूडल ही पूडल
कविता :पूडल ही पूडल
डॉ .वागीश मेहता ,१२ १८ ,शब्दालोक ,गुडगाँव -१२२ ००१
जिधर देखिएगा ,है पूडल ही पूडल ,
इधर भी है पूडल ,उधर भी है पूडल .
(१)नहीं खेल आसाँ ,बनाया कंप्यूटर ,
यह सी .डी .में देखो ,नहीं कोई कमतर
फिर चाहे हो देसी ,या परदेसी पूडल
यह सोनी का पूडल ,वह गूगल का डूडल .
बिल्कुल सही कहा आपने! एक एक बात सही !
पहनावा ही हर जगह ऐसे अपराध की जड़ नहीं होता! कुछ हद तक ये सही है कि आज की पीढ़ी की लड़कियों का पहनावा 'भी' ध्यान खींचता है...मगर सवाल सिर्फ़ यही है...कि असली दरिन्दा तो जिसके भीतर छुपा बैठा है, वही ऐसे कुकर्म करेगा... वरना गावों में तो घूँघट में औरतें रहतीं हैं...फिर उनके साथ ऐसा बर्ताव क्यों ?
हमारे देश की क़ानून व्यवस्था को इसके लिए मज़बूत होना होगा और ऐसे घिनौने अपराध के लिए कड़ी से कड़ी सज़ा देने का प्रावधान रखना होगा...
बात बीमार मन की है... और सारे अपराध इस बिमारी का ही प्रतिफल हैं... फिर भी शालीनता सब जगह आवश्यक है....
बढ़िया चिंतन...
सादर.
वीरू भाई .हमारे यहाँ एक गाँव है जहां सब चोर हैं और चोरी को कोइ अपराध नहीं माना जाता...
--- लास-वेगास-जुए का नगर.. की क्या बात ..जहां जूआ व वैश्यावृत्ति , नंगे रहने को गलत ही नहीं माना जाता ..वह तो उनकी सभ्यता है ... उस का उदाहरण देना ही अनुचित है ...आंकड़े तो कम होंगे ही...
---यहाँ भी लास-वेगास खोल दीजिए ...नंगे रहना प्रारम्भ कर दीजिए ..आंकड़े कम हो जायेंगे...
अति हर चीज की बुरी होती है
हमें महसूस होता है कि सीमा
किसी चीज की फिर क्यों होती है
ये बात कपड़े पर भी लागू होती है
उतनी ही लागू ये आदमी की
सोच पर भी तो होती है !!
bahut hi accha lekha shikha ji sahmat hu aapki baat se ...
सत्य बचन सुशील जी .....अति सर्वत्र वर्ज्ययेत ..
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