सोमवार, 23 जुलाई 2012

हिसाब

हिसाब ना माँगा कभी
अपने गम का उनसे
पर हर बात का मेरी वो
मुझसे हिसाब माँगते रहे ।
जिन्दगी की उलझनें थीं
पता नही कम थी या ज्यादा
लिखती रही मैं उन्हें और वो
मुझसे किताब माँगते रहे ।

काश ऐसा होता जो कभी
बीता लम्हा लौट के आता
मैं उनकी चाहत और वो
मुझसे मुलाकात माँगते रहे ।

कुछ सवाल अधूरे  रह गये
जो मिल ना सके कभी
मैंने आज भी ढूंढे और वो
मुझसे जवाब माँगते रहे ।
- दीप्ति शर्मा

4 टिप्‍पणियां:

virendra sharma ने कहा…

ज़िन्दगी कब अपना पूरा हिसाब देती है ,सपनो की किताब देती है .बढ़िया रचना है आपकी बधाई . . कृपया यहाँ भी दस्तक देवें -
ram ram bhai
सोमवार, 23 जुलाई 2012
कैसे बचा जाए मधुमेह में नर्व डेमेज से

कैसे बचा जाए मधुमेह में नर्व डेमेज से

http://veerubhai1947.blogspot.de/

Shikha Kaushik ने कहा…

पुरुष और नारी के स्वाभाव में यही अंतर है .कविता द्वारा बहुत सरलता से आपने इसे प्रस्तुत किया है .आभार

virendra sharma ने कहा…

ram ram bhai
मंगलवार, 24 जुलाई 2012
सेहत से जुडी है हमारे सौंदर्य की नव्ज़

डा श्याम गुप्त ने कहा…

अच्छी कविता है..सही लिखा है ..परन्तु यक्ष-प्रश्न यह है कि..आखिर चाहत में गम, उलझनें व सवाल आये क्यों व कहाँ से ...कौन लाया, किसने आने दिए..