चल मन ....लौट चलें अपने गाँव .....!!
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम |
बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम |
बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम |
सेवा में हो शाम, नहीं सी. एल. ना इ. एल. |
जब केवल सिक लीव, जाय ना जीवन जीयल |
रविकर मइके जाय, पिए जो माँ की घुट्टी |
ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी ||
ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी ||
छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी-
भ्रूण जीवी स्वान
veerubhai at कबीरा खडा़ बाज़ार में
मुंडे डाक्टर मारता, गर्भ-स्थिति नव जात |
कुक्कुर को देवे खिला, छी छी छी हालात |
छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी |
मारो सौ सौ लात, भूत की छीन लंगोटी |
करिहै का कानून, अभी जब कातिल गुंडे |
रहम याचिका थाम, पाक ले छूटे मुंडे ||
कुक्कुर को देवे खिला, छी छी छी हालात |
छी छी छी हालात, काट के बोटी-बोटी |
मारो सौ सौ लात, भूत की छीन लंगोटी |
करिहै का कानून, अभी जब कातिल गुंडे |
रहम याचिका थाम, पाक ले छूटे मुंडे ||
2 टिप्पणियां:
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम |
बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम!
...छुट्टी?...वह क्या होती है जी?...एक स्त्री की दिनचर्या का सटिक उल्लेख!...आभार!
बहुत सुन्दर सटीक व्यंगात्मक दोहे रचे हैं ...बहुत बहुत बधाई
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