लघु कथा- ''माँ मैं इसलिए बच गया ''
गूगल से साभार |
सब्जी मंडी में अचानक रूपाली का चार वर्षीय बेटा अर्णव ज्यों ही उससे हाथ छुड़ाकर भागा तो रूपाली का सारा ध्यान अर्णव की ओर चला गया . अर्णव ने तेजी से भागकर एक पिल्ले को नाले में गिरने से बचा लिया .इसके बाद अर्णव रूपाली की ओर दूर से ही मुस्कुराता हुआ दौड़कर आने लगा कि तभी एक तेज़ रफ़्तार से आती बाईक को देखकर रूपाली सिहर उठी .अर्णव उसकी चपेट में आ ही जाता तभी एक युवक ने तेज़ी से आकर अर्णव को अपनी ओर खींच लिया और...एक हादसा होने से बच गया .रूपाली भागकर उस युवक के पास पहुंची और उसका शुक्रिया अदा किया फिर अर्णव को अपनी बांहों में भरकर रो पड़ी .अर्णव मासूमियत से माँ के आंसू पोछते हुए बोला -''माँ मैंने उस पिल्ले को बचाया था न नाले में गिरने से उसी तरह इस भईया ने मुझे उस बाईक से बचा लिया .मैं इसी लिए बच गया .वो देखो वो प्यारा सा पिल्ला कैसे पूंछ हिला रहा है !'' रूपाली ने रुधे गले से ''हाँ बेटा '' कहा और उसका हाथ पकड़कर सब्जी लेने के लिए दुकान की ओर चल दी .
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर कथा ।
संस्कार देने में सक्षम ।
bahut pyaari ek shiksha deti hui laghu kahani.
sunder katha..
बहुत सुंदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । । धन्यवाद ।
क्या बात है...सुन्दर..
’मिलता तुझको वही, सदा जो तू बोता है ।
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