शुक्रवार, 25 मई 2012

बाँह पकड़ कर सीधा करती, याद जो आता नाना होता-

चूल्हा-चौका कपट-कुपोषण, 
 मासिक धर्म निभाना होता ।
बीजारोपण दोषारोपण, 
अपना रक्त बहाना होता ।।

नियमित मासिक चक्र बना है, 
दर्द नारियों का आभूषण -
संतानों का पालन-पोषण, 
अपना दुग्ध पिलाना होता ।।

धीरज दया सहनशक्ती में, 
सदा जीतती हम तुमसे हैं -
जीवन हम सा पाते तो तुम , 
तेरा अता-पता ना होता  ।।

सदा भांजना, धौंस ज़माना, 
बेमतलब धमकाना होता ।
बाँह पकड़ कर सीधा करती-
याद जो आता नाना होता ।।

5 टिप्‍पणियां:

Aruna Kapoor ने कहा…

sahi shabd-chitra banaaya hai aapne!...aabhaar!

Onkar ने कहा…

sundar prastuti

Sanju ने कहा…

Very nice post.....
Aabhar!
Mere blog pr padhare.

Shikha Kaushik ने कहा…

sarthak post .aabhar

bhuneshwari malot ने कहा…

aabhar sunder rachna.