चादर डाल दी (एक सत्य कथा )
पड़ोस में गुमसुम लोगों का आने का तांता लगा था| तेरह दिन पहले ही उनका बड़ा बेटा केंसर की भेंट चढ़ चुका था अतः माहौल बहुत ग़मगीन था|कम उम्र होने के कारण कुछ समझ नहीं आ रहा था जिज्ञासा वश देखने चली गई |वहां देखा बाबा जी अपने छोटे बेटे के पैरों में पगड़ी रख कर रोते हुए कह रहे थे की घर की इज्जत घर में ही रहने दो ,और अन्दर उस छोटे बेटे की नव ब्याहता जो दो तीन महीने की गर्भवती थी सूनी आँखों से टक टकी लगाए छत की ओर देख रही थी|फिर थोड़ी देर बाद ही हवन होने लगा ओर पंडित ने मृत बेटे की पत्नी का हाथ छोटे बेटे के हाथ में देते हुए कुछ मन्त्र पढ़े ओर एक पीली चादर देवर से भाभी के ऊपर डलवा दी |बाहर सब फुसफुसा रहे थे की देवर ने चादर डाल दी |उस वक़्त मुझे कुछ समझ नहीं आया था आज सोचती हूँ की वो कैसी घर की इज्जत कैसा हवन जिसमे तीन जिंदगियाँ स्वाह हो गई ये कितनी क्रूर कुरीतियाँ हैं |
(आज भी हमारे देश के कितने गाँव में ये कुरीति जीवित है जहां स्त्रियों की खुशियाँ इज्जत के नाम पे भेंट चढ़ा दी जाती हैं )
17 टिप्पणियां:
इसका दूसरा पक्ष भी हो सकता है?
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार २२ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
bahut si baaten hain.
practically wahi sahi tha jo baba ji ne kiya.
samaj me chali aa rahi pramparayen aaj bhi vyakti ki drishti se nahi dekhti .achchhi prastuti .aabhar
is vishay par lambi bahas ho sakti hai . iske kai paksh hai !
is vishay par lambi bahas ho sakti hai . iske kai paksh hai !
मुकेश पाण्डेय जी आप सही कह रहे हैं की इस पर लम्बी बहस हो सकती है ,सबका अपना अपना द्रष्टिकोण हो सकता है ...लेकिन मैं बस इतना कहूँगी की जो रीतिरिवाज जिंदगियों में जबरदस्ती थोपे जाएँ और आगे चलकर उसके दुष्परिणाम सामने आयें ...वो ठीक नहीं हैं
सब अपना अपना तर्क खुल के दें प्लीज
Marmik kahani....
Paraspr jeevansaathi chunane ki swatantrata aaj bhi kahan hai? Samajik evam parivarik dabav bahut adhik rahta hai...
ऐसी कई कुरीतियाँ अभी भी इस तथाकथित शिक्षित समाज में विद्यमान हैं ,अफ़सोस ....
इसमें कोई दो राय नहीं की यह कुरीतियाँ ही हैं हमारे समाज की लेकिन इस बात के दो पहलू भी हो सकते है। इसलिए जहां तक मुझे लगता है इस विषय को लेकर सबका अपना-अपना मत एवं दृष्टिकोण हैं रही बात सही और गलत कि तो मुझे ऐसा लगता है कि इस बात का जवाब तब ही दिया जा सकता है जब या तो आप किसी ऐसे व्यक्ति को बहुत करीब से जानते हो और उसका अनुभव आपने बहुत करीब से देखा सुना या महसूस किया हो या फिर आप खुद भुक्त भोगी हों।
हरियाणवी लोक गीतों में इस परम्परा का महिमा मंडन और ब्याहता की दुविधा दोनों है .बेशक हमारे समाज में अब शादी कोई स्थिर इकाई नहीं रह गई है .पुनर -विवाह भी हो रहें हैं .विधवा अब कु -लक्षणा नहीं कही समझी जाती है .समाज बदल रहा है .सबसे बड़ी चीज़ है रजा .जहां रजा नहीं वहां क़यामत है ......कृपया यहाँ भी पधारें -
भ्रूण जीवी स्वान
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_22.html
ram ram bhai .कृपया यहाँ भी पधारें -
मंगलवार, 22 मई 2012
ये बोम्बे मेरी जान (भाग -5)
http://veerubhai1947.blogspot.in/
यह बोम्बे मेरी जान (चौथा भाग )http://veerubhai1947.blogspot.in/
कृपया यहाँ भी पधारें -
दमे में व्यायाम क्यों ?
दमे में व्यायाम क्यों ?
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_5948.html
---यह प्रथा तो पुरुष के भी विरुद्ध है... जो देवर शायद किसी और से प्रेम करता हो ...उसके साथ जबर्दस्ती अन्याय है....विधवा महिला के साथ तो कम अन्याय ? ही है...
--- इसके साथ ही प्रोपर्टी- उत्तराधिकार का मामला भी जुडा हुआ है..
--- यदि दोनों राजी हों तो यह उचित ही है....
shyaam gupta ji aapne bilkul sahi samjha is jabardasti ke fensle se kitni jindgiyan prabhaavit hoti hain aur aage chalkar aur dushparinaam saamne aate hain.jaisa ki property ka mudda bhi
समाज मे यह सुविधा दी है ।यह प्रगतीशीलता की निशानी है ।सोचो हमारे पूर्वज कितने दूर दर्शी थे ।
समाज मे यह सुविधा दी है ।यह प्रगतीशीलता की निशानी है ।सोचो हमारे पूर्वज कितने दूर दर्शी थे ।
एक देवर से अच्छा भाभी के लिए दूसरा पति कौन साबित हो सकता है। बशर्ते भाभी उसे शादी से पहले देवर ही मानती हो बेटा नही।
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