भोर कहाँ इस मधुर रात का,
छोर कहाँ तेरी बातों का।
बने नहीं व्यबधान समय गति,
रुके न क्रम तेरी बातों का।
जैसे बहती सरिता जल की,
अविरल धारा कल-कल स्वर में ।
मंद मंद वीणा-धुन स्वर या ,
उतरें मन के गुह्य अंतर में ।
तेरी स्वर वीणा गुंजन से,
ह्रदय-तंत्र झंकृत है प्रियतम ।
बनी रहे यह रात सुहानी ,
बने नया क्रम जज्वातों का ।
सृष्टि औ लय के अगणित क्रम सी,
रात सुहागन बने सनातन ।
ये कोकिल स्वर-बैन तुम्हारे,
जग-वीणा के स्वर बन जाएँ ।
तेरी बातें अनहद स्वर सी ,
इस अंतस के अर्णव में प्रिय ।
झंकृत हों बन आदि-नाद धुन,
नवल सृष्टि के स्वर सज जाएँ ।
भला हुआ कब आदि-अंत प्रिय ,
प्रणय-मिलन के अनुनादों का ।
भोर न हो इस मधु-यामिनि का,
छोर न हो तेरी बातों का ।।
11 टिप्पणियां:
waah bahut sunder geet sringar ka yah roop shabdo ka samarpan aur sundarta kabile tarif hai ....behatarin post .......uttam abhivyakti hardik badhai .
sundar post hae.
शब्दों का मोती की तरह पिरोया है....बेहतरीन सरल कविता
भला हुआ कब आदि-अंत प्रिय ,
प्रणय-मिलन के अनुनादों का ।
भोर न हो इस मधु-यामिनि का,
छोर न हो तेरी बातों का ।।
vaah ,bahut hii behatarrn rachana
सृष्टि औ लय के अगणित क्रम सी,
रात सुहागन बने सनातन ।
ये कोकिल स्वर-बैन तुम्हारे,
जग-वीणा के स्वर बन जाएँ ।
आप का लेखन बेहद प्रभावशाली है बेहतरीन भावो से युक्त सुन्दर रचना.
सृष्टि औ लय के अगणित क्रम सी,
रात सुहागन बने सनातन ।
ये कोकिल स्वर-बैन तुम्हारे,
जग-वीणा के स्वर बन जाएँ ।
बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...
ati uttam...:)
धन्यवाद शशी पुरवार जी, सन्गीता जी एवं नन्दिता जी....
धन्यवाद....विनीत, धीरेन्द्र जी एवं विक्रम ...और बिन्दास जी...सरलता-- साहित्य में सटीक व सम्पूर्ण भाव-संप्रेषण के लिये आवश्यक है...आभार..
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