बुधवार, 4 अप्रैल 2012

कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे-

माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा....

Vishaal Charchchit at विशाल चर्चित



इक अति छोटे शब्द पर, बड़े बड़े विद्वान ।
युगों युगों से कर रहे, टीका व व्याख्यान ।

टीका व व्याख्यान,  सृष्टि को देती जीवन
न्योछावर मन प्राण, सँवारे जिसका बचपन 
हो जाता वो दूर,  सभी सिक्के हों खोटे ।
कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे ।।


3 टिप्‍पणियां:

Meenakshi Mishra Tiwari ने कहा…

कितनी वो मजबूर, कलेजा टोटे टोटे ।।

very true.....

dasarath ने कहा…

माँ, जहां ख़त्म हो जाता है अल्फाजों का हर दायरा....
बहुत बेहतरीन लिखा अपने हैं.

Shikha Kaushik ने कहा…

sateek v ekdam sach .aabhar