संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत
आँख खोलकर छींकना, सीख चुका इंसान ।
रहस्य सूक्ष्मतम खोज ले, उत्साहित विज्ञान ।
समय देश वातावरण, परिस्थिती निर्माण ।
जीर्ण-शीर्ण घट में भरे, सम्यकता नव-प्राण ।।
रहे कुशलता पूर्वक, छल ना पायें धूर्त ।
संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत ।
माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।
कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
संशोधन अधिकार है, माता करो सुधार ।
संशोधित होता जहाँ, संविधान सौ बार ।।
6 टिप्पणियां:
mashaallah, kya baat hai...!
आभार ||
माता की कर वन्दना, कन्या का सम्मान।
दुष्टों से रक्षा करो, कहता यही बिधान ।।
bilkul...sach kaha
sateek kaha hai aapne .aabhar
steek post |
कई महायुग बीतते, आया नया वितान ।
मनुस्मृति के कई छंद, रच फिर से विद्वान् ।|
---निश्चय ही सत्य बचन...
पर---दुबारा रची नहीं जा सकती हैं... शास्त्र-संहितायें हां--पुनर्लेखन व विवेचना अवश्य ही की जानी चाहिये...
’मनुस्मृति नवभाव युत, पुनः लिखें विद्वा” ।...कैसा रहे...
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