जीवमातृका पन्चकन्या तो बचा ||
जीवमातृका वन्दना, माता के सम पाल |
जीवमंदिरों को सुगढ़, करती सदा संभाल ||
शिव और जीवमातृका
धनदा नन्दा मंगला, मातु कुमारी रूप |
बिमला पद्मा वला सी, महिमा अमिट-अनूप ||
भ्रूण-हत्या माता करिए तो कृपा, सातों में से एक |
भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक ||
भ्रूण-हत्या कुन्ती तारा द्रौपदी, लेशमात्र न रंच |
आहिल्या-मन्दोदरी , मिटती कन्या-पन्च |
पन्च-कन्या सातों माता भी नहीं, बचा सकी गर पाँच |
सबकी महिमा पर पड़े, मातु दुर्धर्ष आँच |
9 टिप्पणियां:
सत्य को बेहद सुन्दर तरीके से कविता में पिरोया है ,
जिसे केवल पढना ही नही चाहिये, विचार भी करना होगा ।
नारी को नारायणी कह्ता रहा भारत देश
मगर रावण बन रहे जन, धर राम का वेष
ATYANT SUNDAR .
इस उत्कृष्ट रचना के लिए आपका विशेष आभार .हिन्दुस्तान की दुखती नस को छूआ है आपने .विषम औरत मर्द अनुपात हमें कहीं न पहुंचा पायेगा .बे -मौत मरेंगें हम लोग .
Bahut hi behtarin rachna
Behtarin rachna.
बहुत बढ़िया लगा! बेहद ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
http://seawave-babli.blogspot.com
बढ़िया प्रस्तुति ....समय मिले तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
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वाह !! क्या सुंदर दोहे हैं....सुंदर भाव...सुंदर विषय कथ्य...बधाई ..
धन्यवाद ||
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