सोमवार, 31 अक्तूबर 2011

स्त्री -पुरुष विमर्श गाथा --भाग ३ --स्त्री सत्तात्मक समाज .... डा श्याम गुप्त ...


                                                

   चित्र-१..मातृ-देवी ---                चित्र-२-मातृ-देवी व पुजारी -                                        चित्र-३--मातृ-देवी द्वारा पशु से युद्ध- 






                        इस प्रकार मानव द्वारा सहजीवन अपनाने के पश्चात अपनी प्रकृतिगत कार्य दक्षता, कार्य-लगन, तीक्ष्ण-बुद्धि, दूरदर्शिता व प्रत्युत्पन्नमति एवं संतान के प्रति स्वाभाविक अधिक लगाव के कारण स्त्री ने स्वयं ही श्रम विभाजन की आवश्यकतानुसार संतान-परिवार-समूह- कबीला -के साथ गुफा, बृक्ष-आवास या एक स्थान पर स्थित आवास पर ( घर पर )  ही रहकर ही समस्त आतंरिक व वाह्य प्रबंधन व्यवस्था स्वीकार की | इस प्रकार स्त्री-प्रवंधन समाज का गठन हुआ |  समाज मूलतः खाद्य-वस्तु एकत्रक (फ़ूड-गेदरर) था |  बाहर जाकर अन्न, फल, या शिकार एकत्र करना पुरुष का व उसका प्रबंधन, वितरण, संरक्षण व समस्त आतंरिक प्रबंधन स्त्री का कार्य हुआ| स्त्री-पुरुष सम्बन्ध स्वच्छंद थे | मूलतः समाज "लिव इन रिलेशन शिप " के रूप में था | स्त्रियाँ व पुरुष स्वच्छंद थे व अपनी इच्छानुसार किसी भी एक या अधिक पुरुष-स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते थे |
               ज्ञान बढ़ा, मानव गुफाओं से झोपडियों में आया | घुमंतू से स्थिर हुआ | वह प्रकृति के अंगों ...सूर्य, चन्द्र, वर्षा आदि की आश्चर्य, भय व श्रृद्धा वश आराधना तो करता था परन्तु ईश्वर का कोई स्थान न था ,न पुरुष देवताओं का | स्त्री सत्ता अधिक दृढ हुई और स्त्री प्रबंधन से स्त्री-सत्तात्मक समाज की स्थापना हुई |सभी पुरुष पूर्णतया स्त्री-सत्ता के अधीन होकर ही कार्य करते थे | पुरुष धीरे धीरे सिर्फ आज्ञापालक की भांति होता गया | संतान आदि .माताओं के सन्दर्भ से ही जाने व माने जाते थे ..., वन-देवी , आदि-माता, माँ , मातृका , सप्तमातृका , प्रकृति-देवी के साथ, वन देवी आदि विभिन्न देवियों की पूजा स्त्री सत्तात्मक समाज की ही देन है | उस काल में किसी पुरुष देवता की पूजा या मूर्ति -लिंग का उल्लेख नहीं मिलता | सबसे प्राचीन मूर्तियां  पुरुष देवताओं की न होकर, देवी के थान -(स्थान-सिर्फ चबूतरा बिना किसी मूर्ति के )  व मातृका, सप्तमातृका की ही मूर्तियां हैं |
                  इस प्रकार स्त्रियाँ शासक व पुरुष प्राय: सैनिक की भांति -सुरक्षा व कार्मिक व सलाहकार - हेतु उपयोग होने लगे...स्वच्छंदता व सामूहिकता के दुष्परिणाम आने लगे, स्त्रियाँ अत्यंत स्वच्छंद व स्वेच्छाचारी होने लगीं तो पुरुष द्वारा भी बल प्रयोग की घटनाएँ होने लगीं |  दोनों के आचरण से द्वंद्व बढ़ने लगे|  धीरे धीरे शक्ति- सलाहकार-सैनिक-सेनापति के रूप में पुरुष के हाथ में आती गयी | गर्भावस्था के दौरान अक्रिय रहने व संतति -पालन के दौरान शक्तिहीन होने के कारण पुरुष स्त्री का सुरक्षा -भाव बनने लगा | शारीरिक शक्ति व बल का बर्चस्व बढ़ा और समाज का प्रबंधन पुरुष के हाथ में चलागया| इस प्रकार पुरुष प्रवंधित समाज की स्थापना हुई | यद्यपि आवागमन आदि के संसाधन न  होने से सुदूर स्थानों से तारतम्य, आदान प्रदान  व आपसी संपर्क  होने की दुष्करता व असंभवता  के  फलस्वरूप  दोनों ही व्यवस्थाएं अपने अपने क्षेत्रों में साथ साथ चलती रहीं |
                                        चित्र--गूगल ..साभार......
                  
              ---क्रमश ...भाग ४ ...
                                                   

2 टिप्‍पणियां:

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

मै आपकी यह पोस्ट बिलम्ब से पढ पाया हूँ ।
सराहनीय है

आपकी पोस्ट सराहनीय है शुभकामनाऐं!!

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद शुक्ला जी ....आभार...