बहू से आशा -एक लघु कथा
[imagebazar.com]se sabhar
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''बहू .....बहू रानी कहाँ हो ....जरा यहाँ तो आओ !'' दिव्या ने ज्यों ही
अपनी सासू माँ की आवाज सुनी अपना फेवरेट सीरियल छोड़कर व् पास सोये अपने दो साल के बेटे '' राम '' के सिर पर स्नेह से हाथ फेरकर उनके कमरे की ओर चल दी .
....''आपने मुझे बुलाया मम्मी जी ?''दिव्या ने सासू माँ के कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा .''हाँ बहू ....लेटे-लेटे आज बड़ा मन कर आया कि 'श्री रामचरितमानस '' की कुछ चौपाइयां सुनूँ .आँखों से मजबूर न होती तो खुद ही पढ़ लेती .....तुम्हे परेशानी तो नहीं होगी ?'' ....''अभी आई मम्मी जी ...परेशानी कैसी ?दिव्या ने मुस्कुराते हुए कहा .सासू माँ हँसते हुए बोली ''....अरे कोई जबरदस्ती नहीं है ....अभी कुछ टी.वी. पर देख रही हो तो देखकर आ जाना .''...''नहीं मम्मी जी यदि आज अपनी इच्छाओं को आपकी आकांक्षाओं से ऊपर स्थान दूँगी तो कल को 'राम' की बहू से क्या आशा रखूंगी ?यह कहकर दिव्या टी.वी.को स्विच ऑफ करने हेतु अपने कमरे की ओर बढ़ चली .
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
बेहतरीन लघुकथा।
सास भी कभी बहू थी और बहू भी कभी सास बनेगी।
सन्देश परक कथा ,मनोहर सुन्दर .
प्रेरक व संदेशपरक लघुकथा।
सार्थक व प्रेरणा देने वाली लघुकथा के लिए आपको बधाई।
सार्थक और प्रेरणा दायक कथा ..जो बोओगे वही काटोगे ...
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