रविवार, 1 अप्रैल 2012

मां बाप Parents

मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत
मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत

लाज़िम है ये हम पर कि करें उन की इताअत
जो हुक्म दें हम को वो बजा लाएं उसी वक्त

हम को वो कभी डांट दें हम सर को झुका लें
नज़रें हों झुकी और चेहरे पे नदामत

खि़दमत में कमी उन की कभी होने न पाए
है दोनों जहां में यही मिफ़्ताहे सआदत

भूले से भी दिल उन का कभी दुखने न पाए
दिल उन का दुखाया तो समझ लो कि है आफ़त

मां बाप को रखोगे हमा वक़्त अगर ख़ुश
अल्लाह भी ख़ुश होगा, संवर जाएगी क़िस्मत

फ़ज़्लुर्रहमान महमूद शैख़
जामिया इस्लामिया सनाबल, नई दिल्ली

शब्दार्थः
पीरी-बुढ़ापा, नदामत-शर्मिंदगी, इताअत-आज्ञापालन, खि़दमत-सेवा,
मिफ़्ताहे सआदत-कल्याण की कुंजी, हमा वक्त-हर समय

राष्ट्रीय सहारा उर्दू दिनांक 1 अप्रैल 2012 उमंग पृ. 3

Source : http://pyarimaan.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

6 टिप्‍पणियां:

Ramakant Singh ने कहा…

मां बाप हैं अल्लाह की बख्शी हुई नेमत
मिल जाएं जो पीरी में तो मिल सकती है जन्नत
beautiful lines

Shikha Kaushik ने कहा…

sach likha hai aapne .aabhar

bhuneshwari malot ने कहा…

आभार बहुत अच्छी पंक्तिया है,कहा गया है कि जिस दिन तुम्हारे कारण माॅ-बाप की आॅखो से आॅसू आते है,याद रखना उस दिन तुम्हारे द्धारा किया सारा धरम आॅसुओं में बह जाता है।

bhuneshwari malot ने कहा…

आभार बहुत अच्छी पंक्तिया है,कहा गया है कि जिस दिन तुम्हारे कारण माॅ-बाप की आॅखो से आॅसू आते है,याद रखना उस दिन तुम्हारे द्धारा किया सारा धरम आॅसुओं में बह जाता है।

bhuneshwari malot ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
अंजना ने कहा…

बढिया....