अरविन्द मिश्र जी के ब्लाग पर एक टिप्पणी के रूप में प्रकाशित श्रीमती वन्दना गुप्ता जी की निम्न पंक्तियाँ साभार प्रस्तुत हैं
ना भाव हूँ ना विचार
ना कण ना क्षण
मै हूँ वो चिरन्तन सत्य
जो तुझमे हूँ आवेष्ठित
मै ही गोपी मै ही राधा
मै ही कृष्ण और मै ही परम सत्य
ना तुझसे जुदा हूँ और ना ही अलग
अस्तित्व वक्त की गर्द मे दबा
मोह माया के आडम्बर मे लिपटा
तुझमे समाया तेरा "मै"
तेरी आत्म चेतना
तेरे "मै" को जानती
सूक्ष्म रूप मे तुझमे रहती
फिर कोई कैसे जानेगा
जब तू ही ना मुझे जान पाया
स्वंय को ना पहचान पाया
क्यों दुनिया से करें उम्मीद
्करो प्रयास खुद ही
स्वंय को जानने की
आत्मतत्व को पहचानने की
जिस दिन निजत्व को जानेगा
अन्तरपट खुल जायेगा
हर रूप तुझमे समा जायेगा
गोपी कृष्ण राधा तू ही बन जायेगा
5 टिप्पणियां:
अति सुन्दर ,आभार.
bahut khoob.
bahut khoob.
शिखा जी मेरी रचना को यहाँ भारतीय नारी ब्लोग पर स्थान देने के लिये आपकी सादर आभारी हूँ।
बहुत सुंदर।
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