परिवर्तन
पहले किसी आदमी को
अकेली जाती लडकी दिख जाती थी
तो वो पूछ्ता
था-
कहाँ जाओगी बहन?
फिर एक समय ऐसा भी आया
जब वो पूछ्ने
लगा-
कहाँ जाओगी मेरी जान?
पर अब तो वो समय आ गया है
कि वो उससे कुछ नहीं पूछता
बस, बलपूर्वक
उसे साथ ले जाता है
और फिर कुछ ही देर में
उसके ज़िस्मों-दिमाग पर
अपनी क्रूरता के कुछ निशान
और
कुछ जख़्म
हमेशा-हमेशा
के लिये छोड़ जाता है
हमारे असभ्य से सभ्य होने की
बस यही कहानी है:
नारी आज़ भी अबला है
आज़ भी उसके आँचल में दूध
और आँखों में पानी है
(कविता-संग्रह "एक किरण उजाला" से)
2 टिप्पणियां:
क्या बात है सच्ची ...
बहुत सुंदर....अभिव्यक्ति...
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