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मंगलवार, 14 मई 2013
माँ
आंखें जब खुली होंगी मेरी पहली बार,
तुमने ही चूमा होगा मेरा माथा,
हाँ मेरी आँखों ने भी की होगी कोशिश,
तुम्हे देखने की,
और ख़ुशी के आंसू ढुलक गए होंगे चुपके से।
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समय बदला, मौसम भी,
गिरते पड़ते जब मेरे होठों से पहले बोल फूटे होंगे,
कह नहीं सकता क्या रहा होगा,
पर "माँ" ही रहा होगा वह शब्द।
और तुमने भर लिया होगा मुझे अपने अंक में ,
और कुछ आँसूं फिर झरे होंगे तुम्हारी आँखों से,
मेरी हर खुशियाँ, हर दुःख ,
कब अछूता रहा तुमसे,
बिना कहे ही पढ़ लेती हो मेरे भो. मेरी भंगिमाएं,
जैसे मैं मैं नहीं बल्कि तुम हो,
हाँ तुम माँ, तुम, केवल तुम,
आज बैठा हूँ इस बुद्धू बक्से के सामने,
मीलों दूर तुमसे,
निहारता हुआ तुम्हारी तस्वीर,
लेकिन तुम्हे तो मेरी तस्वीर की भी जरुरत नहीं,
बसा के रखा हुआ है तुमने मुझे,
अपनी हर धमनियों, हर शिराओं में,
बहता रहता हूँ ह्रदय की हर धड़कन के साथ तुममे,
कैसे कर लेती हो माँ तुम इतना सब,
कैसे जान लेती हों मेरे हर दुःख,
और मैं समझ भी नहीं पाता तुम्हारे ह्रदय का हाल,
बस एक आंसूं हर बार पोंछ के आता हूँ,
और तुम न जाने कितने आंसू बहा देती हो,
उस सड़क को देखते हुए,
जिनसे हर बार गुजर कर मैं तुम तक पहुँचता हूँ,
हर आता जाता अगर मुझसा दिखे
भाग के आ खड़ी होती हो द्वार पे,
और फिर कुछ आंसूं गिर जाते हैं मेरे इंतज़ार में,
हर ख़ुशी, हर ग़म पर मैं शामिल रहता हूँ तुममे,
और तुम जीती हो मुझमे,
कैसे माँ?
-नीरज
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर भावों को शब्दों में पिरोया है आपने .माँ के लिए इससे बेहतर कौन लिख सकताहै .आभार
ma pr jitna likhkho km hai ...
ye suraj ko diya dikhne jesi bat hai...or ma pr kuch bhi likhkho behtrin hi lagega.....aese hi ae behtrin likhkha gya hai...waaaaaaah
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति ..मन को छू गयी आभार . कायरता की ओर बढ़ रहा आदमी ..
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