जातिवाद का ढोंग -एक लघु कथा
''शटअप ...अर्णव ...तुम ऐसा कैसे कर सकते हो .तुम जानते हो न हम ब्राह्मण हैं और ...विभा कास्ट से चमार है बेटा ....समझा करो ..'' अर्णव असहमति में सिर हिलाता हुआ बोला -''...पर डैडी .....आप जातिवाद के खिलाफ हैं ...माँ भी तो खटीक जाति से हैं ...आपने क्यूँ की थी माँ से शादी ?'' अर्णव के पिताजी अर्णव के कंधें पर हाथ रखते हुए बोले -'' बेटा वो और परिस्थिति थी ....मैं गरीब परिवार का मामूली सा क्लर्क और तुम्हारी माँ डी.एम्. की एकलौती बेटी ...तब कहाँ जातिवाद आड़े आता है ....समझा करो !'' आँखों से ज्यादा बहस न करने की धमकी देते हुए अर्णव के पिताजी वहां से चल दिए और अर्णव सोचने लगा काश विभा भी किसी अमीर घर की एकलौती बेटी होती !!
शिखा कौशिक 'नूतन'
11 टिप्पणियां:
.पूर्णतया सहमत बिल्कुल सही कहा है आपने ..मन को छू गयी आपकी कहानी .आभार . छत्तीसगढ़ नक्सली हमला -एक तीर से कई निशाने
साथ ही जानिए संपत्ति के अधिकार का इतिहास संपत्ति का अधिकार -3महिलाओं के लिए अनोखी शुरुआत आज ही जुड़ेंWOMAN ABOUT MAN
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...!!
Very well said!
दोहरी सोच को दर्शाती एक सटीक लघुकथा
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (29-05-2013) के सभी के अपने अपने रंग रूमानियत के संग ......! चर्चा मंच अंक-1259 पर भी होगी!
सादर...!
aap sabhi ka hardik aabhar
सोचने को मजबूर करती लघु कहानी सुंदर प्रस्तुति !!
सोचने को मजबूर करती लघु कहानी सुंदर प्रस्तुति !!
हम धर्म एवं जातियों को मिश्रित कर उसका लड्डू बना कर खा जाएंगे, तो
हमें यह ज्ञात नहीं होगा कि हम आए कहाँ से थे । यदि हमें यह ज्ञात नहीं
होगा कि हम आए कहाँ से थे, तो यह भी ज्ञात नहीं होगा कि हमें जाना कहाँ है.....
सुंदर अभिव्यक्ति
अति-सुन्दर ...सटीक व समाज के ऐसे द्विमुखी व्यक्तित्वों को झकझोरती हुई ..कलई खोलती हुई...
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