मंगलवार, 14 मई 2013

माँ को सलाम -वन्देमातरम

 


     



क्यूँ  बेवजह हो कर रहे 'इस्लाम' को  बदनाम ?
हमको भी न करना मियां आज से सलाम !


तसलीम  माँ  को करना कैसे  है  गैर -वाजिब  ?
ये  सोचकर  तो  देखो बन्दों अरे नादानों !


मज़हब की आड़ लेकर बाँटों  न वतन अपना ,
नापाक इरादों  का  तूफ़ान  दो अब थाम !


माँ को सलाम करना है '' वन्देमातरम ''
इससे नहीं घट सकती 'अल्लाह' की कभी शान !


सिर झुकाना ये नहीं ये सिर्फ शुक्रिया ,
उस माँ का जिसने बख्शी सहूलियत तमाम !


जन्नत है जमी  अपनी  हिंदुस्तान  की  ,
क्यों इससे अदावत  का ले  रहे इल्ज़ाम ?


जिस गोद में खेले उसको जो दे इज्ज़त ,
अल्लाह की नज़र में बन्दा वही इक़बाल !

शिखा कौशिक 'नूतन'