गुरुवार, 16 मई 2013

सलाम माँ को करने से रोकता है हमें मजहब ?




  

आड़ इस्लाम की लेकर , देशभक्तों पे निशाना ,
मियां ये खेल है गन्दा ,पड़ेगा तुमको पछताना !

नहीं मिल्लत की ये खिदमत , इसे कहते हैं गद्दारी ,
बड़े शातिर हो मियां तुम , आग आता है लगाना !

सलाम माँ को करने से  रोकता है हमें मजहब ,
मियां मासूम मिल्लत को छोड़ दो ऐसे भटकाना !

मोहब्बत छीन  दिलों से , उनमे भर रहे नफरत ,
ढूंढ लेते हो मियां रोज़ , नया एक बहाना !

नाम लेकर तू खुदा का ये कैसी चल रहा चालें ?
तुझे मैं याद दिला दूं  , खुदा के घर भी है जाना !

तुम्हे पैगाम है मेरा , संभल जाओ मियां जल्दी ,
अमन का मुल्क है भारत , यहाँ दहशत न फैलाना !

न दिल नापाक रख अपना , हिदायत ये भी याद रख ,
मेरे भारत के घर-घर में न पाकिस्तान बनाना !

[ मिल्लत-मुस्लिम समाज ]

मेरा भारत ऐसा  है !
Photo: Yahi hai mera Bharat
RAHUL GANDHI WITH A VISION FOR COMMON PEOPLE

   शिखा कौशिक 'नूतन '







3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति.मन को छू गयी .आभार . ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर
इस भावना की कमी दिखाई देती है।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

वाह .....क्या कहन है .....काबिले तारीफ़ .... एक सुन्दर गैर रदीफ़ ग़ज़ल...