कहानी ---पर्यावरण दिवस (ड़ा श्याम गुप्त )
क्लब-हाउस के चारों ओर घूमते हुए मि.वर्मा, मि.सेन व मुकुलेश जी की मुलाक़ात सत्यप्रकाश जी से हुई |
‘चलिए सत्य जी,’ मि सेन बोले,’ आज पर्यावरण दिवस है, दोसौ पौधे आये हैं, ग्राउंड में लगवाने के लिए, चलेंगे |’
‘हाँ हाँ चलिए’, मि.वर्मा भी कहने लगे, ‘कुछ समाज सेवा भी होजाय |’
‘मुझे ब्लॉग पर पर्यावरण पर कहानी लिखनी है |’ सत्य जी बोले, ‘ वैसे क्या एक दिन पौधे लगाने से पर्यावरण सुधर जायगा ?’ उन्होंने प्रति-प्रश्न किया |
अरे, यह लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने हेतु प्रचार-प्रसार है | आज कई प्रोग्राम हैं | स्कोलों में बच्चे नाटिकाएं कर रहे हैं, नुक्कड़ नाटक भी होरहे हैं | स्थान-स्थान पर विचार-विमर्श व् विविध कार्यक्रम किये जा रहे हैं ... पानी बचाओ...पृथ्वी बचाओ ...पर्यावरण-मित्र बनें ...आदि| सभी प्रवुद्धजनों को अवश्य ही सहयोग देना चाहिए | अच्छे कार्य में |
पर मैं सोचता हूँ, सत्यप्रकाश जी कहने लगे, ‘कि आप-हम सबको ...ये पेड़ लगते हुए, पर्यावरण-दिवस मनते हुए ..देखते–सुनते हुए लगभग २०-३० वर्ष होगये | क्या आपके संज्ञान में कहीं कुछ लाभ हुआ है | पेड़ काटना/कटना रुका है, पानी की कमी पूरी हुई है कहीं, नदियों का प्रदूषण कम हुआ है, झीलें-तालाब लुप्त होने से बचे हैं, वातावरण शुद्ध हुआ है ? नहीं.... अपितु लगातार वन-पर्वत उजड रहे हैं, नदियों में कचरा बढ़ रहा है, पानी बोतलों में बिकने लगा है|’
‘तो क्या ये सारे प्रोग्राम व्यर्थ है, जागरूकता न लाई जाय ?’ वर्मा जी बोले |
भई, देखिये, सत्य जी कहने लगे ...आज ये बच्चे, युवा, बड़े, नेता, अफसर ...पेड़ लगाकर, नाटिका करके, भाषण देकर, उदघाटन करके घर जायेंगे | और घर जाकर सभी फ्लश में फाउंटेन में दिन भर पानी बहायेंगे, टूथब्रश करेंगे, विदेशी फल-सब्जियां खरीदेंगे, विदेशी क्वालिटी के बिना फल-फूल देने वाले सजावटी पौधे गमले में लगाकर घर सजायेंगे | प्लास्टिक के खिलौने, साइकल, ब्रांडेड जूते, पानी की बोतलों, रेकेट-शटल से मस्ती करेंगे | महिलायें कूड़ा फैंकने हेतु तरह तरह की प्लास्टिक की थैलियाँ खरीदेंगी | सरकार बड़ी-बड़ी मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगें, माल, सड़कें बनाने हेतु वन-पेड़ काटने की अनुमति देगी |
तो फिर, मुकुलेश जी असमंजस में धीरे-धीरे बोले, ‘व्हाट टू डू ‘.. आपकी राय में फिर क्या करना चाहिए?
‘कथनी की बजाय करनी |’ सत्य जी बोले |
कैसे, वर्माजी बोले |
‘शिफ्ट टू राईट’... जीवन-यापन के सहज भारतीय तौर-तरीकों पर लौटना | पर्यावरण संस्कृति का अंग बने और हर दिन ही पर्यावरण-दिवस हो |
क्या मतलब, वर्मा जी पूछने लगे ?
सत्य जी हंसते हुए कहने लगे, ‘ ब्रश छोडकर नीम/बबूल की दातुन का प्रयोग करें, फ्लश-सिस्टम समाप्त हो | वे पुनः हंसने लगे, बोले ...पुराने ‘लेंड-डिफीकेशन’ सिस्टम से पानी बचता है | ...प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल बंद, मल्टी स्टोरी आवास, माल सब समाप्त किये जायं | भूमि..धरती जैसी है वैसी ही प्राकृतिक तरीके से घर, गाँव, नगर बसने दिए जायं | सारे आधुनिक गेजेट्स जन-सामान्य, पब्लिक के प्रयोग के लिए बंद कर दिए जायं | तभी तो होगा पर्यावरण, संस्कृति का हिस्सा और हर दिन होगा पर्यावरण दिवस |’
क्या कहते हैं ! ‘ये कैसे होसकता है ? दुनिया की लाइफ ही पैरालाइज हो जायगी |’ तीनों एक साथ हैरानी से बोले| और यदि ये वैज्ञानिक प्रगति नहीं होती तो आप स्वयं लैपटाप पर ब्लॉग या कहानी कैसे लिख रहे होते ? तीनों हंसने लगे |
‘यदि नहीं हो सकता, तो फिर चिंता क्या, ये सब नाटक करने के क्या आवश्यकता, चलने दीजिए ऐसे ही, जैसा चल रहा है | कल की बजाय आज ही पेड़, पौधे, वनस्पति, पानी, नदियाँ समाप्त होजायं | कल की बजाय आज ही प्रलय आजाय, धरती नष्ट होजाय | जब सभी नष्ट होंगे तो किसी का क्या जायगा | कम से कम नयी धरती तो जल्द तैयार होगी |’ सत्य जी हंसते हुये कहते गए, ‘और यदि लेपटोप के लिए प्लास्टिक की उत्पत्ति होती ही नहीं तो ब्लॉग लिखने की आवश्यकता ही कहाँ पडती, यह नौबत ही क्यों आती|’
आपका मतलब है कि ये सारी विज्ञान-प्रगति, एडवांस्मेंट व्यर्थ है | सब इंजीनियर, वैज्ञानिक, विज्ञान, सारा देश मूर्ख है जो इतनी कसरत कर रहे हैं ? मुकुलेश जी में कहा |
नहीं, ऐसा नहीं है, सत्य जी बोले, ‘पर ..पहले गड्ढा खोदो फिर उसे भरो.. की नीति अपनाना व्यर्थ है | ये सारी प्रगति, विज्ञान, कला, साधन, भौतिक-उत्पादन, गेजेट्स आदि सभी केवल विशिष्ट कार्यों, परिस्थितियों, संस्थानों (उदाहरणार्थ ..राष्ट्रीय रक्षा-सुरक्षा ) के प्रयोगार्थ ही सीमित होनी चाहिए, सामान्य जन के भौतिक सुख-साधन हेतु कदापि नहीं | क्योंकि मानव की सुख-साधन लिप्सा का कोई अंत नहीं | यहीं से विनाश प्रारंभ होता है | ज़िंदगी होगई टूथब्रश व पेस्ट् के हज़ारों ब्रांड व तरीके प्रयोग करते परन्तु दांतों के रोग-रोगी-अस्पताल बढ़ते ही जारहे हैं...क्यों? अतः वैज्ञानिक प्रगति के अति-व्यक्तिवादी व घरेलू प्रयोग-उपयोग से प्रकृति व वातावरण का तथा स्वयं सृष्टि व मानव का विनाश प्रारम्भ होता है, यह जानें, समझें, मानें ..उस पर चलें |
क्लब-हाउस के चारों ओर घूमते हुए मि.वर्मा, मि.सेन व मुकुलेश जी की मुलाक़ात सत्यप्रकाश जी से हुई |
‘चलिए सत्य जी,’ मि सेन बोले,’ आज पर्यावरण दिवस है, दोसौ पौधे आये हैं, ग्राउंड में लगवाने के लिए, चलेंगे |’
‘हाँ हाँ चलिए’, मि.वर्मा भी कहने लगे, ‘कुछ समाज सेवा भी होजाय |’
‘मुझे ब्लॉग पर पर्यावरण पर कहानी लिखनी है |’ सत्य जी बोले, ‘ वैसे क्या एक दिन पौधे लगाने से पर्यावरण सुधर जायगा ?’ उन्होंने प्रति-प्रश्न किया |
अरे, यह लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने हेतु प्रचार-प्रसार है | आज कई प्रोग्राम हैं | स्कोलों में बच्चे नाटिकाएं कर रहे हैं, नुक्कड़ नाटक भी होरहे हैं | स्थान-स्थान पर विचार-विमर्श व् विविध कार्यक्रम किये जा रहे हैं ... पानी बचाओ...पृथ्वी बचाओ ...पर्यावरण-मित्र बनें ...आदि| सभी प्रवुद्धजनों को अवश्य ही सहयोग देना चाहिए | अच्छे कार्य में |
पर मैं सोचता हूँ, सत्यप्रकाश जी कहने लगे, ‘कि आप-हम सबको ...ये पेड़ लगते हुए, पर्यावरण-दिवस मनते हुए ..देखते–सुनते हुए लगभग २०-३० वर्ष होगये | क्या आपके संज्ञान में कहीं कुछ लाभ हुआ है | पेड़ काटना/कटना रुका है, पानी की कमी पूरी हुई है कहीं, नदियों का प्रदूषण कम हुआ है, झीलें-तालाब लुप्त होने से बचे हैं, वातावरण शुद्ध हुआ है ? नहीं.... अपितु लगातार वन-पर्वत उजड रहे हैं, नदियों में कचरा बढ़ रहा है, पानी बोतलों में बिकने लगा है|’
‘तो क्या ये सारे प्रोग्राम व्यर्थ है, जागरूकता न लाई जाय ?’ वर्मा जी बोले |
भई, देखिये, सत्य जी कहने लगे ...आज ये बच्चे, युवा, बड़े, नेता, अफसर ...पेड़ लगाकर, नाटिका करके, भाषण देकर, उदघाटन करके घर जायेंगे | और घर जाकर सभी फ्लश में फाउंटेन में दिन भर पानी बहायेंगे, टूथब्रश करेंगे, विदेशी फल-सब्जियां खरीदेंगे, विदेशी क्वालिटी के बिना फल-फूल देने वाले सजावटी पौधे गमले में लगाकर घर सजायेंगे | प्लास्टिक के खिलौने, साइकल, ब्रांडेड जूते, पानी की बोतलों, रेकेट-शटल से मस्ती करेंगे | महिलायें कूड़ा फैंकने हेतु तरह तरह की प्लास्टिक की थैलियाँ खरीदेंगी | सरकार बड़ी-बड़ी मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगें, माल, सड़कें बनाने हेतु वन-पेड़ काटने की अनुमति देगी |
तो फिर, मुकुलेश जी असमंजस में धीरे-धीरे बोले, ‘व्हाट टू डू ‘.. आपकी राय में फिर क्या करना चाहिए?
‘कथनी की बजाय करनी |’ सत्य जी बोले |
कैसे, वर्माजी बोले |
‘शिफ्ट टू राईट’... जीवन-यापन के सहज भारतीय तौर-तरीकों पर लौटना | पर्यावरण संस्कृति का अंग बने और हर दिन ही पर्यावरण-दिवस हो |
क्या मतलब, वर्मा जी पूछने लगे ?
सत्य जी हंसते हुए कहने लगे, ‘ ब्रश छोडकर नीम/बबूल की दातुन का प्रयोग करें, फ्लश-सिस्टम समाप्त हो | वे पुनः हंसने लगे, बोले ...पुराने ‘लेंड-डिफीकेशन’ सिस्टम से पानी बचता है | ...प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल बंद, मल्टी स्टोरी आवास, माल सब समाप्त किये जायं | भूमि..धरती जैसी है वैसी ही प्राकृतिक तरीके से घर, गाँव, नगर बसने दिए जायं | सारे आधुनिक गेजेट्स जन-सामान्य, पब्लिक के प्रयोग के लिए बंद कर दिए जायं | तभी तो होगा पर्यावरण, संस्कृति का हिस्सा और हर दिन होगा पर्यावरण दिवस |’
क्या कहते हैं ! ‘ये कैसे होसकता है ? दुनिया की लाइफ ही पैरालाइज हो जायगी |’ तीनों एक साथ हैरानी से बोले| और यदि ये वैज्ञानिक प्रगति नहीं होती तो आप स्वयं लैपटाप पर ब्लॉग या कहानी कैसे लिख रहे होते ? तीनों हंसने लगे |
‘यदि नहीं हो सकता, तो फिर चिंता क्या, ये सब नाटक करने के क्या आवश्यकता, चलने दीजिए ऐसे ही, जैसा चल रहा है | कल की बजाय आज ही पेड़, पौधे, वनस्पति, पानी, नदियाँ समाप्त होजायं | कल की बजाय आज ही प्रलय आजाय, धरती नष्ट होजाय | जब सभी नष्ट होंगे तो किसी का क्या जायगा | कम से कम नयी धरती तो जल्द तैयार होगी |’ सत्य जी हंसते हुये कहते गए, ‘और यदि लेपटोप के लिए प्लास्टिक की उत्पत्ति होती ही नहीं तो ब्लॉग लिखने की आवश्यकता ही कहाँ पडती, यह नौबत ही क्यों आती|’
आपका मतलब है कि ये सारी विज्ञान-प्रगति, एडवांस्मेंट व्यर्थ है | सब इंजीनियर, वैज्ञानिक, विज्ञान, सारा देश मूर्ख है जो इतनी कसरत कर रहे हैं ? मुकुलेश जी में कहा |
नहीं, ऐसा नहीं है, सत्य जी बोले, ‘पर ..पहले गड्ढा खोदो फिर उसे भरो.. की नीति अपनाना व्यर्थ है | ये सारी प्रगति, विज्ञान, कला, साधन, भौतिक-उत्पादन, गेजेट्स आदि सभी केवल विशिष्ट कार्यों, परिस्थितियों, संस्थानों (उदाहरणार्थ ..राष्ट्रीय रक्षा-सुरक्षा ) के प्रयोगार्थ ही सीमित होनी चाहिए, सामान्य जन के भौतिक सुख-साधन हेतु कदापि नहीं | क्योंकि मानव की सुख-साधन लिप्सा का कोई अंत नहीं | यहीं से विनाश प्रारंभ होता है | ज़िंदगी होगई टूथब्रश व पेस्ट् के हज़ारों ब्रांड व तरीके प्रयोग करते परन्तु दांतों के रोग-रोगी-अस्पताल बढ़ते ही जारहे हैं...क्यों? अतः वैज्ञानिक प्रगति के अति-व्यक्तिवादी व घरेलू प्रयोग-उपयोग से प्रकृति व वातावरण का तथा स्वयं सृष्टि व मानव का विनाश प्रारम्भ होता है, यह जानें, समझें, मानें ..उस पर चलें |
3 टिप्पणियां:
satya ji sahi kah rahe hain bilkul .desh aaj ped lagayega aur bad me un par koi dhyan nahi dega isliye pahle hame vahi sab karna chahiye jo satya ji ke madhyam se shyam gupt ji sujha rahe hain .sarthak kahani .aabhar
dhanyvaad shaalinee jee.....
सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .
एक छोटी पहल -मासिक हिंदी पत्रिका की योजना
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