शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2025

सोशल मीडिया की आजादी सम्भाल नहीं पा रही महिलाएं


 हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता."

   अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, नारी का सम्मान होता है वहां देवता निवास करते हैं. नारी की महत्ता विश्व संस्कृति में पुरुषों से ऊपर स्थान रखती है. ब्रिटेन की पहली महिला प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने कहा था कि-" यदि आप कुछ कहना चाहते हैं, तो एक आदमी से पूछें; यदि आप कुछ करना चाहते हैं, तो एक महिला से पूछें।" इससे उन्होंने साफ साफ यह संदेश दिया है कि पुरुष कार्य करने से ज्यादा बोलते हैं किन्तु महिला चुप रहकर ही कार्य को अंजाम तक पहुंचा देती है. भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री जिन्हें आयरन लेडी ऑफ इंडिया भी कहा जाता है श्रीमती इंदिरा गांधी जी ने भी कहा था कि - 

"महिलाएं केवल घर की देखभाल करने वाली नहीं बल्कि समाज की दिशा निर्धारित करने वाली होती हैं."

बच्चे को जन्म देने वाली, बच्चे को हर संकट से बचाने वाली, बच्चे को मौत से बचाने वाली, जीवन में आगे बढ़ाने वाली उसकी माँ ही होती है, यहां तक कि किसी सफल व्यक्ति के पीछे उसकी माँ या उसकी पत्नी अर्थात एक नारी का ही हाथ कहा जाता रहा है और ये सब सदियों के अनुभवों पर आधारित सत्य है. श्री रामचरित मानस के रचयिता कवि श्रेष्ठ तुलसीदास की भी यदि सफलता भक्ति काव्य में देखी जाए तो नेपथ्य में पत्नी रत्नावली ही खड़ी नजर आती हैं. जिनसे विवाह के पश्चात तुलसीदास जी उनके मायके जाने पर पत्नी प्रेम में इस कदर व्याकुल हुए कि पत्नी के मायके बहुत तेज तूफान में नदी में तैरकर पत्नी के घर पहुंचे और गहरी रात होने पर दीवार पर लटके सर्प को भी नहीं देखा और उसी पर चढ़कर पत्नी रत्नावली के कमरे में पहुंच गए, तब पति की यह दशा देख पत्नी रत्नावली उन्हें धिक्कारते हुए कहती हैं -

"लाज न आवत आपको, दौरे आयहु साथ,

धिक धिक ऐसे प्रेम को, कहा कहूँ मैं नाथ.........

और इस तरह धिक्कारते हुए रत्नावली तुलसीदास के प्रेम को प्रभु प्रेम की ओर मुड़ने के लिए संकेत दे देती हैं -

" अस्थि चर्म मय देह मम, तामै ऐसी प्रीति,

ऐसी जो श्री राम में, होत न तो भवभीती।"

अर्थात यह जो मेरा शरीर है पूरा चमड़े से बना हुआ है जो कि नश्वर है, यदि इस चमड़े से इतना मोह छोडकर राम नाम में अपना ध्यान लगाते तो आज भवसागर से पार हो जाते और भारत का इतिहास साक्षी है कि रत्नावली की इस धिक्कार ने ही पति तुलसीदास को श्रेष्ठ राम भक्त और कवि शिरोमणि बनाया. ये तो मात्र एक उदाहरण है महिला की श्रेष्ठता का, भारतीय और विश्व इतिहास में ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलेंगे, मिल भी रहे थे किंतु जब से यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया से कमाई का जरिया महिलाओं को मिला है,कुछ चंद महिलाओं ने पूरे नारी समाज के सम्मान को दांव पर लगा दिया है, नारी के चरित्र को हँसी मज़ाक का विषय बना दिया है.

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि - "महिलाओं की स्थिति देखकर ही किसी समाज की सभ्यता का मापदंड किया जा सकता है." और आज हम समाज में गिरते सभ्यता के मापदंड को देखकर कह सकते हैं कि महिलाओं की स्थिति गिरती जा रही है और यह दुख और क्षोभ की बात है कि इसका मुख्य कारण गिरती जा रही महिलाओं की नीयत और मानसिकता है. पहले तो समाज ही महिलाओं को सम्मानित दर्जा देने से बचता रहा है जिसे नारी शक्ति द्वारा अपनी श्रेष्ठता के बल पर हासिल किया गया किन्तु आज जबकि देश की सर्वोच्च न्याय संस्था माननीय उच्चतम न्यायालय स्त्री को उसका सम्मान दिलाने के लिए प्रयासरत है ऐसे में यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, प्लेटफॉर्म आदि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्वयं महिला अपनी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा रही है.

सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अमान्य विवाह में भरण पोषण के अधिकार को तो बरकरार रखा ही, साथ में बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्ण खंडपीठ द्वारा दिए गए निर्णय में नारी के प्रति प्रयोग किए गए शब्दों को स्त्री-द्वेषपूर्ण माना.न्यायालय ने टिप्पणी की, "भारत के संविधान की धारा 21 के तहत, प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का मौलिक अधिकार है। किसी महिला को "अवैध पत्नी" या "वफादार रखैल" कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इन शब्दों का उपयोग करके किसी महिला का वर्णन करना हमारे संविधान के लोकाचार और आदर्शों के विरुद्ध है। कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला का उल्लेख करते समय ऐसे विशेषणों का उपयोग नहीं कर सकता, जो अमान्य विवाह में पक्षकार है। दुर्भाग्य से, हम पाते हैं कि हाईकोर्ट की फुल बेंच के फैसले में ऐसी आपत्तिजनक भाषा का उपयोग किया गया। ऐसे शब्दों का प्रयोग स्त्री-द्वेषपूर्ण है। बॉम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच द्वारा बनाया गया कानून स्पष्ट रूप से सही नहीं है और यह भी कहा कि न्यायिक चर्चा में महिलाओं की गरिमा को बरकरार रखा जाना चाहिए. "

माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में महिलाओं के सम्मान को लेकर व्यक्त की गई यह चिंता महत्वपूर्ण है किन्तु अन्य कोई महिलाओं का सम्मान तब ही तो करेगा जब महिलाओं में स्वयं के लिए कोई आत्म सम्मान की भावना, इच्छा दिखाई देती हो, जो कि वर्तमान में कहीं भी नजर ही नहीं आती. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक आदि पर महिला व्लॉगस में से अधिकांश उसकी पैसे पैसे की भूख को ही दिखा रहे हैं. जिस नृत्य को देखने के लिए पहले लोग बदनाम गलियों की, थिएटर की, सिनेमाघरों की खाक छानते फिरते थे, अब वे सब मोबाइल पर इन्टरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन दिनों एक लड़की में व्यू बढ़ाने की हवस इस हद तक बढ गई कि बिस्तर पर बीमार पड़ी मां को छोड़कर लड़की माँ की देखभाल करने के बजाय कमरे के भीतर ठुमके लगाने लगी, रील बनाने लगी,और भी ज्यादा बेशर्मी तब हो गई जब व्यू बढ़ाने के लिए लड़की शमशान में ही डांस करने पहुंच गई. श्मशान घाट जहां पहुंचकर आदमी की भौतिक वादी प्रवृत्ति पर कुछ समय के लिए अंकुश ही लग जाता है और सामन्यतः हिन्दू स्त्री के लिए तो हिन्दू धर्म में यह स्थान लगभग अर्थी पर ही जाने के लिए मान्यताओं के अनुसार तय है, उस स्थान पर इस तरह नाच गाना करना चकित करता है. और डांस के लिए गाने का चयन, वह भी अस्थियों भरे कलश के आगे इससे भी अधिक चौंकाने वाला है कि लव तुझे लव गाना अस्थियों के सामने नाचना हिन्दू धर्म की मान्यताओं को धक्का पहुंचाने के लिए काफी है.पैसे कमाने के लिए लड़कियां, महिलाएं खुले आम नाच रही हैं पति को नचा रही हैं, जो नृत्य घर के लोगों के काफी मिन्नतें करने के बाद भी करने को नव वधू तैयार नहीं होती थी आज रील बनाने के लिए बैंड बाजे तक के सामने खुलेआम कर रही है. पैसे की भूख महिलाएं किस तरह मिटा रही हैं इसके कुछ दृश्य निम्न हैं -

*दृश्य-1-पत्नि को हक है पति का पैसा खर्च करने का.

*दृश्य-2-पत्नि पति की चोरी से उसका बटुआ निकाल रही है और उसमें से रुपये चुरा रही है.

*दृश्य-3-पति पत्नि को बाईक पर ससुराल लेकर जा रहा है तो वह बाईक पर पति से दूर बैठती है तो पति उसे पास बैठने के लिए कई बार पैसे देता है और वह पैसे लेकर मुस्कराती हुई पति से चिपककर बैठती है.

*दृश्य-4-बिस्तर पर बीमार मां पड़ी है और बेटी रील बना रही है ‘नमक इश्क का’ गाना बजाकर अस्पताल के कमरे में ठुमके लगा रही है. 

*दृश्य-5-शमशान घाट पर लड़की अस्थियों के कलश के सामने लव तुझे लव मैं करती …गाने पर डांस कर रही है. 

क्या दिखाना चाह रही हैं आज की ये आधुनिक महिलाएं? जिस गंदी सोच से माननीय उच्चतम न्यायालय तक उन्हें उबारना चाह रहा है उस दूषित सोच को ये मात्र कुछ हज़ार-लाख रुपये बटोरने के लिए अपने व्लॉगस के व्यू, लाइक, कमेन्ट बढ़ाने के लिए अपने ऊपर सहन कर रही हैं. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन कुछ महिलाओं के चेनल पर कमेन्ट सेक्शन को देखकर ऐसा लगने लगा है कि देश की सभ्यता संस्कृति का पतन काल अब शायद करीब है, कलियुग का काल शायद अब आने ही वाला है. आज रणवीर इलाहाबादिया के गंदे कमेंट को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर, समाज में, राजनीतिक हल्कों में हंगामा मचा हुआ है किन्तु भद्दे और गंदे कमेंट करने वाले केवल रणवीर इलाहाबादिया ही नहीं थे उनके साथ एपिसोड में एक लड़की भी बैठी थी जिसने भी वहां बेहद ही आपत्तिजनक शब्द बोले थे,अपूर्वा नाम की उस लड़की ने मां के प्राइवेट पार्ट पर ही बेहद गंदा और अश्लील कमेंट किया था,क्या कहा जाए इन नारी शक्तियों को? क्या इन्हें शक्ति की श्रेणी में रखा जाना चाहिए जो स्वयं महिला होकर महिला पर और उससे भी अधिक माँ पर इतना भद्दा बोल रही है और नारी के सबसे बड़े गहने शर्म की सारी सीमाएं ही लांघ रही हैं. 

       ऐसे में यू ट्यूब, इंस्टाग्राम, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को जल्द ही भारत में इन्हें लेकर नियम बनाने होंगे या फिर भारतीय सरकार को देश की संस्कृति को बिगड़ने से बचाने के लिए इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के चलने पर ही पूर्ण रूप से विराम लगाने होंगे.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)




रविवार, 9 फ़रवरी 2025

श्री राधा जी किसका अवतार थी? – डॉ. श्याम गुप्त

पुराण रहस्य----राधा रहस्य--

श्री राधा जी किसका अवतार थी? – डॉ. श्याम गुप्त

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भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कई पुराणों में लिखा है कि वह भगवान विष्णु के आठवें अवतार हैं। देवी राधा को देवी लक्ष्मी का अवतार बताया गया है। सुदामा और श्रीदामा को श्रीकृष्ण के गोलोक का साथी कहा गया है।

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लेकिन महाभागवत पुराण में श्रीकृष्ण और देवी राधा के अवतार की जो कथा है वह अद्भुत है। इसी कथा में सुदामा और श्रीदामा के पूर्वजन्म का भी रहस्य छुपा हुआ है। इस पुराण में बताया गया है कि देवीराधा लक्ष्मी की अवतार नहीं हैं। इस पुराण में देवी राधा और भगवान कृष्ण के प्रेम का रहस्य भी बताया गया है।

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शिव ने रची लीला राधा कृष्ण के अवतार की|

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एकबार भगवान शिव माता पार्वती के साथ कैलाश पर विहार कर रहे थे। तभी भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि मेरी सभी इच्छाएं पूरी हो चुकी हैं सिवाय एक इच्छा के। जिसे केवल तुम ही उसे पूर्ण कर सकती हो। माता पार्वती ने शिव से पूछा कि आपकी ऐसी कौन सी इच्छा है, आप बताइए, मैं उसे अवश्य पूर्ण करूंगी।

****** शिव ने माता पार्वती से कहा कि अगर तुम मुझ पर प्रसन्न हो तो एक बार तुम पृथ्वीलोक पर पुरुष के अवतार में जन्म लो और मैं तुम्हारी प्रियतम बनकर स्त्री के रूप में जन्म लूं। वहां तुम मेरे स्वामी और मैं तुम्हारी पत्नी बनकर रहूं, बस यही मेरी इच्छा है। माता पार्वती ने शिवजी की इस इच्छा को स्वीकृति दे दी।

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माता पार्वती ने कहा कि भद्रकाली का मेरा स्वरूप पृथ्वी पर कृष्ण का अवतार लेगा और आप अपने अंश से स्त्री का रूप धारण कर लीजिए।

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नौ रूपों में शिवजी हुए थे पृथ्वी पर अवतरित |

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शिवजी ने कहा कि मैं पृथ्वी पर नौ रूपों में प्रकट होउंगा। सबसे पहले वृषभानुपुत्री राधा के रूप में जन्म लूंगा। तब मैं तुम्हारे साथ प्राणप्रिय होकर प्रेम विहार करूंगा।

-----शिवजी ने माता पार्वती से कहा कि राधा के अतिरिक्त मैं कृष्ण की आठ पटरानियों के रूप में जन्म लूंगा। जिसमें रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवंती, कालिन्दी, मित्रबिन्दा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा मेरा ही अंश होंगी।

----इसके साथ ही जो मेरे भैरव रूप हैं वो भी पृथ्वी पर रमणीरूप धारणकर भूमि पर अवतरित होंगे। यह थे **श्रीदामा और सुदामा** |

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माता पार्वती ने कहा कि आपकी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मैं इन सभी के साथ ऐसा विहार करूंगी, जो इतिहास में आजतक किसी ने नहीं किया होगा। इसके साथ ही..

----- मेरी **जया और विजया** नाम की दोनो सखियां पुरुष रूप में पृथ्वी पर जन्म लेंगी, जो **श्रीदामा और सुदामा** होंगी।

----- ***भगवान विष्णु ***भी पृथ्वी पर मेरे बड़े भाई बनकर पृथ्वी पर जन्म लेंगे, जो **बलराम और अर्जुन** के नाम से प्रसिद्ध होंगे। जो हर कार्य में मेरा साथ देंगे।

माता पार्वती ने कहा कि इस तरह मैं आपके साथ पृथ्वी पर पुरुष रूप में विरह करके वापस कैलाश पर लौट आउंगी।

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इसके बाद ब्रह्माजी से आज्ञा लेकर मां काली के रूप में श्रीकृष्ण और राधारानी के रूप में भगवान शिव धरती पर अवतरित हुए।

----- महाभारत काल में पांडवों ने मां भगवती की पूजा की थी, तब मां भगवती ने कहा था कि मैंने श्रीकृष्ण रूप में धरती पर अवतार लिया है और कंस का वध किया है। कौरवों के अंत तक मैँ कृष्ण रूप में तुम्हारे साथ रहूंगी।






मंगलवार, 21 जनवरी 2025

भारतीय समझदार राजनेत्री इकरा चौधरी

 


      इकरा हसन आज भारतीय राजनीति में एक विख्यात और समझदार राजनेत्री के रूप में पहचान बना रही हैं. कैराना क्षेत्र से हसन परिवार की चौथी सांसद के रूप में तो इकरा हसन ने नाम कमाया ही है उससे कहीं ज्यादा नाम राजनीति में होते हुए, पढ़ी लिखी होते हुए भी सर से दुपट्टा न हटने देने वाली भारतीय नारी के संस्कारों को अपनाकर कमा रही हैं. 

     विकिपीडिया से प्राप्त जानकारी के अनुसार इकरा चौधरी एक भारतीय राजनीतिज्ञ तथा वर्तमान में कैराना लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद हैं। वे समाजवादी पार्टी दल की राजनेत्री हैं। इकरा लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा के पूर्व सदस्य दिवंगत चौधरी मुनव्वर हसन और लोकसभा की पूर्व सदस्य बेगम तबस्सुम हसन की बेटी हैं. उन्होंने नई दिल्ली के क्वीन मैरी स्कूल से अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की और दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज से कला स्नातक की डिग्री हासिल की। ​​इसके बाद उन्होंने 2020 में लंदन के SOAS विश्वविद्यालय से एमएससी अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और कानून की पढ़ाई पूरी की।इकरा एक राजनीतिक परिवार से आती हैं, उनके दादा अख्तर हसन, पिता मुनव्वर हसन और माँ तबस्सुम हसन कैराना से पूर्व सांसद हैं। उनके भाई नाहिद हसन तीन बार विधान सभा के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने 2016 में जिला पंचायत चुनाव लड़कर 5000 वोटों से हारकर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। उन्होंने अपने भाई नाहिद हसन के लिए चुनाव अभियान शुरू किया, जो कुछ मामलों में जेल में बंद थे। उन्होंने अभियान का नेतृत्व किया और अपने भाई को कैराना विधानसभा क्षेत्र से विजयी उम्मीदवार के रूप में चिह्नित किया । 2024 के आम चुनाव के दौरान , इकरा ने भारतीय जनता पार्टी के प्रदीप कुमार को 69,116 मतों के अंतर से हराकर कैराना से संसद सदस्य बनने का गौरव प्राप्त किया । शिक्षा मंत्रालय के बजट पर चर्चा के दौरान उन्होंने अल्पसंख्यक शिक्षा के साथ भेदभाव करने के लिए बजट की आलोचना की। उन्होंने मौलाना आज़ाद फाउंडेशन के बंद होने और पाठ्यपुस्तकों से डार्विन के सिद्धांत और मुगल इतिहास के विरूपण सहित महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और वैज्ञानिक सामग्री को हटाने पर भी चिंता व्यक्त की।

    इकरा चौधरी आज भारतीय राजनीति का गौरव बन गई हैं. क्षेत्र की बेटी की काबिलियत और क्षेत्रवासियों से अपनापन सभी क्षेत्रवासियों के दिलों में अपनी गहरी छाप छोड़ चुका है. 

    इस सब के मध्य एक स्थिति ऐसी भी है जिसे लेकर स्वयं इकरा चौधरी भी नाराजगी जता चुकी हैं और स्वयं कह चुकी हैं कि "मैं चाहती हूं कि मैं इन रील के स्थान पर अपने काम के लिए पहचानी जाऊँ." 

संसद में कैराना की आवाज उठाने वाली, संभल हिंसा में मुसलमानों को लेकर चिंता व्यक्त करने वाली इकरा चौधरी के भाषण, बयान सुनने के लिए क्षेत्रवासी टी वी, मोबाइल पर चिपके रहते हैं. इकरा चौधरी के वीडियो सामने स्क्रीन पर देखते ही जैसे ही उन्हें क्लिक करते हैं उनमें उनके भाषण के स्थान पर, बयानों के स्थान पर, क्षेत्रवासियों के साथ चर्चा करते हुए उनके आश्वासनों के स्थान पर फिल्मी गाने लगे होते हैं जो क्षेत्र की बेटी की गरिमा का, मर्यादा का उल्लंघन करते हुए नजर आते हैं. 

     आज देश को जिस तरह के युवा, सद्भावना पूर्ण राजनेताओं की जरूरत है इकरा चौधरी उनमें से एक हैं. वे जनता में, युवाओं में लोकप्रिय हैं और उनमें वो दिमाग है जो युवा पीढ़ी को सही दिशा में लेकर जा सकता है, बुजुर्गों, महिलाओं की सुरक्षा, समस्याओं का समाधान कर सकता है. इसलिए यह जरूरी है कि इकरा चौधरी से जुड़ी इस तरह की गतिविधियों रील्स पर रोक लगाई जाए. ताकि वे अपना कार्य सुरक्षा और सुविधा के साथ शांत मस्तिष्क के साथ सम्पन्न कर सकें. 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 


रविवार, 19 जनवरी 2025

परी नहीं बेटी


 हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बहुत ही जोर शोर से उच्चारित किया जाता है. आजकल प्रयाग राज उत्तर प्रदेश में महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है, जहां चहुँ ओर हिन्दू धर्म का डंका बज रहा है. साधू संतों के प्रवास के दौरान सारी प्रयाग राज की धरती पवित्र हो रही है. हिन्दू धर्म का झंडा बुलन्द करने वाली भाजपा नीत केंद्र और राज्य की सरकार ने श्रद्धालुओं के प्रयाग राज में पहुंचने की उत्तम व्यवस्था की है मीडिया द्वारा हिंदू धर्म - सनातन धर्म के इस पर्व को लेकर खासा प्रचार प्रसार किया जा रहा है. जिससे युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक में उल्लास पूर्ण वातावरण है जिससे बड़ी संख्या में श्रद्धालु ज़न वहां पहुंच रहे हैं. इसी उल्लास को लेकर आने वाली दो खबरों ने हिन्दू धर्म संस्कृति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. एक मध्य प्रदेश के महेश्वर से माला बेचने आई मोनालिसा के साथ युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक का असभ्य, अशोभनीय व्यवहार और एक साध्वी बनने जा रही मॉडल हर्षा रिछारिया की सुन्दरता के पीछे पागलपन की हदें पार करती हिन्दू जनता. सवाल खड़े करती हैं हिन्दू धर्म के इस महाआयोजन पर, जिसमें श्रद्धा, आस्था, भक्ति सर्वोच्च होनी चाहिए, वहां वासना आगे दिखाई दे रही है. वहां पहुंची हिन्दू धर्मावलंबियों की भीड़ को ये सुन्दर, परी, अप्सरा नजर आ रही हैं, क्यूँ आखिर क्यूँ? धर्म के इस श्रेष्ठ पर्व में भी इनके मन में उनकी सुन्दरता ही क्यूँ उतर रही है क्यूँ इनके मन में इन्हें लेकर धार्मिक भावनाएँ नहीं उभर रही हैं? क्यूँ हिन्दू धर्म की श्रेष्ठ मान्यताएं इनके मन में मोनालिसा को इनकी बेटी, बहन और हर्षा रिछारिया को एक देवी के रूप में स्थान नहीं दिला पा रहा है? कहाँ कमी रह गई है भाजपा की नीतियों में जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान चला कर भी धर्म के इस महाकुंभ तक में बेटियों को सुरक्षित वातावरण नहीं दे पा रही है कि आखिर मोनालिसा के पिता को बेटी को दबंगों द्वारा उठा लिए जाने की धमकी के डर से घर वापस भेजना पड़ गया है और मॉडल से साध्वी बनी हर्षा रिछारिया को रोते रोते महाकुंभ छोड़ना पड़ गया है.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)

बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

प्लैजर मैरिज- मुस्लिम समुदाय

 



     विश्व में सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में वर्तमान में निकाह का एक ढंग ट्रेडिंग हो रहा है , जिसमें गरीबी का जीवन गुजार रही महिलाओं और बालिकाओं की शादी वहां आने वाले पर्यटकों से कर दी जाती है. धीरे धीरे यह ट्रेंड इंडोनेशिया में इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि निकाह मुताह (या अस्थायी शादी) की प्रथा ने गरीब समुदायों में गहरी जड़ें जमा रहा है। 

मुता निकाह 

      मुस्लिम समुदाय में मुताह निकाह या अस्थायी शादी किसे कहते हैं सबसे पहले हम उसी पर ध्यान दे रहे हैं. मुताह विवाह, इस्लाम में अस्थायी विवाह का एक रूप है. इसे निकाह मुताह भी कहा जाता है. मुताह विवाह के बारे में ज़रूरी बातेंः 

 *मुता विवाह, पुरुष और महिला के बीच एक अनुबंध होता है. यह एक निश्चित अवधि के लिए होता है, जो एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकती है. 

 *मुता विवाह, केवल शियाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है. सुन्नी समुदाय में इसे मान्यता नहीं मिली है. 

* मुता विवाह में पति और पत्नी के बीच उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं होता. 

 *मुता विवाह में पत्नी को भरण-पोषण या विरासत पर कोई अधिकार नहीं होता. 

* मुता विवाह से पैदा हुए बच्चे वैध होते हैं और माता-पिता दोनों से उत्तराधिकार पा सकते हैं. 

*मुता विवाह, मुख्य रूप से ईरान और शिया क्षेत्रों में हलाल डेटिंग के साधन के रूप में मौजूद है.

निकाह मुताह की कुछ विशेषताएं में हैं 

*अवधि: जोड़े को विवाह के लिए निर्धारित समयावधि पर सहमत होना होगा। 

*भुगतान: पुरुष को महिला को तय राशि का भुगतान करना होगा। 

*सहमति: दोनों पक्षों को स्वतंत्र सहमति देनी होगी।

* उम्र: पार्टियों की उम्र अधिक होनी चाहिए और उनका दिमाग स्वस्थ होना चाहिए। 

*गोपनीयता: विवाह को निजी रखा जाना चाहिए। 

*बच्चे: मुताह संघ का कोई भी बच्चा पिता के साथ जाता है। 

*विरासत: दोनों को एक-दूसरे से विरासत नहीं मिलती जब तक कि इन मामलों पर कोई पूर्व समझौता न हो।             आज सभी मुसलमान निकाह मुताह का अभ्यास नहीं करते हैं। कुछ संप्रदायों का मानना ​​है कि यह प्रथा अब स्वीकार्य नहीं है, जबकि अन्य का मानना ​​है कि ऐसा है। इथना अशरिया शिया मुताह विवाह को मान्यता देते हैं, लेकिन अधिकांश अन्य मुसलमान इस विश्वास से असहमत हैं।

भारत में प्लैजर मैरिज 

आनंद विवाह, जिसे निकाह मुताह या निकाह मिस्यार के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम में एक अस्थायी विवाह अनुबंध है किन्तु इसे भारत में मान्यता नहीं है, और ऐसे विवाह अदालत द्वारा लागू नहीं होते हैं। हालाँकि, भारत में कुछ लोग निकाह मुताह विवाह का अनुबंध करते हैं। यहां निकाह मुताह की कुछ विशेषताएं दी गई हैं: 

*अनुबंध होने पर विवाह की अवधि तय हो जाती है और यह तीन दिन से लेकर एक वर्ष तक हो सकती है। 

*अनुबंध में मेहर निर्दिष्ट है। 

*यदि दुल्हन के पिता सहमति देने के लिए मौजूद हैं तो दुल्हन को कुंवारी होना चाहिए। 

*दोनों पक्ष स्वस्थ दिमाग के होने चाहिए और युवावस्था की आयु प्राप्त कर चुके हों। 

*दोनों पक्षों की सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए। 

*उन्हें रिश्ते की निषिद्ध डिग्री के भीतर नहीं होना चाहिए।

 *विवाह समाप्त होने के बाद, महिला को सेक्स से परहेज़ की अवधि (इद्दत) का पालन करना चाहिए। 

   अब इस आकलन के अनुसार भारत में मुता निकाह का कोई कानूनी स्थान नहीं है और मौजूदा आंकड़ों के अनुसार विश्व के मुस्लिम बहुल देशों में मुता निकाह का प्रचलन बढ़ रहा है. इसलिए यदि हम मुस्लिम बहुल देशों की ओर देखते हैं तो 2010 में, सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले तीन देश इंडोनेशिया, पाकिस्तान और भारत थे। 2030 तक, पाकिस्तान के इंडोनेशिया से आगे निकलकर सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश बनने का अनुमान है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मुसलमानों की संख्या 2010 में 2.6 मिलियन से बढ़कर 2030 में 6.2 मिलियन हो जाएगी। इस तरह अभी इंडोनेशिया ही विश्व में सबसे ज्यादा मुस्लिम बहुलता वाला देश है और "प्लैजर मैरिज" के मामले में सर्वोच्च स्थान बनाए हुए है. इसलिए अभी इस मैरिज के पीड़ित, शिकार अधिकांश रूप से इंडोनेशिया में ही मिल रहे हैं. 

   इंडोनेशिया में प्लैजर मैरिज की शिकार 17 साल की सबा (बदला हुआ नाम) की पहली अस्थायी शादी सऊदी अरब के रहने वाले एक अधेड़ उम्र के शख्स के साथ हुई और यह शादी सिर्फ पांच दिनों तक चली और आखिर में वह शादी तलाक देकर खत्म कर दी गई.

    लॉस एंजिल्स टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक सबा की शादी इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के एक होटल में कराई गई थी. सऊदी अरब के एक पर्यटक ने इस अस्थायी शादी के लिए 850 डॉलर का दहेज दिया, जिसमें से केवल आधी रकम सबा के परिवार तक पहुंची. शादी के बाद सबा को इंडोनेशिया के एक और शहर के एक रिजॉर्ट में ले जाया गया, जहां उसे घर के काम करने के साथ-साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया. इस अस्थायी शादी के अनुभव से सबा बेहद असहज महसूस करती थीं और चाहती थीं कि यह जल्द खत्म हो जाए. इस तरह की शादी को आधुनिक ज़माने में "प्लेजर मैरिज" नाम दिया गया है, जिसमें पर्यटकों के साथ लड़कियों की शादी करवा दी जाती है.

इंडोनेशिया प्लैजर मैरिज का अड्डा 

इंडोनेशिया के पुंकाक क्षेत्र में निकाह मुताह की प्रथा इतनी प्रचलन में है कि इसे "तलाकशुदा महिलाओं के गांव" के रूप में जाना जाने लगा है. इस धंधे में मध्यस्थों, बिचौलियों, अधिकारियों और एजेंटों का बहुत बड़ा नेटवर्क लगा हुआ है. गरीब लड़कियों को इस प्रथा में धकेलकर उन्हें अस्थायी शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है और फिर कुछ ही दिनों में तलाक देकर छोड़ दिया जाता है.

गरीबी और पारिवारिक दबाव 

 सबा की आर्थिक स्थिति ने उसे इस व्यापार का हिस्सा बनने के लिए मजबूर किया. महज 13 साल की उम्र में सबा की पहली शादी एक सहपाठी से करवाई गई थी. जिसमें चार साल बाद तलाक हो गया. इसके बाद काम की कमी और पैसों की दिक्कत के कारण उसे अस्थायी शादियों या प्लेजर मैरिज की ओर धकेल दिया गया. सबा की बड़ी बहन ने उसे इस रास्ते की ओर धकेला और पहली बार उसे एक एजेंट से मिलवाया.

इंडोनेशिया में निकाह मुताह का प्लैजर मैरिज के रूप में विस्तार

     इंडोनेशिया में निकाह मुताह प्रथा का विस्तार 1980 के दशक से शुरू हुआ, जब सऊदी अरब और थाईलैंड के बीच संबंध खराब होने के कारण सऊदी पर्यटक इंडोनेशिया की ओर रुख करने लगे. मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया की 85 फीसदी से अधिक आबादी इस प्रथा से जुड़ी हुई है. स्थानीय एजेंटों और व्यापारियों ने इस मौके का फायदा उठाते हुए निकाह मुताह को एक फलते-फूलते व्यापारिक ट्रेंड में बदल दिया.इंडोनेशिया में निकाह मुताह, यानी अस्थायी विवाह की प्रथा, एक बड़े उद्योग के रूप में जगह बना चुकी है . इस प्रथा में, कम आय वाले परिवारों की युवतियां पैसे के बदले में पुरुष पर्यटकों से शादी करती हैं. इस प्रथा को ही प्लेज़र मैरिज अर्थात आनन्द विवाह का नाम दिया गया है. 

 इंडोनेशिया में निकाह मुताह से जुड़ी कुछ खास बातें ये हैं - 

*यह एक निजी अनुबंध है, जो मौखिक या लिखित रूप में हो सकता है. 

* इसमें शादी करने के इरादे से शर्तों की स्वीकृति लेनी होती है. 

 *पुरुष को महिला को निकाह की सहमति राशि का भुगतान करना होता है. 

 *निकाह मुताह की अवधि एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकती है. 

 *परंपरागत रूप से, गवाहों या पंजीकरण की ज़रूरत नहीं होती. 

 *इंडोनेशियाई कानून में इस शादी को मान्यता नहीं दी गई है. 

* इस प्रथा को ज़्यादातर इस्लामिक स्कॉलर अस्वीकार करते हैं.

प्लैजर मैरिज का इस्लामी कानून और समाज पर प्रभाव

    इंडोनेशिया के कानून में निकाह मुताह और वेश्यावृत्ति दोनों ही गैर-कानूनी हैं, लेकिन जमीन पर इस कानून का कोई असर नहीं दिखता. इसके बजाय यह प्रथा धर्म और कानून को दरकिनार कर तेजी से फल-फूल रही है. इस्लामिक फैमिली लॉ के प्रोफेसर यायन सोपयान का कहना है कि आर्थिक तंगी और बेरोजगारी इस प्रथा को बढ़ावा दे रही हैं, खासकर कोविड महामारी के बाद लोगों का ध्यान केवल कमाई पर ही रह गया है कमाई कैसे हो रही है किधर से हो रही है यह गौण मुद्दा रह गया है और इसलिए गरीबी से जूझते मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में प्लैजर मैरिज का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है और यह ट्रेंड अन्य मुस्लिम बहुल देशों पर भी प्रभाव डाल रहा है.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

कन्या पूजन के ही दिन कन्या की हत्या - सबसे दुष्ट माँ

 



  11 अक्टूबर वह दिन जब हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा शारदीय नवरात्रि पर्व में दुर्गा अष्टमी / दुर्गा नवमी पर्व मनाते हुए कन्या पूजन किया जा रहा था, विश्व अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा था और समाचार पत्र में पढ़ने के लिए मिलता है एक ऐसा समाचार, जो शर्मसार कर देता है भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी द्वारा चलाए जा रहे "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ" अभियान को.

       एक बेटी महिला के गर्भ में आते ही जिंदगी के लिए जूझना आरंभ कर देती है और उसे इस समाज के व्यभिचारी तत्वों से कहीं ज्यादा खतरा होता है अपने ही रुढियों में फंसे परिवार से किन्तु माँ की ओर से फिर भी उसे एक सुरक्षा का आभास रहता ही है जो सुरक्षा भोपा (मुजफ्फरनगर) की बेचारी शगुन को नहीं मिल पाई. सौतेली माँ को तो हमेशा से बच्चों की दुश्मन दिखाया गया है किन्तु सौतेला बाप और सगी माँ ही जब बेटी की जान लेने पर उतारू हो जाएं तो वही दुर्दशा होती है जो बेचारी शगुन की हुई. सौतेला बाप सगी माँ मिलकर बच्ची का गला दबाते हैं, शव खेत में फेंकते हैं फिर उठाकर नहर में फेंक आते हैं और ये सब वे एक उस बच्ची के साथ करते हैं जो अभी तक इनकी अकेली बच्ची थी, केवल एक माह की थी, पूरी तरह से अपने माँ बाप पर ही आश्रित थी और सबसे बड़ी बात ये एक हिन्दू परिवार से थी जिसमें बेटियों को देवी का दर्जा दिया जाता है और जिस अंधविश्वास के नाम पर इनके द्वारा बेटी के साथ ऐसा दुर्दांत कृत्य किया जाता है क्या एक बार भी इनके मन में नवरात्रि के पावन अवसर पर बेटी के लिए देवी का कोई भी भाव इनके मन में आता है, सीधा साफ दिख रहा है कि नहीं आता है क्योंकि ये भी उसी भारतीय हिन्दू समाज से ताल्लुक रखते हैं जो "दूर के ढोल सुहावने वाले हैं" जो अपनी बेटी को बोझ समझते हैं और दूसरे की बेटी के कन्या पूजन में पैर पूजते हैं.

      ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत जैसे देश में बेटी बचाओ अभियान कभी भी सफल नहीं हो सकता है क्यूंकि बेटी के प्रथम संरक्षक ही बेटी के प्रथम दुश्मन के रूप में दिखाई देते हैं और वे बेटी को एक बोझ के रूप में ही समझते हैं. दो चार परिवार में बेटी को प्रमुखता मिलने से अरबों की जनसंख्या वाले इस देश में बेटी की सुरक्षा संदेह से परे नहीं देखी जा सकती है जब सगी माँ ही बेटी का गला दबा कर मार देती हो.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

रविवार, 6 अक्टूबर 2024

नारी पर अपराध "छोटे अपराध"- यति नरसिंहानंद

   


   आज यति नरसिंहानंद विवादों में हैं. ऐतिहासिक और आध्यात्मिक चरित्रों के बारे में अनाप शनाप बयानों को लेकर. साथ ही, उनकी सोच बता रही है भारतीय पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री की दयनीय दशा के बारे में. नरसिंहानंद कहते हैं कि - आज मैं केवल एक व्यक्ति के प्रति संवेदना जताता हूं। मेघनाथ को हम हर साल जलाते हैं। मेघनाथ जैसा चरित्रवान व्यक्ति इस धरती पर दूसरा कोई पैदा नहीं हुआ। हम हर साल कुंभकरण को जलाते हैं। ​​​कुंभकरण जैसा वैचारिक योद्धा इस धरती पर पैदा नहीं हुआ। उनकी गलती ये थी कि रावण ने एक छोटा सा अपराध किया।

    अब यदि हम छोटे से अपराध की भारतीय कानून के मुताबिक परिभाषा पर जाते हैं तो पहले भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 95 और अब भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 33 में जिन अपराधों को छोटे अपराधों की श्रेणी में रखा गया है उनके लिए कहा गया है कि - "कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की सम्भाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत नहीं करेगा."

      ऐसे में, साफतौर पर यति नरसिंहानंद रावण द्वारा माता सीता के हरण को एक छोटा सा अपराध कह रहे हैं. नरसिंहानंद जैसे पुरुषों के लिए जो एक " छोटा सा अपराध " है, वह एक स्त्री, पतिव्रता नारी की मिसाल माता सीता की जिंदगी बर्बाद कर देता है, एक देवी की पवित्रता पर अयोध्या की प्रजा में उठी छोटी सी ध्वनि - "कि माता सीता रावण के घर रहकर आई है," उनके जीवन से सौभाग्य को, पति के साथ रहने के सुख को उनकी गर्भावस्था में ही दूर कर देती है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा संरक्षण में रहने पर भी माता सीता से अयोध्या की प्रजा पुनः अग्नि परीक्षा की इच्छा रखती है, लव कुश श्री राम के पुत्र होने के बावजूद पिता श्री राम के राज्य को प्राप्त नहीं कर पाते और ये सब जिस रावण के दुष्कृत्य के कारण होता है उसे यति नरसिंहानंद छोटा सा अपराध कहते हैं.

    ये है नारी के प्रति भारतीय आधुनिक संत समाज की सोच, जिसके अनुसार नारी पर हो रहे अपराध छोटे अपराध हैं और भारतीय कानून के अनुसार छोटे अपराध वे हैं जिनकी कोई शिकायत नहीं करनी चाहिए और अंततः नारी को इस सोच को देखते हुए चुप ही रहना चाहिए. 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली)