रविवार, 19 जनवरी 2025

परी नहीं बेटी


 हिन्दू धर्म की एक प्रसिद्ध उक्ति है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" जिसे हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा बहुत ही जोर शोर से उच्चारित किया जाता है. आजकल प्रयाग राज उत्तर प्रदेश में महाकुंभ आयोजित किया जा रहा है, जहां चहुँ ओर हिन्दू धर्म का डंका बज रहा है. साधू संतों के प्रवास के दौरान सारी प्रयाग राज की धरती पवित्र हो रही है. हिन्दू धर्म का झंडा बुलन्द करने वाली भाजपा नीत केंद्र और राज्य की सरकार ने श्रद्धालुओं के प्रयाग राज में पहुंचने की उत्तम व्यवस्था की है मीडिया द्वारा हिंदू धर्म - सनातन धर्म के इस पर्व को लेकर खासा प्रचार प्रसार किया जा रहा है. जिससे युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक में उल्लास पूर्ण वातावरण है जिससे बड़ी संख्या में श्रद्धालु ज़न वहां पहुंच रहे हैं. इसी उल्लास को लेकर आने वाली दो खबरों ने हिन्दू धर्म संस्कृति पर सवाल खड़े कर दिए हैं. एक मध्य प्रदेश के महेश्वर से माला बेचने आई मोनालिसा के साथ युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक का असभ्य, अशोभनीय व्यवहार और एक साध्वी बनने जा रही मॉडल हर्षा रिछारिया की सुन्दरता के पीछे पागलपन की हदें पार करती हिन्दू जनता. सवाल खड़े करती हैं हिन्दू धर्म के इस महाआयोजन पर, जिसमें श्रद्धा, आस्था, भक्ति सर्वोच्च होनी चाहिए, वहां वासना आगे दिखाई दे रही है. वहां पहुंची हिन्दू धर्मावलंबियों की भीड़ को ये सुन्दर, परी, अप्सरा नजर आ रही हैं, क्यूँ आखिर क्यूँ? धर्म के इस श्रेष्ठ पर्व में भी इनके मन में उनकी सुन्दरता ही क्यूँ उतर रही है क्यूँ इनके मन में इन्हें लेकर धार्मिक भावनाएँ नहीं उभर रही हैं? क्यूँ हिन्दू धर्म की श्रेष्ठ मान्यताएं इनके मन में मोनालिसा को इनकी बेटी, बहन और हर्षा रिछारिया को एक देवी के रूप में स्थान नहीं दिला पा रहा है? कहाँ कमी रह गई है भाजपा की नीतियों में जो बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का अभियान चला कर भी धर्म के इस महाकुंभ तक में बेटियों को सुरक्षित वातावरण नहीं दे पा रही है कि आखिर मोनालिसा के पिता को बेटी को दबंगों द्वारा उठा लिए जाने की धमकी के डर से घर वापस भेजना पड़ गया है और मॉडल से साध्वी बनी हर्षा रिछारिया को रोते रोते महाकुंभ छोड़ना पड़ गया है.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)

बुधवार, 16 अक्टूबर 2024

प्लैजर मैरिज- मुस्लिम समुदाय

 



     विश्व में सबसे ज्यादा मुस्लिम जनसंख्या वाले देश इंडोनेशिया में वर्तमान में निकाह का एक ढंग ट्रेडिंग हो रहा है , जिसमें गरीबी का जीवन गुजार रही महिलाओं और बालिकाओं की शादी वहां आने वाले पर्यटकों से कर दी जाती है. धीरे धीरे यह ट्रेंड इंडोनेशिया में इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि निकाह मुताह (या अस्थायी शादी) की प्रथा ने गरीब समुदायों में गहरी जड़ें जमा रहा है। 

मुता निकाह 

      मुस्लिम समुदाय में मुताह निकाह या अस्थायी शादी किसे कहते हैं सबसे पहले हम उसी पर ध्यान दे रहे हैं. मुताह विवाह, इस्लाम में अस्थायी विवाह का एक रूप है. इसे निकाह मुताह भी कहा जाता है. मुताह विवाह के बारे में ज़रूरी बातेंः 

 *मुता विवाह, पुरुष और महिला के बीच एक अनुबंध होता है. यह एक निश्चित अवधि के लिए होता है, जो एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकती है. 

 *मुता विवाह, केवल शियाओं द्वारा मान्यता प्राप्त है. सुन्नी समुदाय में इसे मान्यता नहीं मिली है. 

* मुता विवाह में पति और पत्नी के बीच उत्तराधिकार का कोई अधिकार नहीं होता. 

 *मुता विवाह में पत्नी को भरण-पोषण या विरासत पर कोई अधिकार नहीं होता. 

* मुता विवाह से पैदा हुए बच्चे वैध होते हैं और माता-पिता दोनों से उत्तराधिकार पा सकते हैं. 

*मुता विवाह, मुख्य रूप से ईरान और शिया क्षेत्रों में हलाल डेटिंग के साधन के रूप में मौजूद है.

निकाह मुताह की कुछ विशेषताएं में हैं 

*अवधि: जोड़े को विवाह के लिए निर्धारित समयावधि पर सहमत होना होगा। 

*भुगतान: पुरुष को महिला को तय राशि का भुगतान करना होगा। 

*सहमति: दोनों पक्षों को स्वतंत्र सहमति देनी होगी।

* उम्र: पार्टियों की उम्र अधिक होनी चाहिए और उनका दिमाग स्वस्थ होना चाहिए। 

*गोपनीयता: विवाह को निजी रखा जाना चाहिए। 

*बच्चे: मुताह संघ का कोई भी बच्चा पिता के साथ जाता है। 

*विरासत: दोनों को एक-दूसरे से विरासत नहीं मिलती जब तक कि इन मामलों पर कोई पूर्व समझौता न हो।             आज सभी मुसलमान निकाह मुताह का अभ्यास नहीं करते हैं। कुछ संप्रदायों का मानना ​​है कि यह प्रथा अब स्वीकार्य नहीं है, जबकि अन्य का मानना ​​है कि ऐसा है। इथना अशरिया शिया मुताह विवाह को मान्यता देते हैं, लेकिन अधिकांश अन्य मुसलमान इस विश्वास से असहमत हैं।

भारत में प्लैजर मैरिज 

आनंद विवाह, जिसे निकाह मुताह या निकाह मिस्यार के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम में एक अस्थायी विवाह अनुबंध है किन्तु इसे भारत में मान्यता नहीं है, और ऐसे विवाह अदालत द्वारा लागू नहीं होते हैं। हालाँकि, भारत में कुछ लोग निकाह मुताह विवाह का अनुबंध करते हैं। यहां निकाह मुताह की कुछ विशेषताएं दी गई हैं: 

*अनुबंध होने पर विवाह की अवधि तय हो जाती है और यह तीन दिन से लेकर एक वर्ष तक हो सकती है। 

*अनुबंध में मेहर निर्दिष्ट है। 

*यदि दुल्हन के पिता सहमति देने के लिए मौजूद हैं तो दुल्हन को कुंवारी होना चाहिए। 

*दोनों पक्ष स्वस्थ दिमाग के होने चाहिए और युवावस्था की आयु प्राप्त कर चुके हों। 

*दोनों पक्षों की सहमति स्वतंत्र होनी चाहिए। 

*उन्हें रिश्ते की निषिद्ध डिग्री के भीतर नहीं होना चाहिए।

 *विवाह समाप्त होने के बाद, महिला को सेक्स से परहेज़ की अवधि (इद्दत) का पालन करना चाहिए। 

   अब इस आकलन के अनुसार भारत में मुता निकाह का कोई कानूनी स्थान नहीं है और मौजूदा आंकड़ों के अनुसार विश्व के मुस्लिम बहुल देशों में मुता निकाह का प्रचलन बढ़ रहा है. इसलिए यदि हम मुस्लिम बहुल देशों की ओर देखते हैं तो 2010 में, सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले तीन देश इंडोनेशिया, पाकिस्तान और भारत थे। 2030 तक, पाकिस्तान के इंडोनेशिया से आगे निकलकर सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश बनने का अनुमान है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मुसलमानों की संख्या 2010 में 2.6 मिलियन से बढ़कर 2030 में 6.2 मिलियन हो जाएगी। इस तरह अभी इंडोनेशिया ही विश्व में सबसे ज्यादा मुस्लिम बहुलता वाला देश है और "प्लैजर मैरिज" के मामले में सर्वोच्च स्थान बनाए हुए है. इसलिए अभी इस मैरिज के पीड़ित, शिकार अधिकांश रूप से इंडोनेशिया में ही मिल रहे हैं. 

   इंडोनेशिया में प्लैजर मैरिज की शिकार 17 साल की सबा (बदला हुआ नाम) की पहली अस्थायी शादी सऊदी अरब के रहने वाले एक अधेड़ उम्र के शख्स के साथ हुई और यह शादी सिर्फ पांच दिनों तक चली और आखिर में वह शादी तलाक देकर खत्म कर दी गई.

    लॉस एंजिल्स टाइम्स में छपी खबर के मुताबिक सबा की शादी इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता के एक होटल में कराई गई थी. सऊदी अरब के एक पर्यटक ने इस अस्थायी शादी के लिए 850 डॉलर का दहेज दिया, जिसमें से केवल आधी रकम सबा के परिवार तक पहुंची. शादी के बाद सबा को इंडोनेशिया के एक और शहर के एक रिजॉर्ट में ले जाया गया, जहां उसे घर के काम करने के साथ-साथ संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया. इस अस्थायी शादी के अनुभव से सबा बेहद असहज महसूस करती थीं और चाहती थीं कि यह जल्द खत्म हो जाए. इस तरह की शादी को आधुनिक ज़माने में "प्लेजर मैरिज" नाम दिया गया है, जिसमें पर्यटकों के साथ लड़कियों की शादी करवा दी जाती है.

इंडोनेशिया प्लैजर मैरिज का अड्डा 

इंडोनेशिया के पुंकाक क्षेत्र में निकाह मुताह की प्रथा इतनी प्रचलन में है कि इसे "तलाकशुदा महिलाओं के गांव" के रूप में जाना जाने लगा है. इस धंधे में मध्यस्थों, बिचौलियों, अधिकारियों और एजेंटों का बहुत बड़ा नेटवर्क लगा हुआ है. गरीब लड़कियों को इस प्रथा में धकेलकर उन्हें अस्थायी शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है और फिर कुछ ही दिनों में तलाक देकर छोड़ दिया जाता है.

गरीबी और पारिवारिक दबाव 

 सबा की आर्थिक स्थिति ने उसे इस व्यापार का हिस्सा बनने के लिए मजबूर किया. महज 13 साल की उम्र में सबा की पहली शादी एक सहपाठी से करवाई गई थी. जिसमें चार साल बाद तलाक हो गया. इसके बाद काम की कमी और पैसों की दिक्कत के कारण उसे अस्थायी शादियों या प्लेजर मैरिज की ओर धकेल दिया गया. सबा की बड़ी बहन ने उसे इस रास्ते की ओर धकेला और पहली बार उसे एक एजेंट से मिलवाया.

इंडोनेशिया में निकाह मुताह का प्लैजर मैरिज के रूप में विस्तार

     इंडोनेशिया में निकाह मुताह प्रथा का विस्तार 1980 के दशक से शुरू हुआ, जब सऊदी अरब और थाईलैंड के बीच संबंध खराब होने के कारण सऊदी पर्यटक इंडोनेशिया की ओर रुख करने लगे. मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया की 85 फीसदी से अधिक आबादी इस प्रथा से जुड़ी हुई है. स्थानीय एजेंटों और व्यापारियों ने इस मौके का फायदा उठाते हुए निकाह मुताह को एक फलते-फूलते व्यापारिक ट्रेंड में बदल दिया.इंडोनेशिया में निकाह मुताह, यानी अस्थायी विवाह की प्रथा, एक बड़े उद्योग के रूप में जगह बना चुकी है . इस प्रथा में, कम आय वाले परिवारों की युवतियां पैसे के बदले में पुरुष पर्यटकों से शादी करती हैं. इस प्रथा को ही प्लेज़र मैरिज अर्थात आनन्द विवाह का नाम दिया गया है. 

 इंडोनेशिया में निकाह मुताह से जुड़ी कुछ खास बातें ये हैं - 

*यह एक निजी अनुबंध है, जो मौखिक या लिखित रूप में हो सकता है. 

* इसमें शादी करने के इरादे से शर्तों की स्वीकृति लेनी होती है. 

 *पुरुष को महिला को निकाह की सहमति राशि का भुगतान करना होता है. 

 *निकाह मुताह की अवधि एक घंटे से लेकर 99 साल तक हो सकती है. 

 *परंपरागत रूप से, गवाहों या पंजीकरण की ज़रूरत नहीं होती. 

 *इंडोनेशियाई कानून में इस शादी को मान्यता नहीं दी गई है. 

* इस प्रथा को ज़्यादातर इस्लामिक स्कॉलर अस्वीकार करते हैं.

प्लैजर मैरिज का इस्लामी कानून और समाज पर प्रभाव

    इंडोनेशिया के कानून में निकाह मुताह और वेश्यावृत्ति दोनों ही गैर-कानूनी हैं, लेकिन जमीन पर इस कानून का कोई असर नहीं दिखता. इसके बजाय यह प्रथा धर्म और कानून को दरकिनार कर तेजी से फल-फूल रही है. इस्लामिक फैमिली लॉ के प्रोफेसर यायन सोपयान का कहना है कि आर्थिक तंगी और बेरोजगारी इस प्रथा को बढ़ावा दे रही हैं, खासकर कोविड महामारी के बाद लोगों का ध्यान केवल कमाई पर ही रह गया है कमाई कैसे हो रही है किधर से हो रही है यह गौण मुद्दा रह गया है और इसलिए गरीबी से जूझते मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में प्लैजर मैरिज का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है और यह ट्रेंड अन्य मुस्लिम बहुल देशों पर भी प्रभाव डाल रहा है.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

कन्या पूजन के ही दिन कन्या की हत्या - सबसे दुष्ट माँ

 



  11 अक्टूबर वह दिन जब हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा शारदीय नवरात्रि पर्व में दुर्गा अष्टमी / दुर्गा नवमी पर्व मनाते हुए कन्या पूजन किया जा रहा था, विश्व अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा था और समाचार पत्र में पढ़ने के लिए मिलता है एक ऐसा समाचार, जो शर्मसार कर देता है भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी द्वारा चलाए जा रहे "बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ" अभियान को.

       एक बेटी महिला के गर्भ में आते ही जिंदगी के लिए जूझना आरंभ कर देती है और उसे इस समाज के व्यभिचारी तत्वों से कहीं ज्यादा खतरा होता है अपने ही रुढियों में फंसे परिवार से किन्तु माँ की ओर से फिर भी उसे एक सुरक्षा का आभास रहता ही है जो सुरक्षा भोपा (मुजफ्फरनगर) की बेचारी शगुन को नहीं मिल पाई. सौतेली माँ को तो हमेशा से बच्चों की दुश्मन दिखाया गया है किन्तु सौतेला बाप और सगी माँ ही जब बेटी की जान लेने पर उतारू हो जाएं तो वही दुर्दशा होती है जो बेचारी शगुन की हुई. सौतेला बाप सगी माँ मिलकर बच्ची का गला दबाते हैं, शव खेत में फेंकते हैं फिर उठाकर नहर में फेंक आते हैं और ये सब वे एक उस बच्ची के साथ करते हैं जो अभी तक इनकी अकेली बच्ची थी, केवल एक माह की थी, पूरी तरह से अपने माँ बाप पर ही आश्रित थी और सबसे बड़ी बात ये एक हिन्दू परिवार से थी जिसमें बेटियों को देवी का दर्जा दिया जाता है और जिस अंधविश्वास के नाम पर इनके द्वारा बेटी के साथ ऐसा दुर्दांत कृत्य किया जाता है क्या एक बार भी इनके मन में नवरात्रि के पावन अवसर पर बेटी के लिए देवी का कोई भी भाव इनके मन में आता है, सीधा साफ दिख रहा है कि नहीं आता है क्योंकि ये भी उसी भारतीय हिन्दू समाज से ताल्लुक रखते हैं जो "दूर के ढोल सुहावने वाले हैं" जो अपनी बेटी को बोझ समझते हैं और दूसरे की बेटी के कन्या पूजन में पैर पूजते हैं.

      ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि भारत जैसे देश में बेटी बचाओ अभियान कभी भी सफल नहीं हो सकता है क्यूंकि बेटी के प्रथम संरक्षक ही बेटी के प्रथम दुश्मन के रूप में दिखाई देते हैं और वे बेटी को एक बोझ के रूप में ही समझते हैं. दो चार परिवार में बेटी को प्रमुखता मिलने से अरबों की जनसंख्या वाले इस देश में बेटी की सुरक्षा संदेह से परे नहीं देखी जा सकती है जब सगी माँ ही बेटी का गला दबा कर मार देती हो.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

रविवार, 6 अक्टूबर 2024

नारी पर अपराध "छोटे अपराध"- यति नरसिंहानंद

   


   आज यति नरसिंहानंद विवादों में हैं. ऐतिहासिक और आध्यात्मिक चरित्रों के बारे में अनाप शनाप बयानों को लेकर. साथ ही, उनकी सोच बता रही है भारतीय पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री की दयनीय दशा के बारे में. नरसिंहानंद कहते हैं कि - आज मैं केवल एक व्यक्ति के प्रति संवेदना जताता हूं। मेघनाथ को हम हर साल जलाते हैं। मेघनाथ जैसा चरित्रवान व्यक्ति इस धरती पर दूसरा कोई पैदा नहीं हुआ। हम हर साल कुंभकरण को जलाते हैं। ​​​कुंभकरण जैसा वैचारिक योद्धा इस धरती पर पैदा नहीं हुआ। उनकी गलती ये थी कि रावण ने एक छोटा सा अपराध किया।

    अब यदि हम छोटे से अपराध की भारतीय कानून के मुताबिक परिभाषा पर जाते हैं तो पहले भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 95 और अब भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 33 में जिन अपराधों को छोटे अपराधों की श्रेणी में रखा गया है उनके लिए कहा गया है कि - "कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई अपहानि कारित होती है या कारित की जानी आशयित है या कारित होने की सम्भाव्यता ज्ञात है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत नहीं करेगा."

      ऐसे में, साफतौर पर यति नरसिंहानंद रावण द्वारा माता सीता के हरण को एक छोटा सा अपराध कह रहे हैं. नरसिंहानंद जैसे पुरुषों के लिए जो एक " छोटा सा अपराध " है, वह एक स्त्री, पतिव्रता नारी की मिसाल माता सीता की जिंदगी बर्बाद कर देता है, एक देवी की पवित्रता पर अयोध्या की प्रजा में उठी छोटी सी ध्वनि - "कि माता सीता रावण के घर रहकर आई है," उनके जीवन से सौभाग्य को, पति के साथ रहने के सुख को उनकी गर्भावस्था में ही दूर कर देती है. महर्षि वाल्मीकि द्वारा संरक्षण में रहने पर भी माता सीता से अयोध्या की प्रजा पुनः अग्नि परीक्षा की इच्छा रखती है, लव कुश श्री राम के पुत्र होने के बावजूद पिता श्री राम के राज्य को प्राप्त नहीं कर पाते और ये सब जिस रावण के दुष्कृत्य के कारण होता है उसे यति नरसिंहानंद छोटा सा अपराध कहते हैं.

    ये है नारी के प्रति भारतीय आधुनिक संत समाज की सोच, जिसके अनुसार नारी पर हो रहे अपराध छोटे अपराध हैं और भारतीय कानून के अनुसार छोटे अपराध वे हैं जिनकी कोई शिकायत नहीं करनी चाहिए और अंततः नारी को इस सोच को देखते हुए चुप ही रहना चाहिए. 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

मोहिनी तोमर एडवोकेट को न्याय मिले - कासगंज केस

 


(पुलिस और उत्तर प्रदेश सरकार मोहिनी तोमर एडवोकेट की दोषी) 

कासगंज न्यायालय की महिला अधिवक्ता मोहिनी तोमर को 3 सितंबर दिन मंगलवार को दोपहर बाद अगवा किया जाता है , मोहिनी तोमर का शव नग्नावस्था में गोरहा नहर में रजपुरा गांव के समीप 4 सितंबर दिन बुधवार को अपहरण के लगभग 30 घण्टे बाद नहर में उतराता हुआ मिलता है . मोहिनी तोमर एडवोकेट कासगंज जिला सत्र न्यायालय में वकील के तौर पर कार्यरत थीं.  शव का चेहरा बिगड़ा हुआ था और क्योंकि शव का चेहरा क्षतिग्रस्त था तो पति बृजेंद्र तोमर ने लाश की शिनाख्त हाथ पर कट का निशान और हाथ में पहने कड़े के आधार पर मोहिनी तोमर के रूप में की. पुलिस की ढीली कार्यवाही के चलते एक अधिवक्ता- महिला अधिवक्ता का दिनदहाड़े अपहरण होता है, 30 घण्टे बाद भी अगर मिलती है तो महिला अधिवक्ता एक लाश के रूप में मिलती है, विकृत चेहरे और निर्वस्त्र, चोटिल शरीर के साथ. हापुड़ कांड के समय पुलिस के दुर्व्यवहार को देखते हुए एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट के लिए बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कमेटी गठित की गई थी, कहाँ है एक्ट? क्या दूसरों के लिए न्याय दिलाने वाले अधिवक्ता यूँ ही अपराध का शिकार होते रहेंगे? यूँ ही पुलिस द्वारा उपेक्षा के पात्र बने रहेंगे? 

      आज अपराधियों के हौसले बुलन्द हैं और अधिवक्ता अपराधियों के खिलाफ ही लड़ते हैं, इसलिए उत्तर प्रदेश के अधिवक्ताओं की सुरक्षा के लिए जल्द से जल्द एडवोकेट प्रोटेक्शन एक्ट लागू किया जाए जिसमें महिला अधिवक्ताओं की सुरक्षा हेतु विशेष प्रावधान किए जाएं.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

बुधवार, 21 अगस्त 2024

ग्रे डिवोर्स

 



 तलाक, एक ऐसा दुःखद शब्द, भावना या अनुभूति जिसे शायद ही कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी शादी के साथ जोड़ने की इच्छा भारतीय संस्कृति में करे, प्राचीन भारतीय संस्कृति में तलाक या विवाह विच्छेद का कोई स्थान नहीं था किंतु जैसे जैसे समाज ने तरक्की की, संस्कृति ने आधुनिकीकरण का बाना धारण किया, तलाक भी भारतीय शादीशुदा जोड़ों की जिंदगी में अपनी जगह बना गया और फिर रही बॉलीवुड की चमचमाती जिंदगी, वहां तो आए दिन शादी, लिव इन, तलाक जैसे शब्दों का प्रचलन आम है.

    अभी हाल ही में मशहूर उद्योगपति मुकेश अंबानी ने अपने बेटे की शादी की, जिसमें लगभग पूरा बॉलीवुड आमंत्रित था. आमंत्रित थे बिग बी अमिताभ बच्चन अपने पूरे परिवार के साथ. उड़ती हुई खबरों के मुताबिक अमिताभ बच्चन के बेटे अभिषेक बच्चन और उनकी पत्नी पूर्व मिस वर्ल्ड और प्रसिद्ध अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन भी वहां आई किन्तु अभिषेक जहां अपने माता पिता और बहन के साथ व्यस्त रहे, वहीं दूसरी ओर ऐश्वर्या अपनी बेटी के साथ अलग आई और इन सबसे अलग ही रही, इस तरह की रिपोर्ट के बाद अभिषेक ऐश्वर्या मे मनमुटाव की सुगबुगाहट उनके प्रशंसकों में होना कोई बड़ी बात नहीं थी किन्तु उस सुगबुगाहट की आग में घी डालने का काम खुद अभिषेक बच्चन ने किया. अभिषेक बच्चन ने सोशल मीडिया में तलाक की एक पोस्ट लाइक कर  अपने और ऐश्वर्य के बीच की दरारों को और हवा दे दी. अभिषेक बच्चन ने इंस्टाग्राम पर" ग्रे डिवोर्स" के एक पोस्ट को लाइक किया । जिसमें लिखा था-" जब प्यार आसान नहीं रह जाता। तलाक किसी के लिए भी आसान नहीं होता। कौन हमेशा खुश रहने का सपना नहीं देखता। फिर भी कभी-कभी जीवन वैसा नहीं होता जैसा हम उम्मीद करते हैं, लेकिन जब लोग दशकों साथ रहने के बाद अलग हो जाते हैं, जब वे अपनी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा बड़ी और छोटी दोनों चीजों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं तो वे इसका कैसे सामना करते हैं।"

    अभिषेक बच्चन ने ग्रे डिवोर्स की सोशल मीडिया पोस्ट को लाइक किया और उसके बाद से ही ग्रे डिवोर्स को लेकर चर्चा शुरू हो गई. इस समय पूरे सोशल मीडिया में छाया हुआ है" ग्रे डिवोर्स "शब्द. 

*ग्रे डिवोर्स का सबसे पहले इस्तेमाल अमेरिका में 

 ग्रे डिवोर्स शब्द का प्रयोग सबसे पहले अमेरिका में मिलता है. अमेरिका में 2004 के आसपास शुरू ग्रे डिवोर्स के बारे में हम कह सकते हैं कि ग्रे डिवोर्स की संस्कृति भारत में कदम रखने से पहले ही अमेरिका में लगभग 20 साल से पहले से ही कदम जमा चुकी है. 

      प्राचीन काल में जब बेटी को घर से विदा किया जाता था तो यह कहकर किया जाता था कि अब बेटी की अर्थी ससुराल से ही निकले, किन्तु धीरे धीरे बेटी को पराया धन माने जाने की प्रवृत्ति पर कुछ अंकुश लगा है और अब बहुत से माता पिता बेटी को ससुराल में परेशान देख उसके मायके में उसे वापस लाने से गुरेज नहीं कर रहे हैं, यही नहीं, अब बेटियां भी पढ़ी लिखी और अपने पैरों पर खड़ी होने के कारण ससुराल के अत्याचारों को बर्दाश्त नहीं कर रही हैं. पहले पहल तो लड़कियां अब अपने पैरों पर खड़े होने को ही प्राथमिकता दे रही हैं और अपने पैरों पर खड़े हो जाने के बाद भी शादी जैसे रिश्ते को बंधन का ही दर्जा दे रही हैं. यहीं लड़के भी अब शादी की जिम्मेदारी से बचने के लिए और कुछ लड़कों के प्रति कानून की सख्ती देखकर भी शादी नहीं करना चाहते हैं ऐसे में एक नया रिश्ता उभरा है लिव-इन रिलेशनशिप का, जिसमें थोड़े समय साथ रहकर एक दूसरे को छोडकर लड़का लड़की अलग हो लेते हैं किन्तु यह रिश्ता अभी तो नाममात्र ही प्रचलित कहा जाएगा क्योंकि घर के बडों का विशेषकर उच्चवर्ग के बडों का, जहां उद्योगपति वर्ग में घर की कमान अभी भी घर के बडों के ही हाथ में है वहां लव कम अरेंज मैरिज अभी भी हो रही हैं किन्तु निभाई कितनी जा रही हैं ये सभी के सामने हैं. बहुत से मामलों में जब शादीशुदा जोड़ों के बीच अनबन होती है और तलखी इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि साथ रहना बिल्कुल ही मुश्किल हो जाए तो उच्च वर्ग के कपल एक दूसरे से तुरंत अलग हो जाते हैं, कई बार तो शादी के 2 या 3 साल बाद ही लोग तलाक भी ले लेते हैं, लेकिन ग्रे डिवोर्स इससे थोड़ा अलग है। इसका यदि गहराई से आकलन किया जाए तो जब पति पत्नी के बाल सफेद होने लगे तब वे तलाक ले लेते हैं,यानी 40 -50 साल की उम्र में जोड़े एक दूसरे से अलग हो जाते हैं और एक बार फिर से नई जिंदगी की शुरुआत करते हैं ताकि उनके बच्चों पर किसी तरह का नेगेटिव असर न पड़े, ये उम्र वह होती है जब बच्चे लगभग अपनी जिंदगी में व्यस्त हो जाते हैं, बच्चे पढ़ लिखकर बड़े हो जाते हैं, आत्मनिर्भर हो जाते हैं, वे खुद अपनी जिंदगी में माँ बाप का दखल बर्दाश्त नहीं कर पाते तब यह तलाक होता है,इस वजह से इसका नाम ग्रे डिवोर्स है। 

 *पश्चिम देशों में ग्रे डिवोर्स आम 

ग्रे डिवोर्स को डायमंड तलाक और सिल्वर स्प्लिटर्स भी कहा जाता है। पश्चिमी देशों में ग्रे डिवोर्स बेहद आम है। उम्र के अंतिम पड़ाव पर आकर जब एक शादीशुदा जोड़े को तलाक लेकर एक-दूसरे से अलग रहना पड़े उसे ग्रे डिवोर्स कहा गया है और साधारण भाषा में 50 की उम्र के बाद शादीशुदा जोड़ा तलाक ले कर एक दूसरे से अलग होता है तो उसे ग्रे डिवोर्स कहते हैं।

*आधुनिक समाज में बढ़ रहा है ग्रे डिवोर्स का चलन 

1990 से अब तक ग्रे डिवोर्स के मामले पश्चिमी देशों में दोगुनी रफ्तार से बढ़े हैं। एक अध्ययन के मुताबिक 2030 तक यह संख्या तीन गुना हो सकती है। एक रिसर्च के आंकड़े बताते हैं 2005 और 2015 के बीच इंग्लैंड और वेल्स में तलाक में 28% की गिरावट आई। उसी अवधि के दौरान इंग्लैंड और वेल्स में 65 वर्ष और उससे अधिक आयु के पुरुषों की संख्या में 23% की वृद्धि हुई, जबकि 65 वर्ष और उससे अधिक आयु की महिलाओं की संख्या में 38% की वृद्धि हुई। ये सारे मामले ग्रे डिवोर्स के थे।

अब विस्तार से जानें ग्रे डिवोर्स के बारे में - 

ग्रे डिवोर्स उस तलाक को कहा जाता है जो जीवन में बाद में होते हैं, आमतौर पर जब लोग 50 या उससे ज्यादा उम्र के होते हैं. जब दो लोग तकरीबन कई साल एक साथ रह लेते हैं और तब वे जिस तलाक को लेते हैं उसे ग्रे डिवोर्स कहते हैं. ग्रे डिवोर्स सफेद बालों से आया है जो बुढ़ापे में आम है. इन तलाकों में अक्सर ऐसे कपल शामिल होते हैं जिन्होंने एक साथ बच्चों का पालन-पोषण किया है, जीवन की चुनौतियों से गुजरे हैं और कई दशकों में एक साथ जिंदगी बिताई है. जीवन में बाद में इस तरह के रिश्तों को खत्म करना काफी मुश्किल हो सकता है. क्योंकि इसका मतलब है कि नए सिरे से एक जीवन शुरु करना.

ग्रे तलाक क्यूँ होता है - 

1- वित्तीय मुद्दे - 

ग्रे डिवोर्स में वित्तीय मुद्दे एक प्रमुख कारक हैं. जब एक पति या पत्नी के बीच फाइनेंशियल मुद्दों को लेकर सहमति नहीं बन पाती है, तो इससे तनाव हो सकता है. कई बार पैसों को लेकर मतभेद का सामना भी करना पड़ता है. ऐसे में रिश्ते को आगे चलाना मुश्किल हो जाता है. कुछ मामलों में, समस्याएं तब बढ़ती हैं जब एक साथी ही पैसा कमाता है और वित्तीय निर्णय लेता है. इससे  रिश्ते में असंतुलन और नाराजगी पैदा होती है. 

2- एक दूसरे के प्रति वफादार न रहना 

ग्रे डिवोर्स में एक दूसरे के प्रति वफादार न रहना एक और बड़ा मुद्दा है. कई बार शादीशुदा कपल रिश्ते में बेवफाई कर देते हैं. वे अपने पति या पत्नी का स्थान अपने लिव इन पार्टनर को दे देते हैं, ऐसे में तलाक लेना एक आखिरी विकल्प रह जाता है.

3. रिश्ते में दूरी बढ़ना 

ग्रे डिवोर्स का एक बड़ा कारण पति पत्नि के बीच में दूरी का बढ़ना है. कई कपल बच्चों के बड़े होने तक इंतजार करते हैं और बच्चों के बड़े होने पर ग्रे डिवोर्स ले कर एक दूसरे से अलग हो जाते हैं. 

4. मादक पदार्थों की लत 

मादक पदार्थों की लत भी ग्रे डिवोर्स का कारण बन सकती है. चाहे वह ड्रग्स, शराब, जुआ या अश्लील लिटरेचर हो. किसी भी तरह के नशे की लत शादी पर बुरा असर डालती है. जब एक साथी अपने परिवार की जरूरतों पर अपने नशे को प्राथमिकता देता है, तो इससे परिवार को बिखरते देर नहीं लगती. नशे की यह लत पति हो या पत्नी दोनों पर ही इस कदर हावी हो जाती है कि बार बार इसे छोड़ने का वायदा कर भी वे निभा नहीं पाते और नशे की लत के गुलाम होकर अपना खुशहाल परिवार उजाड़ देते हैं. 

5- मनोवैज्ञानिक कारण 

मनोवैज्ञानिक और विवाह परामर्शदाता शिवानी मिस्री साधु के अनुसार ग्रे डिवोर्स के निम्न लिखित मनोवैज्ञानिक कारण भी हो सकते हैं - 

अ-खाली घोंसला सिंड्रोम:

    जब बच्चे घर छोड़ देते हैं, तो  पति पत्नी के जीवन में एक खालीपन सा आ जाता है, उन्हें यह एहसास होता है कि अब उनके कोई साझा लक्ष्य या रुचियां नहीं रहीं, जिससे उन्हें अपने विवाह का पुनर्मूल्यांकन करना पड़ता है।

ब-सेवानिवृत्ति:

   सेवानिवृत्ति के बाद, दम्पति एक-दूसरे के साथ अधिक समय बिताने लगते हैं उनकी दिनचर्या में परिवर्तन आ जाता है, बच्चों को भी उनका ज्यादा घर में रहना, टोका टाकी करना चुभने लगता है क्योंकि अभी तक के जीवन में माता पिता के पास उनके लिए समय नहीं था और अब बच्चों के पास माँ बाप के लिए समय खतम हो चुका होता है परिणामस्वरूप, सेवानिवृत्ति की आयु में वे किस प्रकार जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, इस पर मतभेद उत्पन्न हो जाता है। 

स-जीवन प्रत्याशा में वृद्धि:

 स्वास्थ्य सुविधाओं में वृद्धि के कारण आज जीवन प्रत्याशा दर अधिक है और लोग लंबे समय तक जीवित रहते हैं, इसलिए शादीशुदा जोड़े समय के साथ खुद को अलग होते हुए पाते हैं और नए तरीकों से व्यक्तिगत संतुष्टि की तलाश करना चाहते हैं।

द-वित्तीय स्वतंत्रता:

   आज महिलाएं अधिक स्वतंत्र हैं क्योंकि वे पढ़ी लिखी हैं उनके पास अपना कैरियर और सभी वित्तीय संसाधन हैं, जो उन्हें असंतोषजनक विवाह से बाहर निकलने और अपने दम पर जीने का साधन प्रदान कर रहे हैं। 

य-बदलते सामाजिक दृष्टिकोण:

    समाज अब तलाक की अवधारणा को स्वीकार कर रहा है, जिससे वृद्धों के लिए इस विकल्प पर विचार करना आसान हो रहा है।

6-ग्रे डिवोर्स के कारण वैश्विक स्तर पर 

     वैश्विक स्तर पर तलाक पर किये गए तमाम शोधों से पता चलता है कि ग्रे डिवोर्स के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तीन सबसे बड़े कारण होते हैं:

1. एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम - 

    एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम वह टर्म है जिसके बारे में अभी मनोवैज्ञानिक शिवानी मिस्त्री साधु ने भी बताया था कि यह वह अवसाद है जिसका उपयोग उस हानि या दुःख को बयां करने के लिए किया जाता है जो माता-पिता तब महसूस करते हैं जब उनका आखिरी बच्चा भी घर छोड़ देता है। एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति को नींद कम आती है। चेहरे पर उदासी छाई रहती है। कभी-कभी व्यक्ति क्रोधित हो उठता है। इस दौरान वह खुद को नुकसान भी पहुंचाने की कोशिश करता है।

2. रिटायरमेंट के साइड इफेक्ट्स -

     नौकरी या काम से रिटायरमेंट के बाद अपने जीवनसाथी के साथ चौबीसों घंटे समय बिताना सुखद लग सकता है, लेकिन ऐसा होता नहीं है, एक लम्बे समय तक जीवन में निश्चित समय सीमा में मिलना शादीशुदा जोड़ों की प्राथमिकताओं में परिवर्तन ला देते हैं. कपल्स को लग सकता है कि उनकी रुचियां और लक्ष्य अब मेल नहीं खा रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर कपल्स को महसूस होता है कि हम दोनों में काफी असमानता है। यही असमानता ग्रे डिवोर्स की इच्छा को बढ़ावा दे सकती है।

3. स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं -

    उम्र के इस पड़ाव पर होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी ग्रे डिवोर्स के आंकड़ों को बढ़ा रही हैं। दरअसल रिटायरमेंट के बाद कई आम स्वास्थ्य समस्याएं आ सकती है जैसे तनाव का बढ़ना, यौन इच्छा में कमी आदि। इसके अलावा कुछ गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं वित्तीय संकट को जन्म देती हैं। बुढ़ापे में इसी तरह के उथल-पुथल कपल को ग्रे डिवोर्स की ओर ले जाते हैं।

* ग्रे डिवोर्स लेने वाले प्रसिद्ध नाम 

 जैसा कि हमने आपको पहले ही बता दिया था कि ग्रे डिवोर्स लेने वाले पश्चिमी देश हों या भारत, मिलेंगे आपको उच्च वर्ग, हॉलिवुड, टोलिवुड या बॉलीवुड में ही जैसे कि एलिजाबेथ टेलर, जेफ बेजोस, मॉर्गन फ्रीमैन और रॉबिन विलियम्स जैसी कई मशहूर विदेश हस्तियों ने ग्रे डिवोर्स लिया है। वहीं बात भारत की करें तो इस फेहरिस्त में बॉलीवुड की ऐसी कई सेलिब्रिटी हैं जिन्होंने इसी ट्रेंड को फॉलो किया है, इनमें मलाइका और अरबाज, किरण राव और आमिर खान,अर्जुन रामपाल और मेहर जेसिया, कमल हासन, आशीष विद्यार्थी और कबीर बेदी जैसे ढेरों नाम शामिल हैं।

*ग्रे डिवोर्स के सम्भावित परिणाम 

     यूं तो तलाक लेना कभी भी आसान नहीं हो सकता क्योंकि ये दिल का रिश्ता होता है, दिल से जुड़ा होता है इसीलिए तलाक हमेशा परेशान करने वाला होता है और ग्रे डिवोर्स काफी ज्यादा परेशान करने वाला होता है क्योंकि ग्रे डिवोर्स में जिस इंसान के साथ इतना लंबा वक्त बिताया हो, सुख-दुख, खुशियां परेशानियां साथ झेली हों, उससे अलग होना पड़ता है । ये अलगाव किसी सदमे की तरह होता है। कुछ लोग इस सदमे से उबर जाते हैं तो कोई इसमें ही डूब कर रह जाता है, जीवन के अंतिम वर्षों में अपने जीवन साथी से अलग होने का निर्णय एक चुनौती की तरह ही होता है जिन पर विचार विमर्श किया जाना जरूरी है । ग्रे तलाक के संभावित परिणाम कुछ इस प्रकार हैं:

1- आर्थिक प्रभाव - 

     संपत्तियों का बंटवारा, खास तौर पर रिटायरमेंट फंड का बंटवारा एक जटिल काम हो सकता है और इससे दोनों पक्षों की आर्थिक सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। इसमें गुजारा भत्ता, आर्थिक स्तर आदि पर विचार किया जाता है।

2-स्वास्थ्य सुरक्षा :

    वृद्धों को स्वास्थ्य देखभाल की बहुत अधिक आवश्यकता होती है और तलाक के कारण बीमा कवरेज और स्वास्थ्य देखभाल जिम्मेदारियों का विभाजन जटिल हो सकता है और कानूनन यह सब पति के जिम्मे ही आता है क्योंकि आर्थिक रूप से पत्नी को लगभग पति पर ही निर्भर माना जाता है और उसका स्तर पिता के बाद पति के स्तर पर ही आधारित किया जाता है. 

3-मनोवैज्ञानिक प्रभाव:

    किसी भी उम्र में तलाक मानसिक रूप से सबसे ज्यादा प्रभावित करता है जो उन वृद्धों के लिए कठिन होता है जो दशकों से एक साथ रह रहे हों। व्यस्क हो चुके बच्चों पर भी इसका प्रभाव महत्वपूर्ण होता है और उन्हें जिम्मेदारी बढ़ने का और परिवार की स्थिरता डगमगाने का खतरा लगने लगता है. 

4-सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन:

    प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और ऐसे में विवाह हो या तलाक दोनों ही उसकी सामाजिक स्थिति पर गहरा प्रभाव डालते हैं. तलाक के कारण सामाजिक दायरे में बदलाव आ सकता है, क्योंकि दोस्त और परिवार के लोग पक्ष लेना शुरू कर सकते हैं या अलग हो सकते हैं, या नए सिंगल व्यक्तियों के साथ मिलने में असहज महसूस कर सकते हैं। नतीजतन, नए सिंगल व्यक्ति को अकेलापन महसूस होने लगता है और उसे एक नया सामाजिक नेटवर्क बनाने की आवश्यकता होती है जो कि 50 वर्ष के होने के बाद एक बेहद कठिन कार्य होता है. 

5- दैनिक जीवन में बदलाव :-

रहने सहने की व्यवस्था में बदलाव, पारिवारिक घर छोड़ना, तनावपूर्ण हो सकता है शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से कष्ट पूर्ण हो सकता है और इसमें समायोजित होने में कुछ समय लगता है और कभी कभी यह समायोजन ताउम्र नहीं हो पाता है क्योंकि बुढ़ापे में अकेले रहना जटिल है। 

6-कानूनी पहलुओं पर विचार :-

 50 साल के बाद के जीवन में तलाक काफी थका देने वाला हो सकता है, क्योंकि पति पत्नी को इसके लिए कई कानूनी पहलुओं से गुजरना पड़ता है, जैसे अगर वसीयत की हो तो उसे अपडेट करना , लाभार्थियों के पदनाम, तथा पावर ऑफ अटॉर्नी  आदि की नियुक्ति करना, अपनी इच्छा के अनुसार अपनी बात ऊपर रख पाना, अपने सहयोगियों को उचित सम्मान देना और यह सुनिश्चित करना कि सम्पत्ति सुरक्षित है।

 इस तरह से अगर देखा जाए तो तलाक हमेशा मानसिक रूप से  कष्टदायक होते हैं. लेकिन ग्रे डिवोर्स और भी ज्यादा कष्टदायक हो सकता है. उम्र के उस पड़ाव पर जब हम एक दूसरे के आदी हो चुके होते हैं, दूसरे के बिना अपने जीवन की कल्पना भी हम नहीं कर सकते हैं. कई साल, लगभग आधा जीवन एक साथ बिताने के बाद अलग होने का निर्णय, जीवन की दोबारा शुरुआत करने के समान ही है जो कि बहुत भारी लग सकता है. ऐसे में, जल्दबाजी न करते हुए यदि किसी मनोवैज्ञानिक की, हेल्प ग्रुप की या फैमिली एडवोकेट की मदद ली जाए, शुभचिंतक के सामने अपनी समस्या रखी जाए तो समस्या भी टल सकती है और ग्रे डिवोर्स भी, जो कि अंततः टल ही जाना चाहिए क्योंकि उम्र के इस पड़ाव पर अगर कोई सच्चा साथी होता है तो वह आपका जीवनसाथी होता है न कि आपके बच्चे या करीबी रिश्तेदार.

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली) 

बुधवार, 14 अगस्त 2024

कोई अंत नहीं है इस दरिंदगी का - कोलकाता केस

 निर्भया केस के बाद से निरंतर ही राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के विरूद्ध अपराधों पर मीडिया व जनता जागरूक रहे हैं किंतु यह एक ऐसा नासूर बन चुका है कि कोई समाधान नजर नहीं आता है। कोलकाता में ट्रेनी महिला डाक्टर के साथ हुई बलात्कार के बाद हत्या की दरिंदगी दिल दहला देने वाली है। एक के बाद एक होने वाली ऐसी दरिंदगी का कोई समाधान न सरकार के पास है और न ही प्रशासन व समाज के पास। पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखिये। दिल दहल जायेगा -

ट्रेनी डॉक्टर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला है कि उसे जननांगों पर अत्याचार किया गया था। रिपोर्ट में बताया गया है कि आरोपी संजय रॉय ने उसे इतनी जोर से मारा था कि उसके चश्मे का शीशा टूट गया और उसकी आंखों में छर्रे घुस गए। रिपोर्ट में बताया गया है, "उसकी दोनों आंखों और मुंह से खून बह रहा था और चेहरे पर चोटें थीं। पीड़िता के गुप्तांगों से भी खून बह रहा था। उसके पेट, बाएं पैर, गर्दन, दाहिने हाथ, अनामिका और होंठों में भी चोटें थीं।"

पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा संचालित आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के सेमिनार कक्ष में शुक्रवार सुबह महिला स्नातकोत्तर प्रशिक्षु का शव मिला। अस्पताल परिसर में अक्सर आने वाले बाहरी व्यक्ति संजय रॉय को शनिवार को गिरफ्तार किया गया। उसे बुरी तरह से घायल करने और यौन उत्पीड़न करने के बाद आरोपी ने प्रशिक्षु डॉक्टर का गला घोंटकर और गला घोंटकर उसकी हत्या कर दी। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मौत का समय शुक्रवार को सुबह 3 से 5 बजे के बीच रहा होगा।