बुधवार, 26 जून 2013

सुसाइड नोट-एक लघु कथा

Suicide -
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'' विप्लव हमें शादी कर लेनी चाहिए ..'' सुमन ने विप्लव के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा .विप्लव झुंझलाते हुए बोला -'' ..अरे यार .. तुम यही बात लेकर बैठ जाती हो ...कर लेंगें ''  सुमन उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और अपने बैग से टिफिन निकालते हुए विप्लव से बोली -'' ...ओ.के.  ...मैं तो यूँ ही ...बस घबरा जाती हूँ ...इसीलिए कह रही थी कहीं हमारे शारीरिक संबंधों का पता घरवालों को न हो जाये ....लो ये गाज़र का हलवा खाओ  .''  टिफिन का ढक्कन खोलकर विप्लव की ओर बढ़ा दिया सुमन ने .विप्लव भी सामान्य होता हुआ बोला -''...अब देखो  कोई जबरदस्ती तो की नहीं मैंने तुमसे .तुम्हारी सहमति से ही तो हमने संबंध बनाये हैं .तुम घबराती क्यों हो ?'' यह कहते हुए विप्लव ने हलवा खाना शुरू कर दिया .अभी आधा टिफिन ही खाली कर पाया था की विप्लव का सिर चकराने लगा और मुंह से झाग निकलने लगे .शहर से बाहर खेत के बीच में विप्लव का तड़पना चिल्लाना केवल सुमन ही सुन सकती थी .विप्लव ने सुमन की गर्दन अपने पंजें से जकड़ते हुए कहा -'' साली ...हरामजादी ....मुझसे धोखा ....जहर मिलाकर लाई थी हलवे में !''ये कहते कहते उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी .सुमन ने जोरदार ठहाका लगाया और फिर दाँत भींचते हुए बोली -''...कुत्ते जबरदस्ती नहीं की तूने ....हरामजादे धोखा मैंने दिया है तूझे ...प्यार का नाटक कर शादी के ख्वाब दिखाकर नोंचता रहा मेरे बदन को और अब कहता है यही बात लेकर बैठ जाती है ...कमीने मेरी छोटी बहन को भी हवस का शिकार बनाना चाहता था तू ....उसने बताया कल उसे अकेले में पकड़ लिया था तूने ...सूअर अब तू जिंदा रहने लायक नहीं है ..न जाने क्या क्या कुकर्म करेगा तू ..जा और पाप करने से बचा लिया तुझे ..''  सुमन ने देखा विप्लव अब ठंडा  पड़ने लगा था .सुमन ने टिफिन में बचा हलवा खाना शुरू कर दिया .हलवा खाते  खाते  उसने बैग से एक  कागज  निकाला  और अपनी बांयी हथेली में कसकर पकड़ लिया ..............अगले दिन अख़बार में खबर छपी -''ऑनर किलिग़ के डर से एक प्रेमी युगल ने आत्महत्या कर ली .प्रेमिका के पास से मिला सुसाइड नोट ''

शिखा कौशिक  'नूतन  '

12 टिप्‍पणियां:

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

शुभप्रभात
सच्चाई ब्यान करती
अभिव्यक्ति पर क्या कहूँ
हार्दिक शुभकामनायें

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (27-06-2013) को बहुत बंट चुके हम अब और न बांटो ( चर्चा - 1288 )
मे "मयंक का कोना"
पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown ने कहा…
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Unknown ने कहा…
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Shikha Kaushik ने कहा…

THNKS VIBHA JI ,SHASTRI JI AND BRIJESH JI

दिगम्बर नासवा ने कहा…

कितनी कडुवी सच्चाई को लिखा है इस मार्मिक कहानी में ...

Darshan jangra ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

बेनामी ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति..

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुन्दर भाव...बहुत अच्छी रचना...बहुत-बहुत बधाई...

रश्मि शर्मा ने कहा…

अच्‍छी रचना...

Ranjana verma ने कहा…

झकझोर दिया कहानी ने... बहुत अच्छी प्रस्तुति !!

Ranjana verma ने कहा…

झकझोर दिया कहानी ने... बहुत अच्छी प्रस्तुति !!