मंगलवार, 4 जून 2013

5 जून पर्यावरण दिवस :धरती माँ की चेतावनी



दुश्मन न बनो अपने ,ये बात जान लो ,
कुदरत को खेल खुद से ,न बर्दाश्त जान लो .

चादर से बाहर अपने ,न पैर पसारो,
बिगड़ी जो इसकी सूरत ,देगी घात जान लो . 

निशदिन ये पेड़ काट ,बनाते इमारते ,
सीमा सहन की तोड़ ,रौंदेगी गात जान लो .

शहंशाह बन पा रहे ,जो आज चांदनी ,
करके ख़तम हवस को ,देगी रात जान लो .

जो बोओगे काटोगे वही कहती ''शालिनी ''
कुदरत अगर ये बिगड़ी ,मिले मौत जान लो .

      शालिनी कौशिक 
           [कौशल ]

5 टिप्‍पणियां:

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना, बहुत सुंदर

Jyoti khare ने कहा…

पर्यावरण के संदर्भ में
रचना के माध्यम से सार्थक बात कही है
बहुत खूब


आग्रह है
गुलमोहर------

Shikha Kaushik ने कहा…

सराहनीय -सुन्दर पोस्ट हेतु आभार . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
BHARTIY NARI .

Satish Saxena ने कहा…

आप इतना सुंदर रचनाकार हैं , पता ही न था !
:(
बधाई और मंगल कामनाएं आपको !

Guzarish ने कहा…

सामयिक रचना बधाई जी