लघु कथा |
सुबह सुबह घर का मुख्य द्वार कोई जोर जोर से पीट रहा था .वसुधा रसोई में नाश्ता तैयार कर रही थी गगन दफ्तर जाने के लिए तैयार हो रहा था .वसुधा काम बीच में छोड़कर झींकती हुई किवाड़ खोलने को बढ़ गयी .किवाड़ खोलते ही उसकी चीख निकल गयी -'' पिता जी आप ....ये बन्दूक ...!!!'' गगन भी वहां पहुँच चुका था .वसुधा और गगन ने दो साल पहले प्रेम विवाह किया था घर से भागकर और अपने शहर से दूर यहाँ आकर अपनी गृहस्थी जमाई थी .वसुधा के पिता को न जाने कैसे यहाँ का पता मिल गया था . गगन की छाती पर बन्दूक सटाकर वसुधा के पिता गुस्से में फुंकारते हुए बोले -''...हरामजादी ...पूरी बिरादरी में नाक कटा दी .आज तेरे सामने ही इस हरामजादे का काम तमाम करूंगा !'' वसुधा दहाड़े मारकर रोने लगी तभी पायल की छन छन की मधुर ध्वनि के साथ ''माँ ...पप्पा ...'' करती हुई एक नन्ही सी बच्ची वसुधा की ओर दौड़ती हुई आई .वसुधा के पिता का ध्यान उस पर गया तो हाथ से बन्दूक छूट गयी और उन्होंने दौड़कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया . ''वसु ...मेरी छोटी सी वसु ..'' ये कहते हुए उन्होंने उसका माथा चूम लिया .वसुधा रोते हुए पिता के चरणों में गिर पड़ी और फफकते हुए बोली -''पिता जी मुझे माफ़ कर दीजिये .मैंने आपका दिल दुखाया है .'' गगन भी हाथ जोड़कर उनके चरणों में झुक गया .वसुधा के पिता ने झुककर दोनों को आशीर्वाद देते हुए कहा -'' आज अगर ये नन्ही सी वसु मेरी आँखों के सामने न आती तो न जाने दुनिया की बातों में आकर मैं क्या अनिष्ट कर डालता .मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों .''
शिखा कौशिक 'नूतन'
शिखा कौशिक 'नूतन'
11 टिप्पणियां:
काश समय रहते सब चेत पाते।
काश ! हम अपने विवेक का प्रयोग करें और औरों की बातें तौल कर उन पर ध्यान दें तो ऐसी घटनाएँ कभी न हों . अच्छी कहानी आभार !
sundar prernaspad kahani .aabhar
बहुत सुन्दर एवं प्रभावशाली प्रस्तुति .. आपकी यह रचना दिनांक ९/०६/२०१३ यानी रविवार को 'ब्लॉग प्रसारण' http://blogprasaran.blogspot.in/ .. पर लिंक की जा रहि है| कृपया पधारें , औरों को भी पढ़ें..
बहुत सुंदर रचना बधाई
बहुत सुंदर रचना बधाई
बहुत अच्छी कहानी !
प्रेरक कथा ...
vicharaneey prashn kahs bachche ko ye dhyan bana rahe ki bachapan se maa baap kitana dular dete hai.
समय रहते ही चेतना बेहतर है...!
ईश्वर सबको सद्बुद्धि दे....!
hardik aabhar sateek tippaniyon hetu .
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