रविवार, 16 जून 2013

पितृ दिवस पर...जगतपिता .. पर एक रचना... .सृष्टि को आगे बढाने का क्रम----पिता-पुत्र का दायित्व ..डा श्याम गुप्त..

 पितृ दिवस  पर जगतपिता पर एक रचना-----  सृष्टि को आगे बढाने का क्रम----पिता-पुत्र का दायित्व     
यह सच है कि ,ईश्वर ने-
सृष्टि को आगे बढाने का बोझ ,
नारी पर डाल दिया, पर-
पुरुष पर भी तो..... |
अंततः कब तक एक पिता ,बच्चों को-
उंगली पकड़ कर चलाता रहेगा |
बच्चा स्वयं अपना दायित्व निभाये,
उचित,शाश्वत,मानवीय मार्ग पर चले, चलाये;
अपने पिता के सच्चे पुत्र होने का ,
दायित्व निभाये |

आत्मा से परमात्मा बनने का,
अणु से विभु होने का हौसला दिखाए;
मानव से ईश्वर तक की यात्रा पूर्ण करने का,
जीवन लक्ष्य पूर्ण कर पाए ,
मुक्ति राह पाजाये |

पर नर-नारी दोनों ने ही ,
अपने-अपने दायित्व नहीं निभाये ;
फैशन, वस्त्र उतारने की होड़ ,
पुरुष बनने की इच्छा रूपी नारी दंभ ,
गर्भपात, वधु उत्प्रीणन ,कन्या अशिक्षा,
दहेज़ ह्त्या,बलात्कार,नारी शोषण से-
मानव ने किया है कलंकित -
अपने पिता को,ईश्वर को , और--
करके व्याख्यायित  आधुनिक विज्ञान,
कहता है अपने को सर्व शक्तिमान ,
करता है ईश्वर को बदनाम ||

4 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

.बहुत सही बात कही है आपने आभार . बघंबर पहनकर आये ,असल में ये हैं सौदागर .
आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN "झुका दूं शीश अपना"

Shikha Kaushik ने कहा…

sach me nar v nari dono vimukh huye hain apne kartavyon se ...par nar jyada

virendra sharma ने कहा…

आत्मा से परमात्मा बनने का ,
अणु से विभु होने का हौसला दिखाए -
रचना सौदेश्य है लेकिन आत्मा परमात्मा नहीं बन सकती .परमात्मा तो सर्व आत्माओं का पिता है पुत्र पिता जैसा तो हो सकता है अपना पिता नहीं हो सकता .पिता के गुण उसमें हो सकते हैं पर वह पिता नहीं हो सकता .

om shanti

डा श्याम गुप्त ने कहा…

शर्मा जी ...क्या आपने प्रसिद्द काव्योक्ति नहीं पढी...the child is father of man...

-- यही तो उद्देश्य है जीवन का ...कि मानव स्वयं( आत्म ) को इतना ऊपर उठाये कि वह परमात्म-गुण संपन्न होजाए और 'गुणः गुणेषु वर्तते. ...सूत्र से स्वयं उसी गुण में लीन होजाती है ....इसी स्तर पर तो योग का अंतिम चरण है...

"जब में था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं...."
---जैसे ही आत्मा वह गुण धारण करती है दोनों अभिन्न तत्व होजाते हैं आत्मा स्वयं परमात्मा होजाती है उसमें लय होकर मुक्त होजाती है... ...तत्वमसि , अहं ब्रह्मास्मि, सोहं, अखिलो ब्रह्म आदि सूक्तों को चरितार्थ करती है... ....यही मुक्ति/ मोक्ष है, योग है, कैवल्य है , ब्रह्मप्राप्ति है .....