बुधवार, 31 अगस्त 2011

जीवन का लक्ष्य था समाज सेवा ...पुण्य तिथि पर विशेष

"स्व० श्रीमति सुगना राजपुरोहित"
  स्व० "श्रीमती सुगना कंवर राजपुरोहितजी" के जीवन पर एक नज़र
     "जीवन का लक्ष्य था समाज सेवा"
     

      "स्व० श्रीमति सुगना राजपुरोहित" एक नज़र मे तो एक सामान्य नारी की भाँति नज़र आती है ! लेकिन यह सोच इनकी जीवन शैली पढ़कर बदल जाएगी इन्होने अपने जीवन में तूफ़ानी झंझावतों
को झेलकर,
आँधियों को मोड़ कर, अंधकार को चीरकार, परेशानì7;यो को मसलकर एक नई राह बनाई और परिवार के साथ-साथ समाज सेवा में भी नाम रोशन किया! 
  इनका जन्म जोधपुर के एक छोटे से गाँव "कनोडीया" में सन् "जुलाई 1960 ई० मे (वि० स० 2017) लगभग में हुआ था! इनके पिता का नाम "स्व० श्री कौशल सिहं सेवड़" एक ज़मींदार किसान थे ! इनकी माता का नाम "स्व० श्रीमति मैंना देवी था ! माता पिता दोनो से सुगना कंवर उर्फ रत्न कंवर काफ़ी प्रभावित थी!


  माता पिता को अपना आदर्श मानती थी ! छ: भाई बहनो मे सुगना कंवर उर्फ रत्न कंवर सबसे छोटी थी इसलिए सबसे लाडली थी तथा इनके बड़े भाई "श्री भंवर सिह" (पूर्व एम० टी० ओफिसर आर० ए० सी० पुलिस राजस्थान) इनको प्यार से बाया बाई-सा" कहते थे ! इनके समय मे गाँव मे लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता था!


  इनकी शिक्षा बड़े भाई के द्वारा घर पर हुई थी, इनके पिता "स्व० श्री ठा० कौशल सिंह" ने अपनी पुत्री को सदैव सत् संस्कार तथा समाज़ सेवा की सीख दी, साथ ही प्रभु कृपा से इनमे मानवीय गुण कूट-कूट कर भरे थे!
इनको बचपने से ही धार्मिक विचारो एंव समाज सेवा मे रूचि थी इनके पिता का समाज मे काफ़ी नाम था, इसलिए लोग आज भी उन्हे याद करते हैं , इसलिए इनकी रूचि समाज़ सेवा के प्रति और आकर्षित हुई!
 इनकी शादी मात्र "16 वर्ष की अल्प आयु" मे श्री बिरम सिंह पुत्र श्रीमान ठा० सुजान सिंह सिया" गाँव "मेघालासिया" जिला "जोधपुर" मे हुआ था ! इनकी माता जी सदैव कहती थी ! हमारी "रत्न" बहुत छोटी है ! लेकिन इन्होने परिवार की ज़िम्मेदारी बहुत जल्दी ही संभाल ली थी ! इनके देवर बहुत छोटे थे ! जिनकी देखभाल (परवरिश) भी इनको ही करनी पड़ती थी  क्योंकि इनकी सासू माँ का स्वर्गवास इनकी शादी से कुछ वर्ष पूर्व हुआ था इसलिए अपने तीन देवरो व एक ननद की ज़िम्मेदारी भी इनके कंधो पर थी उन्हे अपने पैरो पर खड़ा किया और इसके लिए इनको काफ़ी संघर्ष का सामना करना पड़ा था ! इनके तीन पुत्र एंव दो पुत्री थी ! जिनकी परवरिश बखूबी पूर्ण की इन्होने कभी हिम्मत नही हारी (जीवन के हर सफ़र में)!
 
         इनकी समाज सेवा मे बचपन से ही नाता रहा है ! इसलिए शादी के बाद भी परिवार की ज़िम्मेदारियों के साथ- साथ समाज़ सेवा में बहुत योगदान दिया था ! इनके सहयोग से आयोजित "प्राक्रतिक चिकित्सा शिविर" कई स्थानो पर सफलता पूर्ण किए गये तथा जिससे प्राक्रतिक चिकित्सा के प्रति लोगो की रूचि बढ़ी तथा इस चिकित्सा पद्धति के लोगो को जागरूक किया तथा ये शिविर आज भी लगाए जाते है यह सब इनके प्रयास से ही संभव हुआ था !
    इनके परिवार की गिनती आज "समाज सेवा" परिवरो में होती है ! इन्होने जीवन के अंतिम समय में भी एकता की मिसाल दी थी! इसका ही उदाहरण है कि परिवार से जिन सदस्यो ने आपस मे दूरी बना ली थी! वे फिर से संगठित हो गये परंतु विधि के विधान के अनुसार 48 वर्ष की अवस्था में 1 सितंबर 2008 दिन सोमवार(हिन्दी माह वि० स० 2065 भादवा सुदी द्वितीया में) हमें छोड़कर स्वर्गवासी हो गई! 

 स्व० श्रीमती सुगना कंवर" कहती थी -
                    "जो जीवन दूसरों के काम आए तो उसे ही जीवन कहते हैं जो दूसरो के दुख मे दुखी और सुख मे सुखी होता है उसे इंसानियत कहते है!"
 
किसी ने ठीक कहा है! 

यू तो दुनिया में सदा रहने कोई नहीं आता है! 
     आप जैसे गई इस तरह कोई नहीं जाता है
इस उपवन् का दायित्व सौंपकर इतनी 
  जल्दी संसार से कोई नही जाता है!
 
आभार
http://suganafoundation.blogspot.com

आप सभी को भारतीय नारी ब्लॉग और सुगना फाऊंडेशन मेघलासिया की तरफ से ईद के पावन अवसर पर बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें! 

प्रस्तुतकर्ता- सवाई सिंह
   

अर्धांगनी

अश्रुनयनों में भर लाती है,
ह्रदय प्रेम का कर के समावेश,
युग युग हो सुहाग अमर,
सिंदूर का कराती है माँग में प्रवेश।
पलक पावड़े राहों में बिछा के,
ईश्वर से करती है प्रार्थना,
प्रियतम मेरे युग युग जिये,
माँगती है मन से ये दुआ।

न्योछावर करती है अपना सम्पूर्ण जीवन,
चिर संरक्षित कौमार्यता यौवन।

पति परमेश्वर के हर्षोल्लास हेतु,
सति करती है यज्ञ का तिरस्कार,
स्वआहुति देकर तन की,
निभाती है अर्धांगनी का संस्कार।

पाषाण अहिल्या बन जाती है,
प्रियतम होते है जब रुष्ट,
सति अनुसुया के सतित्व से प्रेरित,
यमराज भी करते है अर्धांगनी को संतुष्ट।

उपवास,वर्त और पूजा,
पति ना हो मुझसे जुदा,
तेरे आँगन की तुलसी मै,
महकूँ तेरे घर में हर क्षण सदा।

ये तीज वर्त,ये प्यार तुम्हारा,
पावन गंगा सा रिश्ता हमारा।

फूलों की बगिया सजती रही,
दो फूल जो बगियाँ में खिले।

मेरी उम्र सारी तुमको लगे,
तन मेरा सुहागिन मरे,
प्रियतम मै रहूँ ना रहूँ कल,
तुम्हारा यश फैले सदा।

अस्तित्व तुम्हारा ही दिलाता है,
मेरी आत्मा को तन में जिंदा।

अर्धांगनी पत्नी तुम्हारी,
तेरे प्रेम की मतवाली है,
अब बाट ना जोह सकेगी,
अधीर,अकुलाई तेरी बावली है।

फलिभूत होगा हर वर्त,पूजा,
जब प्राण पखेड़ु छुटेंगे,
तेरी गोद में मिलेंगे सौ स्वर्गो का सुख,
स्व नैना से जो तुमको देख लेंगे।

सोलह सोमवारी,करवा चौथ,तीज,
का चाँद मुझे यूँ दृश्य होगा,
अंतिम क्षण हो जब श्वास विहीन,
प्रियतम मेरा जो समीप होगा।

जन्मदिवस मुबारक हो अमृता जी!

अधूरे प्रेम की प्सास के दस्तावेजों की सर्जक अमृता!भाग 6

पिछले माह जुलाई में जब भारतीय नारी ब्लाग पर अमृमा प्रीतम के बारे में लिखने की श्रंखला प्रारंभ की थी तो मेरी यह योेजना थी कि प्रति सप्ताह औसतन दो पोस्ट लिखते हुये अमृता जी के जन्म दिवस 31 अगस्त को इसका समापन करूँगा परन्तु कुछ कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो न सका। एक तो यह पूरा महीना स्वतंत्र भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे की गांधीवादी लडाई के चलते इस विषय से संबंधित आलेखों के सामयिक महत्व का रहा और दूसरे भारतीय नारी ब्लाग पर संस्थापको द्वारा अगस्त महीने के लिये बहन विषय नियत कर दिया गया।
वहरहाल , बहन विषय पर तो अमृताजी के संबंध में भी कुछ सामग्री जुटा पाया जिसे आपके साथ साझा भी किया, इसी विषय पर अमृता जी से जुडी कुछ सामग्री और है जिसे व्यवस्थित न कर पाने के कारण नहीं प्रस्तुत कर सका अब इसे भैया दूज या ऐसे ही किसी अन्य अवसर पर साझा करूंगा। इसके अतिरिक्त अन्य विभूतियों के जीवन से जुडी बहन विषयक सामग्री को भी प्रस्तुत करने का प्रयास करता रहा। आज जब इस माह का अंतिम दिन है और साथ ही अमृता प्रीतम जी का जन्म दिवस भी है तो इस अवसर पर अपनी पूर्व योजनानुसार भारतीय नारी ब्लाग पर उन्हे याद करने के अवसर को चूकना नहीं चाहता सो यह पोस्ट प्रस्तुत कर रहा हूँ।
अमृता प्रीतम जी की कलम उन विषयों पर चली जो सामान्यतः भारतीय नारी के सामाजिक सरोकारों से इतर थे। जहाँ अमृता जी के अन्य समकालीन लेखकों द्वारा भारतीय नारी की तत्कालीन सामाजिक परिवेश में उनकी व्यथा और मनोदशा का चित्रण किया है वहीं अमृता जी ने अपनी रचनाओं में इस दायरे से बाहर निकल कर उसके अंदर विद्यमान ‘स्त्री’ को मुखरित किया है। ऐसा करते हुये अनेक अवसरों पर वे वर्जनाओं को इस सीमा तक तोडती हुयी नजर आती हैं कि तत्कालीन आलोचकों की नजर में अश्लील कही जाती थीं।

चित्र 1 पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के अप्रैल 2003 में लिखा गया लेख
अमृता जी ने अपना जीवन वर्जनाओं का न मानते हुये वेलौस जिया, और जो कुछ किया उस पर पक्के रसीदी टिकट की मुहर लगाकर सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी कर लिया। वह भले ही सामाजिक परिवेश में ग्राह्य रहा हो या न रहा हो। उन्होंने अपने जीवन के चालीस वर्ष साहिर लुधियानवी की किताबों के कवर डिजायन करने वाले चित्रकार इमरोज के साथ बिताये। नई दिल्ली के हौजखास इलाके का मकान के-25 इन दोनो के सहजीवन के 40 वर्षो का मौन साक्षी रहा है। अपने जीवन के अंतिम पडाव में भी अमृताजी इमरोज के साथ ही थीं।
इमरोज के अमृता से लगाव की कल्पना आप इस छोटे सक तथ्य से लगा सकते हैं कि इमरोज की नजरों में वे आज भी गुजरे कल की बात (पास्ट) नहीं हैं। वर्ष 2003 में जब अमृता जी जीवित थीं तो जागरण ग्रुप की पत्रिका सखी के लिये पत्रकार मनविन्दर कौर द्वारा उनके घर नई दिल्ली के हौज खास जाकर उनसे और इमरोज से बातचीत की गयी थी जो सखी के अप्रैल 2003 में प्रकाशित हुई थी। कालान्तर में जब अमृता जी नहीं रहीं तो 2008 में लेखिका मनविन्दर कौर ने पुनः हौज खास जाकर यह टोह लेने का प्रयास किया कि अमृता के न रहने के बाद उनके बगैर इमरोज कैसा अनुभव कर रहे है तो इमरोज का उत्तर उनके लिये हैरत में डालने वाल था। इमरोज ने कहा था किः-
‘ अमृता को पास्ट टेन्स मत कहो, वह मेरे साथ ही है, उसने जिस्म छोडा है साथ नहीं।’

चित्र 2 अमृता जी नई दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थी (घर का चित्र रंजना रंजू भाटिया के ब्लाग ‘अमृता प्रीतम की याद में.......’ से साभार) इस घर के प्रवेश द्वार पर आज भी इमरोज द्वारा डिजायन की गयी अमृता प्रीतमजी के नाम की ही पट्टिका लगी है। इमरोज यह बखूबी जानते थे कि अमृता का प्यार साहिर लुधियानवी थे लेकिन उन्होंने अपनी और अमृता की दोस्ती में इस बात को कभी भी किसी अडचन या अधूरेपन के रूप में नहीं देखा। साहिर लुधियानी के बारे में उनका कहना हैः-
‘साहिर के साथ अमृता का रिश्ता मिथ्या और मायावी थ जबकि मेरे साथ उसका रिश्ता सच्चा और हकीकी, वह अमृता को बेचैन छोड गया और मेरे साथ संतुष्ट रही।’
पिछले वर्ष रंजना (रंजू भाटिया) जी ने अपने ब्लाग ‘अमृता प्रीतम की याद में.......’ पर बरसों पहले इमरोज से हुयी बातचीत का एक हिस्सा प्रस्तुत किया था जिसमें उन्होंने यह सवाल किया था इस घर में अमृता का कमरा बाहर तथा इमरोज का कमरा अंदर क्यों है? इस पर इमरोज के द्वारा दिया गया उत्तर अमृता के प्रति इमरोज के लगाव का जो चित्र खींचता है वह अद्वितीय हैः-
‘मैं एक आर्टिस्ट हँू और वह एक लेखिका पता नहीं कब वो लिखना शुरू कर दे और मैं पेंटिंग बनाना। इतना बडा घर होता है फिर भी पति पत्नी ऐक ही बिस्तर पर क्यों सोते हैं ? क्योंकि उनका मकसद कुछ और होता है। हमारा ऐसा कुछ मकसद नहीं था इसलिये हम अलग सोते थे। सोते वक्त अगर मैं हिलता तो उसे परेशान होती और अगर वह हिलती तो मुझे । हम एक दूसरे को कोई परेशानी नहीं देना चाहते थे। आज शादियां सिर्फ औरत का जिस्म पाने के लिये होती हैं । मर्द के लिये औरत सिर्फ सर्विग वोमेन है कयांेकि वह नौकर से सस्ती होती है। एसे लोगों को औरत का प्यार कभी नहीं मिलता। आम आदमी को औरत सिर्फ जिस्म तक ही मिलती है प्यार तो किसी किसी को ही मिलता है। औरत जिस्म से बहुत आगे है , पूरी औरत उसी को मिलती है जिसे वो चाहती है।’

चित्र 3 इमरोज जिन्होने 40 वर्षो तक उनके साथ जीवन बिताया और आज भी उनके ही साथ रहते हैं ।

अमृता के प्रति इमरोज के इस गहरे भावनात्मक लगाव की तह में जाकर उस दिन की पडताल करने पर रंजना (रंजू भाटिया) जी को वह दिन भी दिखलाई पडा जब इमरोज ने अपना जन्मदिवस अमृता जी के साथ मनाया था। इस दिन को याद करते हुये इमरोज ने कहाः-
‘ वो तो बाइ चांस ही मना लिया। उसके और मेरे घर में सिर्फ एक सड़क का फासला था । मै उससे मिलने जाता रहता था। उस दिन हम बैठे बातें कर रहे थे तो मैने उसे उसे बताया कि आज के दिन मैं पैदा भी हुआ था। वो उठकर बाहर गयी और फिर आकर बैठ गई। हमारे गांव में जन्मदिन मनाने का रिवाज नहीं ,अरे पैदा हो गये तो हो गए, ये रिवाज तो अंग्रेजो से आया है। थोडी देर के बाद उसका नौकर केक लेकर आया। उसने केक काटा थोडा मुझे दिया और थोडा ख्ुाद खाया । ना उसने मुझे हैप्पी बर्थडे कहा और ना ही मैने उसे थैक्यू। बस दोनो एक दूसरे को देखते और मुस्कुराते रहे ।’
बस इसी तरह एक दूसरे को देखकर मुस्कुराना और बिना कुछ भी कहे सब कुछ कह जाने वाली भाषा के साथ जीने वाली अमृताजी आज हमारे बीच न हों लेकिन इस बात से इमरोज को कोई फर्क नहीं पडता क्योकि उनका मानना है कि वे उनके साथ तो आज भी हैं ना।

मंगलवार, 30 अगस्त 2011

अगस्त माह के विषय ''मेरी बहन '' पर प्रस्तुत रचनाएँ

'
'मेरी बहन '' विषय पर अगस्त माह में बहुत ही सुन्दर भावों व् सार्थक विचारों से युक्त रचनाएँ  प्रस्तुत की गयी .जो इस प्रकार  हैं -
*ये बंधन तो प्यार का बंधन हे-''मेरी बहन '' -ए. खरे जी

*सोहनी-महीवाल की भूमि पर भाई-बहन के प्रेम की अनोखी मिसाल ! भाग 4 -श्री अशोक शुक्ल जी

*बडे भैया की हसरतों ने बनाया उसे ‘तसलीमा नसरीन’ -श्री अशोक शुक्ल जी

*मेरी बहन- सुश्री दीप्ति शर्मा जी

*बहना मेरी - श्री प्रदीप कुमार साहनी जी

*हुमायूं और कर्मावती के बीच का प्रगाढ़ रिश्ता और राखी का मर्म -
डॉक्टर अनवर जमाल  जी

बहन हो तो ऐसी -जैसी शिखा कौशिक-सुश्री शालिनी कौशिक जी
*

*
 
रक्षा बंधन-सुश्री प्रेरणा अर्गल जी
 
         सुश्री कनु जी ने बहन समान सहेली से सम्बंधित एक पोस्ट प्रस्तुत कि-एक सच्चा किस्सा
 
सभी योगदान कर्ताओं का हार्दिक धन्यवाद .
 
मैं इन शब्दों के साथ अपनी भावनाओं का इज़हार करूंगी -शुक्रिया मेरी बहन ''शालिनी जी ''  का जिन्होंने पग-पग पर मेरा आत्म-बल बढाया -
 
फूलों में महक न हो तो वो क्या हैं ?
तारों में चमक न हो तो वे क्या हैं ?
 
आप जैसी बहन मिली मुकद्दर है हमारा
अगर आप न हो तो हम क्या हैं ?
 
हमारे  होठो   की मुस्कराहट  आप हैं
आप के बिन अगर पाई ख़ुशी  तो वो क्या है ?
 
रह  सकते हैं दोज़ख में भी खुश होकर
जुदा  होकर जो मिली जन्नत तो वो क्या हैं ?
 
ग़मों के दौर में हम साथ-साथ रोये हैं
हैं हम हमदर्द ये कहने की जरूरत क्या है ?
 
                        शिखा  कौशिक
 
 

कडवा सच


कडवा सच
            काश हम समझ पाती...........

                      
      हमारे पडौस में एक बुर्जग महिला अपने बेटे और बहु के साथ रहती है। एक दिन अचानक गई तो  देखा सासु मां ढेर से बर्तन मांज रही है व बहु रानी आराम से पत्रिका पढ रही है। उस समय तो मैं वापस आगई ।एक बार बहु की अनुपस्थित में उस महिला ने रूआसी होकर अपने दिल की बात बताई कि बहु उसको किस तरह सताती है और उसके साथ दुव्यवहार करती है मेरे कोई बेटी भी नही है जिसे दिल की बात बता सकू अब इस बुढापे में क्या कर सकती हूं।तू मेरी बेटी जैसी है किसे कहना मत ।
       यह कटु सत्य हैकि अधिकाश बहुए अपने सास-सुसर के साथ न तो रहना पसंद करती है,न ही उन्हें अपने साथ रखना ।बुर्जगों के साथ दुव्यवहार करने वाली महिलाए घर की सुख-शांति हर लेती है।
       बुर्जग घर की रौनक है जीवन संध्या में उन्हें सिर्फ प्यार,आदर और अपनेपन की जरूरत है ।दादा-दादी से हमारे बच्चों को संरक्षण मिलता है ।मेरा सपना है कि काश हर बहु ऐसा सोच पाती ताकि उनकी छत्र-छाया में हमारी भावी सभ्यता व संस्कृति फल-फूल सके।

      
                      श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
 प्रषेकः-                                          
                                                                                      
                           श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
                           अस्पताल चौराहा 
                           महादेव कॅंालोनी
                           बॉंसवाडा राज़

                                                                                     प्रस्तुतकर्ता-
                                                                              शिखा कौशिक 

सोमवार, 29 अगस्त 2011

घरकाजी और बाहरकाजी औरतों की समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है

http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/08/classification-of-working-women.html

कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन The classification of working women

आम तौर पर कामाकाजी औरत उस औरत को माना जाता है जो कि मर्दों की तरह घर से बाहर जाकर कुछ काम करती है और कुछ रक़म कमाकर लाती है। जबकि देखा जाय तो घर के काम काज भी काम काज की ही श्रेणी में ही आते हैं।
घर के कामों को भी काम काज की श्रेणी में रखा जाए तो कामकाजी औरतों का क्लासिफ़िकेशन यह है -
घरकाजी और बाहरकाजी
दोनों की समस्याएं हैं।
इन दोनों की ही समस्याओं पर विचार विमर्श करना ज़रूरी है।
जो औरतें अपने बाल बच्चों को छोड़ कर बाहर जाकर कमा रही हैं तो वे ऐसा मजबूरी में ही कर रही होंगी। बहरहाल औरत जिस हाल में , जिस मक़ाम पर अपनी योग्यताओं से काम लेकर देश का भला कर रही है, तारीफ़ के लायक़ है।
उन्हें सुरक्षा और सद्प्रेरणा देना हमारी ज़िम्मेदारी है।
जिस समाज की बेहतरी मंज़ूर हो तो उस समाज की औरतों को बेहतर बना दीजिए,

भारतीय नारी ब्लॉग पर सितम्बर माह का विषय ?

                     निवेदन 

 *  भारतीय नारी ब्लॉग के योगदानकर्ता  आने वाले माह में  किस विषय पर लिखना चाहेंगे ?
*इस ब्लॉग के पाठक किस विषय पर पढना चाहेंगें ?
                             इन विषयों  में से चुनें-
*दहेज़ प्रथा का जीवन पर कुप्रभाव 
*महिला सशक्तिकरण -दशा  व् दिशा 
*कामकाजी  नारी की समस्याएं 
                    अन्य कोई विषय आप सुझाना चाहें तो आपका हार्दिक स्वागत है .३१ अगस्त २०११ तक टिप्पणी रूप में सूचित करने की अनुकम्पा करें .
               
                                                   शिखा कौशिक 
                      http://bhartiynari.blogspot.com

रविवार, 28 अगस्त 2011

लघु कथा-समय नया -सोच वही


.                                       
                                           [फोटो बुक्केट से साभार ]
......शर्मा जी और सब तो ठीक है बस समीर चाहता है कि कनक बिटिया बाल नए फैशन के कटवा ले ......यू नो .....आजकल के लड़के कैसी पत्नी पसंद करते हैं !'' यह कहकर समीर के मामा जी ने फोन काट दिया .शर्मा जी असमंजस में पड़ गए ....आखिर ये कैसी डिमांड है ? शर्मा जी के पास बैठी उनकी पत्नी मिथिलेश बोली ''क्या कह रहे थे भाईसाहब ?' शर्मा जी मुस्कुराते हुए बोले ''मिथिलेश याद है तुम्हे शादी से पहले तुम किरण बेदी टाईप बाल रखती थी और मेरी जिद पर तुमने इन्हें बढा लिया था क्योंकि मै चाहता था कि तुममे लक्ष्मी जी का पूरा रूप दिखे पर .........आज देखो होने वाला दामाद चाहता है कि कनक अपने बाल कटकर छोटे करा ले .......कितने अजीब ख्यालात रखती है नयी पीड़ी !'' मिथिलेश व्यंग्य में मुस्कुराते हुए बोली ''नयी हो या पुरानी पीड़ी चलती तो पुरुष की ही है न !जाती हूँ कनक के पास ;उसे तैयार भी तो करना है बाल छोटे करवाने के लिए .''
                                                  शिखा  कौशिक  
                               [मेरी कहानियां ]

शनिवार, 27 अगस्त 2011

इन्टरनेट से मुट्ठी में है ज्ञान पर फिसल रही है संस्कारो की रेतःडा0 उषा यादव



27 अगस्त को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के सभागार में वैज्ञानिक उद्देश्यों को प्रोत्साहित करने के लिये बनायी गयी लखनऊ की संस्था ‘तस्लीम’ के साथ मिलकर हिंदी बाल साहित्य में नव लेखन पर ऐक संगोष्ठी में प्रतिभाग करना ऐसा ही था जैसे किसी टाइम मशीन पर सवार होकर बीते दिनों की सैर करना।
इस गोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डा0 श्याम सिंह शशि, संस्थान के नव नियुक्त अध्यक्ष डा0 प्रेम शंकर और संस्थान के पूर्व निदेशक (अब सेवानिवृत) डा0 विनोद चन्द्र पाण्डेय ‘विनोद’ और वर्तमान निदेशक श्री एस0एस0 सिंह के अतिरिक्त डा0 उषा यादव जी को भी सुनने का अवसर यहाँ उपलब्ध हो सका। जहाँ डा0 श्याम सिंह शशि की चिंता समाज के उन बालकों के संबंध में थी जो निम्न वर्ग, पिछडे वर्ग अथवा गैर सुविधाजनक स्कूलों में पढने जाते है वहीं विनोद चन्द पाण्डेय वर्तमान बाल लेखन से संतुष्ट दिखे।
लगभग सभी वक्ताओं के द्वारा इस बात पर बल दिया कि बच्चों के लिये साहित्य लिखते समय बाल मनोविज्ञान की समझ रखना जरूरी है जिससे उनकी लिखी रचनायें बच्चों के मन को भी छू सकें। अनेक आमंत्रित विद्धजन स्वयं तो उपस्थित न थे परन्तु उनके वक्तब्य गोष्ठी में पढे गये । इन्ही में से एक थीं डा0 सरोजनी कुलश्रेष्ठ, जिनका वक्तब्य हिंदी संस्थान की उपसंपादिका डा0 अमिता दुबे द्वारा पढा गया।
सबसे रोचक वक्तब्य रहा बाल साहित्य लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट पहचान रखने वाली डा0 उषा यादव जी का जिन्होंने बाल सहित्य में परंपरागत रूप से चिडिया, छाता, स्कूल जैसे विषयों पर लिखे जाने वाली कविता कहानियों को सिरे से खारिज करते हुये इस विषय की पुनरावृति को पूर्णतः नकल की श्रेणी में परिभाषित किया। उनका कहना था कि साहित्य वह है जो मौलिक हो और मौलिकता का तात्पर्य है वह विषय जो पूर्णतः अछूते हों।
दशको पूर्व रची गयी बाल रचनाओं में विषय पाटी और स्याही की दवात हुआ करती थी जबकि आज के परिपेक्ष्य में कम्प्यूटर और उसके माउस से बालक का परिचय होने के कारण इन नवीन विषयों पर लिखना प्रासंगिक है। संस्कार जैसे कुछ विषयों के संबंध में उनका मानना था कि वे शाश्वत है तथा उनके संबंध में लिखना आवश्यक है जिससे क्षरित होते सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा की जा सके । उनके द्वारा इसके संबंध में ऐक अनूठा उदाहरण दिया कि आज इन्टरनेट और अन्य संचार माध्यमों के कारण सारे संसार का ज्ञान हमारे बच्चों की मुट्ठी में समा तो गया है परन्तु इससे बच्चों में संस्काहीनता भी पनप रही है। उन्होंने आगाह किया कि ज्ञान से भरी इस भिंची मुट्ठी से संस्कारों की रेत लगातार फिसलती जा रही है हमें इसे सहेजना का प्रयास करना ही होगा।
इन वक्ताओ को सुनते हुये मुझे हिंदी संस्थान के इसी सभागार में वर्ष 2000 में राहुल फाउन्डेशन की ओर से आयोजित उस गोष्ठी की याद हो आयी जब सुप्रसिद्व चिंतक और विज्ञान लेखक श्री गुणाकर मुले द्वारा ‘समय से जुडे कालस्य कुटिला गतिः’ नामक विषय पर ऐक व्याख्यान को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ था उस संगोष्ठी में उन्होंने समयरेखा पर दार्शनिक तथा वैज्ञानिक यात्रा कराने का सुख श्रोताओं को उपलब्ध कराया था। कदाचित इस गोष्ठी में जाकर भी मैं उस टाइम मशीन पर सवार होकर लौटा हूँ जिसमें समय की धारा में पीछे लौटकर 1979 तक जा पहुँचा हूँ जहाँ मैने अपनी पहली कविता लिखी थी। यह कविता मेरे स्कूल की पत्रिका के साथ साथ साप्ताहिक समाचार पत्र‘गढवाल मंडल’ मे छपी थी। विद्यालय पत्रिका की प्रति न जाने कहाँ गुम हो गयी परन्तु समाचार पत्र की कतरन आज भी सहेजी रखी है। है।
आन्दोलनरत श्री अन्ना हजारे के उद्देश्यपूर्ण वातावरण में कदाचित आपको यह आज भी सार्थक जान पडे।


संकल्प(कविता)


हमको आगे बढना है , हिमगिरि पर भी चढना है।
हिम्मत करके हमको वीरों हमको कदम बढाना है।

हम भारत के श्रेष्ठ नागरिक हमको देश जगाना है।
इसी देश के हित में मरकर अमर हमें हो जाना है।

इस धरती पर जन्म लिया तो यही हमारा धाम है।
इसकी रक्षा में मर मिटना मात्र हमारा काम है।

माँ भारत का मान बढाना इसको नित चमकाना है ।
बढे देश का मान सदा ही यही ध्येय हो हम सबका।

सभी धर्म वाले भाई हैं भाव रह अपने पनका।
और छात्र को निष्ठा पूर्वक, नित्य नियम से पढन है।

गाँधी गौतम के सिद्धांतो को फिर से अपनाना है।
माँ के गौरव मस्तक पर नया मुकुट नित मढना है।

हमको आगे बढना है , आगे कदम बढाना हैं।
हमको आगे बढना है , हिमगिरि पर भी चढना है।

अशोक कुमार शुक्ला कक्षा 9 पौडी गढवाल
(मेरी प्रथम प्रकाशित कविता, रचनाकाल सन 1978, प्रकाशक-साप्ताहिक‘गढवाल मंडल)

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

फ़ोर्ब्स की सूची :कृपया सही करें आकलन


आज के समाचार पत्रों का एक मुख्य समाचार-''सोनिया सातवीं शक्तिशाली महिला''/सबसे शक्तिशाली महिलाओं में  सोनिया''
     अभी कल ही फ़ोर्ब्स मैगजीन  ने विश्व की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची जारी की और   उसमे सोनिया गाँधी जी को विश्व में  सातवाँ स्थान दिया गया है.सूची में भले ही महिलाओं की विश्व में शक्ति  और योग्यता के अनुसार  आकलन किया गया हो किन्तु यह कहना कि यह सूची सही है मैं नहीं कह सकती क्योंकि विभिन्न क्षेत्रों की महिलाओं को एक जगह   जोड़ कर आकलन करना  सही प्रतीत नहीं होता  क्योंकि सभी क्षेत्रों के विकास और शक्ति के अलग अलग आकलन होते हैं .अब राजनीतिक क्षेत्र ,आर्थिक क्षेत्र ,मीडिया का यदि हम एक जगह   आकलन  करने  बैठ जाएँ तो हम किसी सही निर्णय  पर नहीं पहुँच पाएंगे.
   इन्द्र नूयी पेप्सिको की सी.ई.ओ. हैं, शेरिल सेंद्बर्ग फेसबुक की सी.ई.ओ. हैं ,मेलिंडा गेट्स बिल एंड मेलिंडा गेट्स फ़ाऊउन्देशन   की सह संस्थापक हैं और इनका कार्य क्षेत्र राजनीति के क्षेत्र से बिलकुल पृथक है और दूसरी बात सोनिया जी से ऊपर जिन राजनीति के क्षेत्र की महिलाओं को भी रखा है वे भी उनके समकक्ष कहीं नहीं ठहरती क्योंकि वे जो भी हैं अपने देश में हैं जबकि सोनिया   जी ने अपना जो अस्तित्व बनाया है वह एक ऐसे देश में बनाया है जहाँ उनके विदेशी होने  का सर्वाधिक विरोध है और  जहाँ उन्होंने अपना स्थान सभी का विरोध झेल कर अपनी योग्यता से बनाया है.
इसलिए मेरे अनुसार सोनिया जी का स्थान विश्व में शक्तिशाली महिलाओं में सबसे ऊपर है और अपने शानदार कार्यों को लेकर वे ही  विश्व में इस पद की अधिकारी हैं .
                    शालिनी कौशिक

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

बाप अपनी ही बेटियों से कुकर्म करता रहा 40 वर्षों तक, रोंगटे खड़ी कर देने वाली एक ख़बर

40 साल पिता की कैद में रहीं बेटियां
 

वियना। आस्ट्रिया के उत्तरी शहर ब्रानो में रहने वाली दो बहनों को 40 वर्ष से भी अधिक समय से बंधक बनाकर रखने, मारपीट करने और उनका यौनशोषण करने का उनके ही पिता पर गंभीर आरोप लगा है। ऊपरी आस्ट्रिया प्रांत के पुलिस विभाग ने गुरूवार को जारी एक बयान में इस सनसनीखेज मामले की जानकारी दी।

पुलिस के मुताबिक ब्रानो शहर के नजदीक रहने वाले एक व्यक्ति ने वर्ष 1970 से ही लगातार अपनी दोनों बेटियों को घर में बंधक बनाकर रखा और उन्हें किसी से भी मिलने-जुलने की इजाजत नहीं दी। इतने वर्षो तक वह दोनो बेटियों को मारने-पीटने के अलावा उनका यौनशोषण भी करता रहा।

आस्ट्रियाई पुलिस ने बताया कि आरोपी पिता ने अपनी दोनों बेटियों को घर के रसोईघर में वर्षो तक कैद करके रखा। दोनों बहनों को सोने के लिए लकड़ी की एक पतली बेंच भर दी गई थी। लेकिन वर्षो की जलालत झेलने के बाद गत मई में दोनों बहनों का गुस्सा फूट पड़ा जब इस बुजुर्ग ने बड़ी बेटी के साथ बलात्कार करने की कोशिश की। अब 53 साल की हो चुकी बड़ी बेटी ने अपने कुकर्मी पिता को धक्का देकर गिरा दिया और इपनी 45 वर्षीय छोटी बहन के साथ उस कैदखाने से भाग निकली। 
Source : http://www.patrika.com/news.aspx?id=663838
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