१९ वर्षीय छात्रा उमंग सब्बरवाल ने भारत में सल्ट वॉक का सफलता पूर्वक आयोजन कर भारतीय पुरुष समाज को चुनौती दी है .प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय ने लिखा है कि ''अधूरा देखना अश्लील है ''इसी पंक्ति को यथार्थ में एक आन्दोलन का रूप दे उमंग ने यह बात उठाई कि छेड़खानी व् बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए लड़कियों द्वारा धारण की गयी वेशभूषा जिम्मेदार नहीं है बल्कि पुरुष की स्त्री को एक उपभोग की वस्तु मानने वाली मानसिकता इसके लिए जिम्मेदार है .बड़ी संख्या में युवाओं ने इस आयोजन में हिस्सा लेकर एक आशा जगाई है .स्त्री को सम्मान देना -हमारी संस्कृति की परंपरा रही है .उम्मीद कर सकते हैं कि पुरुष अपनी सोच में बदलाव लाने का सार्थक प्रयास करेंगे .उमंग को इस सफल आयोजन पर हार्दिक शुभकामनायें .
शिखा कौशिक
7 टिप्पणियां:
umang ka sahi kadam hai.hum iska samarthan karte hain.
ham sath hai...
अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर इस पोस्ट का होना । समर्थन देना आप का भी सलट वाल्क को । स्त्री कहीं भी रहे वो मन से हमेशा इन चीजों का समर्थन ही करती हैं । क़ोई भी स्त्री क्यूँ ना । मुझे उम्मीद नहीं थी इस लिये ये कमेन्ट । एक नया ब्लॉग जहां पुरुषो को जगाने की कोशिश हो रही हैं आप का भी बन ही गया ।
कमेन्ट का ना होना अफ़सोस देता हैं मै आप की पोस्ट से सहमत हूँ और अपना समर्थन भी दे रही हूँ
साल्ट वाक् पोस्ट में कृपया छेड़खानी शब्द ठीक कर लें . .कृपया यहाँ भी http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/पधारें -
http://sb.samwaad.com/
बलात्कार एक मानसी सृष्टि है ,मेंटल कन्स्त्रक्त है इसका वस्त्रों से कुछ लेना देना नहीं है .सिविलिती का अभाव है यहाँ तो एक साल की बालिका से लेकर ७५ साला वृद्धआ भी इस मानसिक उन्माद ,मनो -रोग का शिकार बन चुकी है जिसे बलात्कार कहा जाता है .बाहर का हमारा परिवेश आधुनिक हो गया हम वही अन्दर से आदिम हैं .वहशी समाज ही ऐसा कर सकता है स्वस्थ समाज नहीं .उमंग को बधाई .
जो बच्चे बड़े होकर कोई नेक काम करते हैं तो कहा जाता है कि उसके मां-बाप धन्य हैं जो उन्होंने उसे इतने अच्छे संस्कार दिए और ऐसे ही अपराध करने वाला अपने मां-बाप के नाम को भी कलंकित करता है। जब एक इंसान अपराध करता है तो केवल वही फ़ेल नहीं होता बल्कि उसके बाप की मेहनत और उसकी मां के प्रशिक्षण पर भी सवाल उठते हैं क्योंकि उसके पहले शिक्षक वही होते हैं। औरतों के खि़लाफ़ जुर्म आज अगर मर्द करता है तो उसकी मां भी अप्रत्यक्ष रूप से सवालों के कटघरे में आ जाती है कि आखि़र उसने अपने बच्चे की तरबियत कैसे की है ?
इस ‘स्लट वॉक‘ में इस बात को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।
मर्द जब बच्चे की हालत में औरत की गोद में ही होता है तो औरत उसके दिलो-दिमाग़ को ऐसा कर सकती है कि वह औरत का सम्मान करने वाला और उसकी सुरक्षा करने वाला बनकर जवान हो।
जो काम ख़ुद औरत के अपने ही हाथ में है, उसके लिए किसी ‘स्लट वॉक‘ की ज़रूरत ही नहीं है।
। किसी मजबूरी में ही वह बेहया होती है। जैसे हम वेश्याओं के बारे में सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हैं, ऐसे ही ‘स्लट वॉक‘ में शामिल औरतों के बारे में भी हमें हमदर्दी के साथ उनकी पृष्ठभूमि जानने की ज़रूरत है।
yae haen anwar jamaal ki soch umang jaesi betiyon kae baarey mae
http://hbfint.blogspot.com/2011/08/blog-post_5673.html
हमरी तरफ से भी शुभकामनाये | कभी कभी समाज के रवैये के कारण इस तरह के मोर्चे नीकल कर लोगों को सोचने के लिए विवश करना जरुरी है तभी लोगों की सोच बदलेगी |
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