'भारतीय नारी'-क्या होना चाहिए यहाँ जो इस ब्लॉग को सार्थकता प्रदान करे ? आप साझा करें अपने विचार हमारे साथ .यदि आप बनना चाहते हैं 'भारतीय नारी ' ब्लॉग पर योगदानकर्ता तो अपनाE.MAIL ID प्रेषित करें इस E.MAIL ID PAR-shikhakaushik666@hotmail.com
बुधवार, 3 अगस्त 2011
गुरूद्वारे से छलका था अरदास का ‘अमृत’ !भाग 5
पिछली पोस्ट में हमने चर्चा की थी अमृता प्रीतमजी के माता तथा पिता की। आपने देखा कि अपनी बहन के असफल वैवाहिक जीवन के लिये स्वयं को उत्तरदायी मानते हुये अमृता जी के पिता ने कैसे गेरूये वस्त्र धारण कर लिये थे और एक आश्रम में रहने लगे थे। उसी आश्रम में संयोगवश उनकी मुलाकात हुयी राजबीबी नामक एक विधवा महिला से जिसका पति उसे छोडकर अचानक गायब हो गया था। आश्रम के कर्ताधर्ता संत दयाल जी के निर्देश पर दोनो ने ग्रहस्थ आश्रम अपनाना स्वीकार किया।
बालका साधु उर्फ करतार सिंह उर्फ पीयुष और राजबीबी के गृहस्थ जीवन में पदार्पण करने के कई वर्ष बाद भी इन दंम्पत्ति के कोई सन्तान न हुयी। धीरे धीरे तरह दस वर्ष का समय ब्यतीत हो गया ।
ये दोनो दंपत्ति संत दयाल जी के पंचसोड विद्यालय में पढाते थे वहां के मुखिया बाबू तेेेजा सिंह थे जिनकेे दो बेटियां थी। तेजा सिंह जी की दोनो बेटियाँ भी इनकी विद्यार्थी थीं। दोनो बच्चियाँ इन दंपत्ति के परिवार में घुली मिली रहती थीं। राजबीबी और करतार सिंह जी गुरूद्वारा जाया करती थीं। उन दंपत्ति की बच्चों के प्रति लालसा केा इन बालिकाओं ने अनुभव किया तेा एक दिन जब सभी लोग गुरूद्वारे पहुँचें तो एक अनोखी बात हुयी । पूजा अर्चना के बाद दोने बच्चियों ने मिलकर गुरूद्वारे में कीर्तन किया और प्रार्थना करने के बाद अंत में कहाः-
‘ओ दो जहान के मालिक ! हमारे मास्टर जी के घर में एक बच्ची बख्श दो।’
भरी सभा में जब करतार सिंह ने यह शब्द सुने तो अपनी पत्नी राजबीबी पर बहुत गुस्साये । उन्होंने यह समझा कि उन बच्चियों ने उनकी पत्नी की सहमति से यह प्रार्थना की थी । लेकिन यह तथ्य राजबीबी को भी नहीं मालूम था। सो घर आने के बाद उन्होंने बच्चियों से इस बारे में पूछताछ की तो पूछे जाने पर उन्हीं बच्चियों नें बताया:-
‘अगर हम आपसे या मास्टर जी से पूछते तो आप लोग शायद पुत्र की कामना करती पर हम लोग अपने मास्टर जी के घर लडकी चाहती हैं । अपनी ही तरह एक लडकीं !’
यह सुनकर राजबीबी ने दोनो बच्चियों को गले से लगा लिया। और उन बच्चियों की प्रार्थना सचमुच ईश्वर ने सुन ली जब एक साल के भीतर राजबीबी एक बच्ची की मां बन गयी । जब बच्ची का जन्म हुआ तो उसके पिता ने अपने उपनाम ‘पीयूष’ शब्द का पंजाबी में अनुवाद करके बालिका का नाम ‘अमृत’ रखा और अपना उपनाम ‘हितकारी’ रख लिया।
आप इस आलेख को नवभारत टाइम्स पर शुरू हुये रीडर्स ब्लाग
कोलाहल से दूर... पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। लिंक है:-
गुरूद्वारे से छलका था अरदास का ‘अमृत’ !!
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 टिप्पणियां:
रोचक ...बहुत रोचक शैली में अमृता जी के जीवन के विषय में लिख रहे hai आप .आभार
bahut rochak hai.amrata ji ke naam ka pata chala.aage ka intjaar hai.
एक टिप्पणी भेजें