चाहती हू इस बात को मन में ही दबा लू
पर क्या करू बार बार होंठों पे आने को मचल रही है
अन्दर ही अन्दर जेसे घुटन हो रही है
मन में एक दर्द सा हो रहा है.....
किस्सा बहुत आम सा है पर बात खास है....आज तक में मानती आ रही थी लड़कियां बहुत आगे बढ़ गई है. पढाई लिखाई ने उन्हें एक समझ दी है ,और ये बात सच भी है ,पर फिर भी कुछ लोग (महिलाए लड़कियां) असी है जिनने सिर्फ पढ़ा है समझा नहीं चरित्र में उतारा भी नहीं. हमारे मालवा में एक कहावत है " भनियों है पर गुणियों कोणी "(अर्थात पढाई तो की पर उसे गुणों में नहीं उतारा ) ये कहावत हिंदी की उसी कहावत का पर्यायवाची मानी जा सकती है जो कहती है "पढ़े लिखे गंवार ".
ये किस्सा मेरे आस पास किसी के साथ घटित हुआ और इस किस्से को सुनकर असा लगा जेसे लड़कियां और महिलाएं किस हद तक ओछी सोच रख सकती हैं.महिला सशक्तिकरण ,महिला विकास महिला शिक्षा जेसी सब बातें कुछ देर के लिए खोखली सी लगने लगी .मन में ना जाने कितने सवाल उठने लगे.....
हाँ तो ये किस्सा मेरी एक देल्ही में रहने वाली एम बी ए होल्डर एक प्राइवेट बैंक में कार्यरत सहेली के साथ घटित हुआ .गाव (गाव मतल बहुत छोटा गाव नहीं)से उसके सास ससुर और ३ ननद उन लोगो के पास कुछ दिन के लिए रहने आए .पढ़े लिखे लोग है.खुद को सबसे ज्यादा समझदार भी मानते है.बाकि सारी दुनिया को लगभग मुर्ख की श्रेणी में रखने में भी कोताही नहीं करते .बाहरी टिप ताप उनके लिए सब कुछ है एसा कहा जा सकता है.
हाँ तो एक छुट्टी के दिन मेरी सहेली घर में साफ़ सफाई के काम में लगी हुई थी.तभी उसकी ननद की सहेली घर आई जो वही दिल्ली में रहकर पढ़ रही थी .वो सारे बैठकर बातें करने लगे. मेरी सहेली अपना काम भी निपटाती जा रही थी और बातों में भी शामिल होती जा रही थी.तभी मेरी सहेली की सास ने आगंतुक लड़की से पूछा तुम कब शादी कर रही हो? लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया "घर वाले ढूंढ रहे हैं आंटी जब सही लड़का मिल जाएगा कर लूंगी" सास का जवाब था हाँ बात तो ठीक है.
मेरी सहेली जब मुझे बता रही थी उसकी आँख में आंसू थे बस बोलती जा रही थी बोली कनु देख ना घर बाहर सब काम देखती हू ,पति का हर कदम पर साथ देने की कोशिश करती हू पर देख ना केसी मानसिकता वाले लोग मिल गए है मुझे .हर बात में ये लोग इसी मानसिकता के साथ सोचते है.
पर क्या करू बार बार होंठों पे आने को मचल रही है
अन्दर ही अन्दर जेसे घुटन हो रही है
मन में एक दर्द सा हो रहा है.....
किस्सा बहुत आम सा है पर बात खास है....आज तक में मानती आ रही थी लड़कियां बहुत आगे बढ़ गई है. पढाई लिखाई ने उन्हें एक समझ दी है ,और ये बात सच भी है ,पर फिर भी कुछ लोग (महिलाए लड़कियां) असी है जिनने सिर्फ पढ़ा है समझा नहीं चरित्र में उतारा भी नहीं. हमारे मालवा में एक कहावत है " भनियों है पर गुणियों कोणी "(अर्थात पढाई तो की पर उसे गुणों में नहीं उतारा ) ये कहावत हिंदी की उसी कहावत का पर्यायवाची मानी जा सकती है जो कहती है "पढ़े लिखे गंवार ".
ये किस्सा मेरे आस पास किसी के साथ घटित हुआ और इस किस्से को सुनकर असा लगा जेसे लड़कियां और महिलाएं किस हद तक ओछी सोच रख सकती हैं.महिला सशक्तिकरण ,महिला विकास महिला शिक्षा जेसी सब बातें कुछ देर के लिए खोखली सी लगने लगी .मन में ना जाने कितने सवाल उठने लगे.....
सच्चा किस्सा है ये पात्रों के नाम नहीं बताउंगी आप लोगो को पर, जेसा का तेसा आप लोगो को सुना देना चाहती हू नाम पात्र सब बदल रही हू ताकि किसी तरह का कोई विवाद ना हो पर ये सत्यघटना है .हो सकता में ज्यादा प्रतिक्रियावादी हू इसलिए यहाँ लिख रही हू या ये भी हो सकता है कुछ लोग इस किस्से को आम बात माने पर मुझे आम बात नहीं लगी...पढ़कर आप लोग ही निर्णय लीजिए की आखिर क्या है ये.
हाँ तो ये किस्सा मेरी एक देल्ही में रहने वाली एम बी ए होल्डर एक प्राइवेट बैंक में कार्यरत सहेली के साथ घटित हुआ .गाव (गाव मतल बहुत छोटा गाव नहीं)से उसके सास ससुर और ३ ननद उन लोगो के पास कुछ दिन के लिए रहने आए .पढ़े लिखे लोग है.खुद को सबसे ज्यादा समझदार भी मानते है.बाकि सारी दुनिया को लगभग मुर्ख की श्रेणी में रखने में भी कोताही नहीं करते .बाहरी टिप ताप उनके लिए सब कुछ है एसा कहा जा सकता है.
हाँ तो एक छुट्टी के दिन मेरी सहेली घर में साफ़ सफाई के काम में लगी हुई थी.तभी उसकी ननद की सहेली घर आई जो वही दिल्ली में रहकर पढ़ रही थी .वो सारे बैठकर बातें करने लगे. मेरी सहेली अपना काम भी निपटाती जा रही थी और बातों में भी शामिल होती जा रही थी.तभी मेरी सहेली की सास ने आगंतुक लड़की से पूछा तुम कब शादी कर रही हो? लड़की ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया "घर वाले ढूंढ रहे हैं आंटी जब सही लड़का मिल जाएगा कर लूंगी" सास का जवाब था हाँ बात तो ठीक है.
मेरी सहेली फिर काम में लग गई तभी उसके कानों में आगंतुक की आवाज़ आई "क्या करें आंटी डर लगता है लड़के वाले ना जाने क्यों लड़कियों को प्रदर्शन की चीज समझते है जैसे उनकी ही इच्छाएं है लड़कियों की कुछ इच्छाएं कुछ मन नहीं(उसने एसा क्यों बोला मेरी सहेली नहीं समझी शायद वो किसी के साथ हुए बुरे व्यवहार के लिए बोल रही हो ) मेरी सहेली ने बीच में कहा " हाँ कई लोगो के साथ एसा होता है" .इसी के बीच में मेरी सहेली की तथाकथित पढ़ी लिखी ननद बोली लड़कियां जाने एसा क्यों सोचती है यार बिचारे लड़के वाले भी तो अपना लड़का देते है ...इस बात की प्रतिक्रिया में आगंतुक ने जवाब दिया "काहे का लड़का देते है सिर्फ कुछ दिन के लिए अपना लड़का बिदा करके देखे तो उन्हें समझ आएगा की आखिर लड़की के माँ बाप का क्या दर्द होता है . इस बात के जवाब में मेरी सहेली की ननद ने जो जवाब दिया वो चोकाने वाला था उसे सुनकर हर औरत को या तो गुस्सा आएगा या शर्म आएगी की इस बात पर की आज के ज़माने में महिलाएं एसा भी इस हद तक भी सोच सकती है "उसने कहा - हाँ तो क्या हुआ शादी करके घर लाते हैं तो उस लड़की को पालते भी तो है, उसे जिंदगी भर खिलाते भी तो है ".आगंतुक ने थोडा विरोध किया और जब उसे लगा इन लोगो को समझाना मुश्किल है वो जल्दी जाना है बोलकर चली गई.आश्चर्य इस बात का है की मेरी सहेली की सास ने भी बात का विरोध नहीं किया जो खुद को प्रगतिवादी या काहे तो मॉडर्न बताने से कही पीछे नहीं हटती बल्कि दबे शब्दों में समर्थन किया .
मेरी सहेली जब मुझे बता रही थी उसकी आँख में आंसू थे बस बोलती जा रही थी बोली कनु देख ना घर बाहर सब काम देखती हू ,पति का हर कदम पर साथ देने की कोशिश करती हू पर देख ना केसी मानसिकता वाले लोग मिल गए है मुझे .हर बात में ये लोग इसी मानसिकता के साथ सोचते है.
बाकि बातें आप लोगो को नहीं बताउंगी क्यूंकि उसके जीवन को सार्वजनिक करने का मेरा इरादा नहीं है में बस इस किस्से पर आप सभी पाठकों की प्रतिक्रियां जानना चाहती हू . किस्से के साथ अपनी भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहती क्यूंकि तब क्यूंकि में पात्र को स्वयं जानती हू इसलिए शायद अतिश्योक्ति कर दू.आप लोगो को क्या लगता है क्या कहा जाना चाहिए एसी मानसिकता के लोगो को जो खुद को मॉडर्न कहते है पर अपनी बहुओं के लिए एसे विचार रखते है ?
कनुप्रिया गुप्ता www.meriparwaz.blogspot.com
9 टिप्पणियां:
shikha ji kshama chahungi aapse.aapke dwara nirdharit visahy par na likhkar maine naye vishay par likha.aap ise chahe to ase le sakti hai ki meri wo saheli meri bahan jesi hi hai.agar aapko uchit na lage to krupya soochit awashya karein.
.कृपया यहाँ भी http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/पधारें -
http://veerubhai1947.blogspot.com/ ये सोच का दिवालियापन है बेहूदा शब्द प्रयोग लड़की लातें हैं उसे पालतें हैं खिलाते पिलातें हैं (जोड़ा जाना चाहिए फिर कोल्हू के बैल सा जोत देतें हैं ).लड़की कोई बकरा है जिसे ईद से पहले खिलाजा जाता है फिर हलाल या एल्शेशियंन स्वान है ?
.
ऐसे पात्रों का नाम क्या बताना ?
अगल - बगल मिल ही जाते है --
इन जैसे लोगों के लिए अपनी ही एक रचना---
अपनी बाइक को कहें पुष्पक, मेरी कार सरकारी परिवहन |
उनकी मदिरा कहलाये सोमरस, मेरा प्याज भी खाना दुर्व्यसन |
मेरा आदर-भाव लगे चापलूसी, उनकी हिकारत भी नमन |
मेरे चुटकुले करें बदतमीजी, उनका क़त्ल करना भी टशन |
मेरी ठिठोली गम्भीर छेड़-छाड़, उनका व्यभिचार भी बड़प्पन |
मेरी पूजा लगे ढकोसला, उधर गालियों से हो प्रवचन |
मेरे चूल्हे से फैले प्रदूषण, उनकी चिता भी जले तो हवन |
अफवाह उड़े तो तेज तूफ़ान, उनका तहलका भी शीतल पवन |
मेरी विनम्रता लगे दीनता, बोल्डनेस है उनका अकड़पन |
मेरी हकीकत होती घमंड , उनके कमीनेपन में भी वजन ||
सच को जानते सब हैं लेकिन स्वीकार नहीं करते कि हम ग़लत हैं ताकि उन्हें सुधरना न पड़े।
kanu ji maine विषय को केवल मुख्य विषय के तौर पर अगस्त mah के लिए निर्धारित kiya है .aap सभी apni इच्छा से किसी भी नारी विषय पर लिख सकते हैं .kshama जैसी कोई बात नहीं .आपने जिस किस्से का jikr kiya है vah bahut kuchh sochne पर majboor karta है .यदि घर की सभी महिलाएं एक दुसरे के साथ uchit vyvahar rakhen to नारी समस्याओं में 50 प्रतिशत की कमी आ जाये पर जब ham लड़की वाले होते हैं तब सोच अलग होती है और जब लड़के वाले होते हैं तब अलग .सार्थक पोस्ट के साथ आपका इस blog पर शुभागमन हुआ है आभार .
ravikar ji sateek likha hai aise logon par .aabhar
ise kahte hain ladke vaale hone ka ghamand ,jo humare desh ki ek visheli mansikta ka parinaam hai.baat vahin par aakar ruk jaati hai ladke ladki me hone vaale fark par..in so called padhi likhi nanad se poocho ki kya yahi samvaad vo apni saas ya kabhi apni beti ki saas ke saamni bhi bolegi kya???
sarthak lekh...
sarthak tippani dene ke lie aap sabhi ka dhanyawad
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