aalekh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
aalekh लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

श्रीमती सुषमा स्वराज जी -प्रधान मंत्री पद हेतु एक योग्य उम्मीदवार


श्रीमती सुषमा स्वराज जी -प्रधान मंत्री पद हेतु एक योग्य उम्मीदवार




पिछले   दिनों राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने श्री नरेंद्र मोदी जी को  आगामी  लोकसभा चुनावों  २०१४  के लिए  प्रधान मंत्री पद हेतु एक योग्य उम्मीदवार घोषित किया है पर मेरा मानना  है कि बी.जे.पी. में इस समय प्रधानमंत्री पद हेतु जो  सबसे उपयुक्त नेता हैं वे हैं श्रीमती सुषमा स्वराज जी .सुषमा जी अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन  रही हैं और सफलतापूर्वक सभी दायित्वों का निर्वाह किया है .उनमे एक भारतीय नारी  की पूर्ण  छवि परिलक्षित  होती है .उनका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -
''From Wikipedia, the free encyclopedia
Sushma Swaraj (born 14 February 1952) is an Indian politician of the Bharatiya Janata Party(BJP)and Member of Parliament. She is currently the Leader of the Opposition in the 15th Lok Sabha. She is a former union cabinet minister of India and a former Chief Minister of Delhi. Also she served as the Chairperson of the BJP's 19 member campaign committee for the 2009 General Elections. She was the first female Chief Minister of Delhi

Early life

She was born in PalwalHaryana. She was educated at S.D. College, Ambala Cantonment and earned a B.A. degree. She studied LL.B. from the Law Department of Punjab University,Chandigarh. She is an advocate by profession.
She has been associated with many social and cultural bodies in various capacities. She was President of the Sahitya Sammelan, Haryana for four years.

Political career

Sushma Swaraj began her political career as a student leader in the 1970s, organizing protests against Indira Gandhi's government. She was a member of the Haryana Legislative Assembly from 1977–82 and then from 1987–90. As a Janata Party MLA in Devi Lal's government, she was the Cabinet Minister of Labour and Employment (1977–1979). She joined the BJP in 1980. Under a combined Lok Dal-BJP government led by Devi Lal, she was the Cabinet Minister of Education, Food and Civil Supplies (1987–1990). She was judged Best Speaker of Haryana State Assembly for three consecutive years.''
                            इतनी योग्य व् प्रखर राष्ट्रीय नेता के होते हुए मात्र एक राज्य  के मुख्यमंत्री पद पर रहे श्री नरेंद्र मोदी जी  को प्रधानमंत्री पद का यदि उम्मीद्वार घोषित किया जा रहा तो यह संघ की भूल है .बी.जे.पी. को चाहिए की वो सुषमा जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर महिला सशक्तिकरण को भी बढ़ावा दे  व् पद के अनुरूप व्यक्ति को ही यह सुअवसर प्रदान करे .

गुरुवार, 12 अप्रैल 2012

माया बाई का मुजरा-कब रूकेगा स्त्री का अपमान?


माया बाई का मुजरा-कब रूकेगा स्त्री का अपमानन्नीचे 

Flax Awareness Society



WEDNESDAY, APRIL 11, 2012


माया बाई का मुजरा-FALX AWARENESS  SOCIETY  -ब्लॉग पर 


डॉ.ओ.पी वर्मा जी ने  निम्नं  

सन्दर्भ  देकर यह  पोस्ट प्रस्तुत की है  -
कल हमने फेसबुक पर माया बाई का मुजरा देखा, जिसे भड़ास पर भी लगा दिया है। लेकिन वो मुजरे में गा क्या रही है, यह स्पष्ट नहीं हो रहा था। इसलिए हमने वो मुजरा के बोल पता कर लिये है। आप भी सुन लीजिये। दुपट्टा मुख्यमंत्री की कुर्सी को समझियेगा।



                                           मायावती जी का इसप्रकार  चित्रण  करना पूरे   भारतीय  समाज   के मुंह   पर जोरदार   तमाचा   है ...आज तक हम उन बालाओं को तो इस अगरिमामय पेशे से निकाल नहीं पायें जो दुर्भाग्यवश इस पेशें में फसी हैं उस पर अपने संघर्षों से एक दलित परिवार में जन्म लेकर भी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री तक के सफ़र को तय करने वाली हमारी दलित नेत्री को इस रूप में प्रस्तुत करना मुंह पर तमाचा ही है .हम उनकी  आलोचना भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शालीन तरीके   से  कर सकते हैं ....पर इस रूप में दलित  नेत्री को प्रस्तुत करना नीचता की पराकाष्ठा है .क्या भारतीय पुरुषों का पुरुषार्थ समाप्त हो चुका  है जो बहनों को इस रूप में प्रस्तुत कर मुजरा करवाया जा रहा है .शर्मनाक  ....निंदनीय ......घोर आपत्तिजनक ....मनोरंजन  या आलोचना का यह रूप यदि भारतीय पुरुषों ने अपनाया है तो उन्हें चुल्लू   भर पानी में डूब मरना चाहिए क्योकि  यह भारतीय संस्कृति के सर्वदा विरूद्ध है .हमारी  संस्कृति में शत्रु पक्ष की महिला को भी ''देवी  ''कहकर संबोधित किया जाता  है .पोस्ट करने वाले ब्लोगर डॉ.ओ.पी.वर्मा जी एक उच्चस्तरीय डॉक्टर हैं .सुशिक्षित हैं फिर एक बार भी उन्होंने इस पोस्ट को फेसबुक से ब्लॉग पर डालने से पूर्व यह क्यों   नहीं सोचा कि मायावती जी सर्वप्रथम एक महिला हैं .....इसके पश्चात् एक ऐसे दलित समाज का प्रतिनिधत्व करती है जिसने युगों तक शोषण सहा है .मायावती जी का संघर्षपूर्ण जीवन किसी से नहीं छिपा है .ठीक है आज उन पर भ्रष्टाचार के  आरोप है ..पर उसका मतलब ये तो नहीं कि कोई भी उन्हें इस रूप में प्रस्तुत करे .क्या आप अपनी बहन ....बेटी को इस रूप में प्रस्तुत करना चाहेंगे .स्त्री को मनोरंजन  की वस्तु बनाकर उससे मुजरा सुनने की जिस की इच्छा शेष है वो किसी का बेटा ....भाई नहीं हो सकता .डॉ.ओ.पी वर्मा जी न केवल फेसबुक से इस निंदनीय सामग्री को लायें हैं बल्कि पोस्ट के नीचे उनकी टिप्पणियां भी घोर अशालीन हैं -उनका परिचय व् टिप्पणिया -


My Photo
Vaibhav Hospital, 7-B-43, Mahaveer Nagar III, Kota, Raj., India
पिछले कई वर्षों से हमारी संस्था “अलसी चेतना यात्रा” अलसी के बारे में जागरूकता लाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। हमारी संस्था के अन्य उद्देश्य हैं। •जैविक खाद्य पदार्थों के उत्पादन, उपयोग को प्रोत्साहन देना और लोगों को जैविक खाद्य पदार्थों के लाभ समझाना। •खाद्य पदार्थों में मिलावट, जो आज की सबसे गंभीर समस्या है, के बारे में लोगों को जानकारी देना। मिलावट रोकने के लिए सम्बंधित विभागों से सामंजस्य रखते हुए कार्यवाही करना। •अलसी के तेल, पनीर, तथा कैंसर रोधी फल व सब्जियों से विकसित किया हुआ डॉ. बुडविज आहार-विहार कैंसर के रोगियों को उपलब्ध करवाने हेतु पूरे भारत में बुडविज प्रोटोकोल कैंद्रों का निर्माण करना। •कोटा में देश-विदेश के रोगियों को उच्च स्तरीय प्राकृतिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा उपलब्ध कराने हेतु विशाल हर्बल पार्क विकसित करना। go.flax@gmail.com ०९४६०८१६३६०
Dr. O.P.Verma said...
सचमुच दु्हन सी लग रही है माया... शादी कर लेती तो अभी 2-4 बच्चों की मां होती।
Dr. O.P.Verma said...
आदरणीय दिलबाग विर्क जी, चर्चामंच पर प्रस्तुत होना गर्व की बात मानी जाती है। आपने चर्चामंच पर माया बाई का मुजरा करवा कर बड़ा अच्छा काम किया है। आपका किन शब्दों में शुक्रिया करूँ। मुफलिसी में हमें दो पैसे मिल गये। और आजकल मायाबाई भी फालतू ही बैठी थी। आपके याद ही होगा जबसे अखिलेश बाबू नये नये दारोगा बने हैं, उन्होंने लखनऊ के सारे कोठों पर माया के मुजरे पर पाबंदी लगा दी है। इसलिए आपको आगे भी कहीं मौका मिले मुजरा करवाना हो तो सेवा का अवसर देना। आपके लिए तो मायाबाई तो खाली बख्शीश में भी नाच लेगी।
Dr. O.P.Verma said...
गब्बर का ही डर है वो आगया तो कांच पे नचायेगा, उसको खबर मत होने देना रचना जी।
                       दुखद है रचना जी व् राजेश कुमारी जी ने एक स्त्री होकर भी  मायावती जी के इस आपत्तिजनक चित्रण को गलत न बताकर ये  टिप्पणियां कर दी है -
रचना दीक्षित said...
बहुत नाइंसाफी है....
Rajesh Kumari said...
hahaha vaah kya pairodi banaai hai.chitra to lajabaab hai.                                                              मैं इसप्रकार  की  किसी भी पोस्ट के विरूद्ध हूँ  और आप सभी से चाहती हूँ  की आप भी विरोध करें ताकि फेसबुक की गंदगी ब्लॉग जगत के निर्मल वातावरण  को प्रदूषित    न करे                                                                                                                                              जय हिंद !                                                              शिखा  कौशिक 

शनिवार, 13 अगस्त 2011

बहन हो तो ऐसी -जैसी शिखा कौशिक

 ''आदमी  वो  नहीं  हालत  बदल  दें  जिनको ,  
आदमी वो  हैं जो  हालत  बदल  देते  हैं.''
              पूरी  तरह से खरी उतरती हैं ये पंक्तियाँ मेरी  छोटी  किन्तु  मुझसे विचारों और सिद्धांतों  में  बहुत  बड़ी  मेरी बहन ''शिखा कौशिक पर .
          कोई नहीं सोचता था  कि  ये  छोटी सी लड़की इतने  महान विचारों की धनी होगी और इतनी मेहनती.जब छोटी सी थी तो कहती थी भगवान्  के पास रहते थे उन्होंने हमारा घर दिखाया और उससे यहाँ रहने  के बारे में पूछा  और उसके हाँ करने पर उसे यहाँ छोड़ गए .सारे घर में सभी को वह परम प्रिय थी और सभी बच्चे उसके साथ खेलने  को उसेअपने साथ करने को पागल रहते किन्तु हमेशा उसने मेरा मान   बढाया  और मेरा साथ दिया .
          छोटी थी तो कोई नहीं सोचता  था कि ये लड़की नेट परीक्षा पास करेगी या डबल एम्.ए. और पी.एच.डी.करेगी  .कोई भी परीक्षा पास कर घर आती तो सभी से कहती फर्स्ट आई हूँ सातवाँ आठवां नंबर है.छुट्टियों में   बाबाजी से कहती क्या बाबाजी जरा से पेपर और सारे साल पढाई.सारे समय गुड्डे गुड़ियों से खेलने में  लगी रहने वाली ये लड़की कब पढाई में  जुट गयी पता ही नहीं चला और आज ये हाल हैं कि कोई भी वक़्त जब वह खाली  हो उसके हाथों में कोई न कोई किताब मिल जाएगी.

मैं अपने विचारों में उसमे जो खूबियाँ पाई  हैं वे मैं आज आप सभी से शेयर कर रही हूँ.            
    स्वाभिमान मेरी बहन में कूट कूट कर भरा है ये हमारे स्नातक कॉलेज की बात है जब उसका एडमिशन हुआ तभी मैं समझ गयी थी कि कॉलेज वाले हम दोनों बहनों को ''बेस्ट'' का अवार्ड देने से रहे और इसी कारण मैंने दोनों के सालभर के सभी पुरुस्कारों की सूची तैयार कर ली थी और जब साल के अंत में आया पुरुस्कारों का नंबर तो मेरा विचार सही साबित हुआ और मुझे तीन साल की बेस्ट का अवार्ड देते हुए उन्होंने मेरी बहन का एक साल की बेस्ट का अवार्ड उसके कुछ अवार्ड काटते हुए एक और लडकी को देने का प्रयत्न किया जो मेरे लिए सहन करने की सीमा से बाहर था क्योंकि मेरे कहने पर ही उसने इतनी प्रतियोगिताओं में  पक्षपात सहते हुए भी भाग लिया था  और इस तरह मेरे आक्षेप पर उन्होंने मेरे अवार्ड को भी काटा और आरम्भ हुआ न्यायिक कार्यवाही का सिलसिला और साथ ही मेरी बहन को नीचा दिखाने का सिलसिला [मुझे क्या दिखाते मैं तो बी. ए. के बाद दूसरेकॉलेज में चली गयी थी]और यही वजह थी कि कॉलेज की हर प्रतियोगिता में भाग लेने योग्य होते हुए भी मेरी बहन जो वहां लगातार तीन साल तक कैरम चैम्पियन  रही थी ,कहानी कविता लिखना जिसकी उलटे हाथ का काम था ने एम्.ए. में  किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया क्योंकि अपने स्वाभिमान पर कोई चोट वह बर्दाश्त नहीं कर सकती थी.       
 बाहर से कठोर दिखने वाली मेरी ये बहन अन्दर से कितनी कोमल ह्रदय है ये मैं ही जानती हूँ.मेरी जरा सी तबियत ख़राब हुई नहीं कि उसके माथे पर चिंता की रेखाएं उभर आती हैं .मेरे बेहोश होने पर वह बेहोश तक हो जाती है जबकि कहने को हमारे में कोई जुड़वाँ वाला सम्बन्ध नहीं है.और जब तक मुझे ठीक नहीं कर लेती तब तक चैन की एक साँस तक वह नहीं लेती.
         माता-पिता के हर कार्य को पूर्ण करने में वह सदा  तत्पर  रहती है और जहाँ तक हो सके ये काम वह अपने हाथ में ही रखती है और उनकी सेवा करने में दिन रात का कोई ख्याल  उसके मन में कभी नहीं आता है.    
       हम जहाँ रहते हैं वहां पर जब नेट परीक्षा की बात आई तो  कहीं से कोई जानकारी हमें उपलब्ध नहीं हुई पर ये उसकी ही दृढ इच्छा थी कि उसने स्वयं न केवल जानकारी हासिल की बल्कि बिना किसी कोचिंग की मदद के पहले ही प्रयास में हिंदी विषय में नेट परीक्षा पास कर दिखाई. 
             आज भाई भतीजावाद का युग है और ऐसे में हम सभी अपने अपने को बढ़ाने में लगे हैं किन्तु जहाँ तक उसकी बात है वह इस सब के खिलाफ है और इसका एक जीता जगता उदहारण ये है कि आज 13 अगस्त को मैं   यह  पोस्ट लिखने की आज्ञा शिखा से ले पाई हूँ और पहले इसे इसी कारण अपने ब्लॉग पर डाल रही हूँ कि कहीं कोई और पोस्ट उसके भारतीय नारी ब्लॉग पर आ जाये और उसका विचार पलट जाये.
   मैं उसकी इन भावनाओं का दिल से सम्मान करती हूँ क्योंकि आज कोई तो है जो मुझे सही राह दिखा सके.उसके विचार मुझे बहुत कुछ ''कलीम   देहलवी  ''के  इन विचारों से मिलते लगते हैं-
''हमारा फ़र्ज़ है रोशन करें चरागे वफ़ा,
हमारे अपने मवाफिक हवा मिले न मिले.''
             शालिनी कौशिक

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

क्या यह गारंटी दे सकते है ?

क्या रावण ने माता सीता क़ा हरण उनके परिधान देखकर किया था ?अथवा दुश्शासन ने देवी  द्रौपदी  क़ा चीर हरण उनके परिधान देखकर किया था ? या फूलन देवी के साथ अमानुषिक कुकृत्य करने वाले उसकी वेशभूषा को देखकर ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए थे ?----सभी क़ा उत्तर मेरी दृष्टि  में ''नहीं'' है फिर क्यों हमारा समाज  बार-बार लड़कियों की वेशभूषा  को लेकर नए-नए सवाल  खड़े करता  रहता  हैं ?कुछ समय पूर्व गाँव भैंसवाल  की बत्तीस खाप ने लड़कियों के मोबाईल फोन रखने को प्रतिबंधित कर एक बहस को जन्म दे दिया था फिर दिनांक  [४-२-२०११] को पंचायत ने लड़कियों के जींस-टॉप व् मिनी स्कर्ट पहनने पर पाबन्दी लगाकर एक और नयी बहस को जन्म दे दिया था .इसी प्रकार दिल्ली में हुई सलट वॉक को लेकर भी पुरुष प्रधान भारतीय समाज में संकीर्ण मानसिकता के लोग सलट वॉक में शामिल युवतियों व् महिलाओं के लिए अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं . इनका  मानना है कि  लड़कियों को पाश्चात्य   सभ्यता से प्रेरित होकर ऐसी वेशभूषा नहीं पहननी   चाहिए इससे छेड़छाड़   की घटनाये बढती है .ये बात तो मै भी मानती हूँ कि ''जैसा देश वैसा भेष ' के आधार पर हमारे गाँव में जींस-टॉप पहने लडकी को एक विचित्र   जीव की भांति देखा जाता है जबकि शहरों में यह स्थिति नहीं है .इसलिए लड़कियों को स्वयं   यह निर्णय लेने दे कि उन्हें कब -कहाँ-कैसे वस्त्र धारण करने हैं? कुछ लड़कियां मात्र आधुनिक दिखने की चाह में या अपने साथ की लड़कियों से अलग दिखनें के लिए ऐसी वेशभूषा धारण करती हैं जो उनके परिवार-समाज की आँखों में चुभने लगती है .लड़कियों को इस ओर खुद ध्यान देना होगा पर ऐसी महिलाओं के प्रति दकयानूसी सोच रखने वाले क्या यह गारंटी दे सकते है कि जींस- टॉप -मिनी स्कर्ट की जगह साडी -सलवार-सूट पहनने वाली लड़की के साथ छेड़छाड़ नहीं होगी!
               शिखा कौशिक 

सोमवार, 1 अगस्त 2011

उमंग ने भरी उमंग !





१९ वर्षीय  छात्रा उमंग सब्बरवाल ने भारत में सल्ट वॉक  का सफलता पूर्वक आयोजन कर भारतीय पुरुष समाज को चुनौती  दी है .प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय ने लिखा है कि ''अधूरा देखना अश्लील है ''इसी पंक्ति को यथार्थ में एक आन्दोलन का रूप दे उमंग ने यह बात उठाई कि छेड़खानी    व् बलात्कार जैसी घटनाओं के लिए लड़कियों द्वारा धारण की गयी वेशभूषा जिम्मेदार नहीं है बल्कि पुरुष की स्त्री को एक उपभोग की वस्तु मानने वाली मानसिकता इसके लिए जिम्मेदार है .बड़ी संख्या में युवाओं ने इस आयोजन में हिस्सा लेकर एक आशा जगाई है .स्त्री को सम्मान देना -हमारी संस्कृति की परंपरा रही है .उम्मीद कर सकते हैं कि पुरुष अपनी सोच में बदलाव लाने का सार्थक प्रयास करेंगे .उमंग को इस सफल आयोजन पर हार्दिक शुभकामनायें .
           शिखा कौशिक

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

औरत का एक रूप और भी है- लेखक - डॉक्टर अनवर जमाल

नारी त्याग की मूर्ति होती है, वह मां, बहन, बेटी और पत्नी होती है। अक्सर औरतें ख़ुद को इन्हीं रूपों में गौरवान्वित भी समझती हैं लेकिन औरत का एक रूप और भी है जिसे तवायफ़ और वेश्या कहा जाता है। ये औरतें पैसों के लालच में अपने नारीत्व का अपमान करती हैं। ये किसी नैतिक पाबंदी को नहीं मानती हैं।
इनका मानना है कि हम अपनी मनमर्ज़ी करने के लिए आज़ाद हैं। हमें नैतिकता का उपदेश देना बंद कर दिया जाए।
यही शब्द इनकी पहचान हैं।
इनका बदन ही इनकी दुकान हैं।
मर्द इनके लिए ग्राहक है।
पुलिस इनके लिए घातक है।
ऐसी औरतें जब उपदेश से नहीं मानतीं तो फिर ये पुलिस के द्वारा धर ली जाती हैं।
पिछले दिनों एक के बाद एक ऐसे कई सेक्स रैकेट पकड़े गए हैं।
इनके सपोर्टर समाज में बहुत ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए हैं। इनके कुकर्मों के समर्थन में आपको ‘नारी‘ भी मिल जाएगी।
इन बुरी औरतों की कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं और उन्हें हल किया जाना चाहिए लेकिन ये औरतें भी कुछ समस्याएं पैदा कर रही हैं समाज में, उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
भले घर की औरतें इनके चक्कर में सताई जा रही हैं।
ये लड़कियां भी भले घर की औरतों का रूप धारण करके ही समाज में विचरण करती हैं।
क़ानून से इन्हें डर लगता है लेकिन मोटी आमदनी का लालच उस डर को काफ़ूर कर देता है। इसका इलाज क़ानून के पास नहीं है। इसका इलाज धर्म के पास है लेकिन बुद्धिजीवी होने का ढोंग रचाने वालों ने कह दिया है कि ईश्वर और धर्म सब दक़ियानूसी बातें हैं।
बस , इस तरह नैतिकता की जड़ ही काट डाली।
बहरहाल जो घटना घटी है निम्न लिंक पर क्लिक करके आप उस पर एक नज़र डाल लीजिए और सोचिए कि सीता और गीता का भारत किस तरफ़ जा रहा है ?

कॉन्ट्रैक्ट पर आती हैं लड़कियां, 1 दिन की कमाई 1 लाख - पंकज त्यागी


 
...और अंत में एक सवाल ‘स्लट वॉक‘ करने वाली माताओं और बहनों से भी करना चाहूंगा कि आप अपनी समस्याओं से परेशान होकर ‘स्लट वॉक‘ करना चाहती हैं लेकिन आपसे पहले यह ‘स्लट वॉक‘ जिन देशों में की गई है, क्या उन देशों की औरतें ऐसा वॉक करने के बाद अपनी समस्याओं से मुक्ति पा चुकी हैं ?
ऐसा कोई भी काम जो औरत को सार्वजनिक तौर पर नंगा करे, हमारी नज़र में वह नारी की मर्यादा के अनुकूल नहीं है और जिसकी नज़र में हो तो वह बताए कि हम कहां ग़लत हैं ?
औरत का दिल नाज़ुक जज़्बात का आईनादार है। दूसरे तो उस पर ज़ुल्म कर ही रहे हैं, वह ख़ुद पर ज़ुल्म ढाने के लिए क्यों आमादा है ?

                                                      लेखक - डॉक्टर अनवर जमाल
                                              

सोमवार, 25 जुलाई 2011

आज स्त्री बस वासना की पूर्ति भर है क्या?

अपनी अश्लील भावनाओं को प्रेम की पवित्रता का नाम देकर कोई अपनी अतृप्त वासना को छुपा नहीं सकता।वासना के गंदे कीड़े जब पुरुष मन की धरातल पर रेंगने लगते है तब वह बहसी,दरिंदा हो जाता है।अपनी सारी संवेदनाओं को दावँ पर रख बस जिस्म की प्यासी भूख को पूरा करने के लिए किसी हद तक गुजर जाता है।जब तक अपनी इच्छानुसार सब कुछ ठीक होता है तब तक वह प्रेम का पुजारी बना होता है।पर जैसे ही उसे विरोध का साया मिलता है वह दरिंदगी पर उतर जाता है।वासना के कुकृत्यों में लिप्त होकर जिस्मानी भूखों के लिए किसी नरभक्षी की तरह स्त्री के मान,मर्यादा और इज्जत को रौंदता रौंदता वह समाज,परिवार और संस्कारों को ताक पर रख बस वही करता है,जो करवाती है उसकी वासना।
हमारी संस्कृति में और हमारे धर्मग्रंथों में स्त्री को जो सम्मान मिला है।वो आज बस इतिहास के पन्नों में ही सीमट कर रह गया है।क्या स्त्री की संरचना बस पुरुष की काम और वासना पूर्ति के लिए हुई है।वो जननि है,वही हर संरचना की मूलभूत और आधारभूत सता है।पर क्या अब वही ममतामयी पवित्र स्त्री का आँचल बस वासनामय क्रीड़ा का काम स्थल बन गया है।आज समाज में स्त्री को बस वस्तु मात्र समझ कर निर्जीव वस्तुओं की तरह उनका इस्तेमाल किया जा रहा है।क्या यही है वजूद आज के समाज में स्त्री का।स्त्री पुरुषों को जन्म देकर उनका पालन पोषण कर के उन्हें इसलिए इस लायक बना रही है कि कल किसी परायी स्त्री के अस्मत को लूटों।इन घिनौने कार्यों की पूर्ति के लिए स्त्री का ऊपयोग क्या उसे वासना का परिचायक भर नहीं बना दिया है आज के समाज में।
हद की सीमा तब पार हो जाती है जब बाप के उम्र का कोई पुरुष अपनी बेटी की उम्र की नवयौवना के साथ अपने हवस की पूर्ति करता है और अपनी मूँछों को तावँ देते हुये अपनी मर्दांगनी पर इठलाता है।लानत है ऐसी मर्दांगनी पर जो अपनी नपुंसकता को अपनी वासनामयी हवस से दूर करने की कोशिश करता है।क्यों आज भी आजादी के कई वर्षो बाद भी जब पूरा देश स्वतंत्र है।हर व्यक्ति अपनी इच्छानुसार अपना जीवन यापन करने के लिए तत्पर है।पर जहाँ बात आती है स्त्री के सुरक्षा की सभी आँखे मूँद लेते है।क्या आज शक्ति रुपा स्त्री इतनी कमजोर हो गयी है जिसे सुरक्षा की जरुरत है।क्या उसका वजूद जंगल में रह रहे किसी कमजोर पशु सा हो गया है,जिसे हर पल यह डर बना रहता है कि कही उसका शिकार ना हो जाये।पर आज इस जंगलराज में शिकारी कौन है?वही पुरुष जिसको नियंत्रण नहीं है अपनी कामुक भावनाओं पर और यह भी पता नहीं है कि कब वो इंसान से हैवान बन जायेगा।
स्त्री की कुछ मजबूरियाँ है जिसने उसे बस वासना कि पूर्ति के लिए एक वस्तुमात्र बना दिया है।मजबूरीवश अपने ह्रदय पर पत्थर रख बेचती है अपने जिस्म को और निलाम करती है अपनी अस्मत को।पर वो पहलू अंधकारमय है।वह वासना का निमंत्रण नहीं है अवसान है।वह वासनामयी अग्न की वो लग्न है,जो बस वजूद तलाशती है अपनी पर वजूद पाकर भी खुद की नजरों में बहुत निचे तक गिर जाती है।स्त्री बस वासना नहीं है,वह तो सृष्टि है।सृष्टि के मूल कारण प्रेम की जन्मदात्री है।स्त्री से पुरुष का मिलन बस इक संयोग है,जो सृष्टि की संरचना हेतु आवश्यक है।पर वह वासनामयी सम्भोग नहीं है।
हवस के सातवें आसमां पर पुरुष खुद को सर्वशक्तिमान समझ लेता है पर अगले ही क्षण पिघल जाता है अहंकार उसका और फिर धूल में ही आ मिलता है उसका वजूद।वासना से सर्वकल्याण सम्भव नहीं है पर हाँ स्वयं का सर्वनाश निश्चित है।वासना की आग में जलता पुरुष ठीक वैसा ही हो जाता है जैसे लौ पर मँडराता पतंगा लाख मना करने पर भी खुद की आहुति दे देता है।बस यहाँ भावना विपरीत होती है।वहाँ प्रेममयी आकर्षण अंत का कारक होता है और यहाँ वासनामयी हवस सर्वनाश निश्चित करता है।स्त्री को बस वासना की पूर्ति हेतु वस्तुमात्र समझना पुरुष की सबसे बड़ी पराजय है।क्योंकि ऐसा कर वो खुद के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा बैठता है अनजाने में।अपनी हवस की पूर्ति करते करते इक रोज खुद मौत के आगोश में समा जाता है।
जरुरी है नजरिया बदलने की।क्योंकि सारा फर्क बस सोच का है।समाज भी वही है,लोग भी वही है और हम भी वही है।पर यह जो वासना की दरिंदगी हममें समा गयी है वो हमारी ही अभद्र मानसिकता का परिचायक है।स्त्री सुख शैय्या है,आनंद का सागर है।बस पवित्र गंगा समझ कर गोते लगाने की जरुरत है ना कि उसकी पवित्रता को धूमिल करने की।जिस दिन स्त्री का सम्मान वापस मिल जायेगा उसे।उसी दिन जग के कल्याण का मार्ग भी ढ़ूँढ़ लेगा आज का पुरुष जो 21वीं सदी में पहुँच तो गया है पर आज भी कौरवों के दुशासन की तरह स्त्री के चिरहरण का कारक है। 

रविवार, 24 जुलाई 2011

प्रथम पुरुष स्त्रीवादी :आदिकवि वाल्मीकि



प्रथम पुरुष स्त्रीवादी :आदिकवि वाल्मीकि

भूतल के प्रथम काव्य ''रामायण '' के रचनाकार श्री वाल्मीकि ने अपने इस वेदतुल्य आदिकाव्य ''रामायण'' द्वारा न केवल मर्यादा मूर्ति  श्री राम के चरित्र की रचना की बल्कि तत्कालीन समाज में स्त्री -जीवन की समस्याओं का यथार्थ चित्रण भी किया है .न केवल एक रचनाकार के रूप में वरन स्वयं ''रामायण'' के ''उत्तरकाण्ड '' के ''षणवतित्म: [९६ ] ''सर्ग में सीता की शुद्धता का समर्थन करते हुए-उन्होंने यह सिद्ध किया है कि वह सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में प्रथम पुरुष स्त्रीवादी थे .पश्चिम से नारीवाद की उत्पत्ति बतलाने वाले विद्वान भी यदि ''रामायण ''में महर्षि वाल्मीकि द्वारा चित्रित स्त्री जाति की समस्याओं ,स्त्री संघर्ष ,स्त्री -चेतना का अध्ययन करें तो निश्चित रूप से वे भी यह मानने के लिए बाध्य होंगे कि जितना प्राचीन विश्व का इतिहास है utna ही प्राचीन है -स्त्री जाति के संघर्ष का इतिहास -वह स्त्री चाहे देव योनि की हो अथवा राक्षस जाति की .
                 ''स्त्री जाति की हीन दशा ''वर्तमान में जितना बड़ा बहस का मुद्दा बन चुका है ,उसे उठाने का shery  महर्षि वाल्मीकि को ही जाता है .राजा दशरथ के पुत्र -प्राप्ति हेतु लालायित होने को महर्षि इस श्लोक के द्वारा उकेरते हैं -
    ''तस्य चैवंप्रभावस्य ............''[बालकाण्डे ;अष्टम:सर्ग:;
श्लोक-१]  अर्थात सम्पूर्ण धर्मो को जानने वाले महात्मा दशरथ ऐसे प्रभावशाली होते हुए भी पुत्रों के लिए सदा चिंतित रहते थे .उनके वंश को चलाने वाला कोई पुत्र नहीं था .]''

               स्त्री की हीन दशा का मुख्य कारक जहाँ यह था कि पुत्री को वंश चलाने वाला नहीं माना जाता था वही पुरुष-प्रधान समाज में कन्या का पिता hona भी अपमानजनक माना जाने लगा था .महर्षि वाल्मीकि भगवती सीता के मुख से इसी तथ्य को उद्घाटित करते हुए लिखते हैं-
          
     'सदृशाच्चापकृष्ताच्च ........''[अयोध्याकांडे अष्टादशाधिकशततम:
सर्ग: ,श्लोक -३५ ][अर्थात संसार में कन्या के पिता को ,वह भूतल पर इंद्र के तुल्य क्यों न हो ,वर पक्ष के लोंगों से ,वे समान या अपने से छोटी हैसियत के ही क्यों न हों ,प्राय: अपमान उठाना पड़ता है ]
                  
                          [शेष अगली पोस्ट में ]
              शिखा कौशिक 
 [क्या आप ''भारतीय नारी ''ब्लॉग से  जुड़ना चाहते हैं  .इस लिंक पर आयें -