केदार नाथ में जिन भक्तों को प्रकृति के कोप का भाजन बनना पड़ा उनको शत शत श्रद्धांजलि !
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केदारनाथ में भक्तों के साथ प्रभु ने ये कैसा खेल खेला ? भगवान के दर्शन को गए भक्तोंके साथ ऐसा होगा तो ये ही भाव मन में उभरेंगें -
तड़प तड़प के भक्त जब त्याग देता प्राण ,
कैसे कहूँ प्रभु तुम्हें करुणा के हो निधान ?
सौप कर जीवन तुम्हें सद्कर्म जो करता रहे ,
उसको भी कष्ट देने का अजब तेरा विधान !
पूजता रहे तुम्हें कष्ट सहकर भी सदा ,
उसकी पुकार भी देते नहीं हो ध्यान !
सहता रहा दुःख ताप सब भक्ति में तेरा भक्त ,
रखा नहीं तुमने प्रभु श्रद्धा का कोई मान !
टूट गयी आस्था डोला अटल विश्वास ,
लगता है सच होता नहीं कोई कहीं भगवान !
शिखा कौशिक 'नूतन'
7 टिप्पणियां:
शिखा जी !भक्ति मार्ग की बातें हैं यह सब जहां धुंध ही धुंध हैं एक तरफ कहते हैं ईश्वर को सुख करता दुःख हरता दूसरी तरफ कोई विपदा आती है तो ईश्वर के सर पे ठीकड़ा फोड़ देते हैं .
असल बात यह है सब कर्म का विधान है इस या उस (पूर्व )जन्म का .कोई कहता है उसकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता .ईश्वर क्या पत्ते हिलाता है .पत्ते तो हवा हिलाती है .
सब अपनी प्रालब्ध (प्रारब्ध )भोगते हैं .भले इस जन्म में कोई ऐसा वैसा काम न भी किया हो पूर्व जन्मों की कौन जानता है .
सौंप कर जीवन तुम्हें सद्कर्म जो करता रहे ,
उसको भी कष्ट देने का तेरा अजब विधान .
ना समझी की अज्ञान की बातें हैं यह .जो दोगे वही लौटके आयेगा .जैसा बोवोगे वैसा ही काटोगे .सारे सीरियल (पूर्व जन्मों का पार्ट क्या याद है जो इस एक जन्म का रोना रोते हो एक जन्म की दुहाई देते हो कहते हो मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था .मेरे साथ ही यह क्यों हुआ ?तुम्हारा ही संचित कर्म है यह .).प्रत्येक कर्म संचित होता चलता है चैतन्य शक्ति सूक्ष्म तत्व आत्मा में जो पञ्च भूत से परे है .कर्मों का रिकार्ड लिए आगे बढ़ जाती है एक से दूसरे शरीर में .शरीर तो आत्मा का वस्त्र है .जड़ है आत्मा अविनाशी तत्व है .ॐ शान्ति .
लोगों का सफर काफी दुखदाई रहा इस बार
sach me .bahut bhavnatmak abhivyakti .
सच ही कहा शर्मा जी ने....अपने दुष्कर्मों का ठीकरा भगवान पर फोड़ना ही है.....
--- तर गये वे जो लौट कर नहीं आये .....वे भाग्यहीन हैं जो मुक्ति द्वार से लौट आये ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (24.06.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी. कृपया पधारें .
बहुत सुंदर कमाल की भावाव्यक्ति
ईश्वर की लीला को समझ पाना हम इन्सानों के बस की बात कहाँ... वो तो जो जिस नज़र से देखता है उसे वैसा ही नज़र आता है मानो तो भगवान नहीं तो पत्थर ही है।
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