जो औरत मर्द से दबकर घर में रह नहीं सकती ,
वो इज्ज़त से ज़माने में रह नहीं सकती !
सुनो बेगम है जिसको कद्र अपने शौहर की ,
वो घर की बात दुनिया में कह नहीं सकती !
करे कितने भी ज़ुल्म शौहर अपनी बेगम पर ,
वो बीवी क्या जो लब सिल के सह नहीं सकती !
हदों में रहना हुक्म मर्द का जिस बीवी ने माना ,
किसी भी वक़्त वो ज़ज्बात में बह नहीं सकती !
सितम सहकर करें जो खिदमत 'नूतन' अपने शौहर की ,
हैं पक्की एक ईमारत बीवियाँ ढह नहीं सकती !
शिखा कौशिक 'नूतन'
5 टिप्पणियां:
kya bat hai
बेहतरीन अभिव्यक्ति .आभार . मगरमच्छ कितने पानी में ,संग सबके देखें हम भी .
आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN क्या क़र्ज़ अदा कर पाओगे?
अंतिम शेर का क्या अर्थ है.??
@shyam gupt ji -अर्थ स्वयं स्पष्ट है ....पक्की ईमारत सर्दी-गर्मी-बरसात के वार सहकर भी सुरक्षित खड़ी रहती है इसी तरह स्त्री की देह भी पुरुष के सब जुल्म सहकर उसी घर में उसकी खिदमत में लगी रहती है .
उफ़्फ़ नारी जीवन की व्यथा को उजागर करती सार्थक पोस्ट।
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