शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

औरत का एक रूप और भी है- लेखक - डॉक्टर अनवर जमाल

नारी त्याग की मूर्ति होती है, वह मां, बहन, बेटी और पत्नी होती है। अक्सर औरतें ख़ुद को इन्हीं रूपों में गौरवान्वित भी समझती हैं लेकिन औरत का एक रूप और भी है जिसे तवायफ़ और वेश्या कहा जाता है। ये औरतें पैसों के लालच में अपने नारीत्व का अपमान करती हैं। ये किसी नैतिक पाबंदी को नहीं मानती हैं।
इनका मानना है कि हम अपनी मनमर्ज़ी करने के लिए आज़ाद हैं। हमें नैतिकता का उपदेश देना बंद कर दिया जाए।
यही शब्द इनकी पहचान हैं।
इनका बदन ही इनकी दुकान हैं।
मर्द इनके लिए ग्राहक है।
पुलिस इनके लिए घातक है।
ऐसी औरतें जब उपदेश से नहीं मानतीं तो फिर ये पुलिस के द्वारा धर ली जाती हैं।
पिछले दिनों एक के बाद एक ऐसे कई सेक्स रैकेट पकड़े गए हैं।
इनके सपोर्टर समाज में बहुत ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए हैं। इनके कुकर्मों के समर्थन में आपको ‘नारी‘ भी मिल जाएगी।
इन बुरी औरतों की कुछ समस्याएं भी हो सकती हैं और उन्हें हल किया जाना चाहिए लेकिन ये औरतें भी कुछ समस्याएं पैदा कर रही हैं समाज में, उन्हें बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
भले घर की औरतें इनके चक्कर में सताई जा रही हैं।
ये लड़कियां भी भले घर की औरतों का रूप धारण करके ही समाज में विचरण करती हैं।
क़ानून से इन्हें डर लगता है लेकिन मोटी आमदनी का लालच उस डर को काफ़ूर कर देता है। इसका इलाज क़ानून के पास नहीं है। इसका इलाज धर्म के पास है लेकिन बुद्धिजीवी होने का ढोंग रचाने वालों ने कह दिया है कि ईश्वर और धर्म सब दक़ियानूसी बातें हैं।
बस , इस तरह नैतिकता की जड़ ही काट डाली।
बहरहाल जो घटना घटी है निम्न लिंक पर क्लिक करके आप उस पर एक नज़र डाल लीजिए और सोचिए कि सीता और गीता का भारत किस तरफ़ जा रहा है ?

कॉन्ट्रैक्ट पर आती हैं लड़कियां, 1 दिन की कमाई 1 लाख - पंकज त्यागी


 
...और अंत में एक सवाल ‘स्लट वॉक‘ करने वाली माताओं और बहनों से भी करना चाहूंगा कि आप अपनी समस्याओं से परेशान होकर ‘स्लट वॉक‘ करना चाहती हैं लेकिन आपसे पहले यह ‘स्लट वॉक‘ जिन देशों में की गई है, क्या उन देशों की औरतें ऐसा वॉक करने के बाद अपनी समस्याओं से मुक्ति पा चुकी हैं ?
ऐसा कोई भी काम जो औरत को सार्वजनिक तौर पर नंगा करे, हमारी नज़र में वह नारी की मर्यादा के अनुकूल नहीं है और जिसकी नज़र में हो तो वह बताए कि हम कहां ग़लत हैं ?
औरत का दिल नाज़ुक जज़्बात का आईनादार है। दूसरे तो उस पर ज़ुल्म कर ही रहे हैं, वह ख़ुद पर ज़ुल्म ढाने के लिए क्यों आमादा है ?

                                                      लेखक - डॉक्टर अनवर जमाल
                                              

4 टिप्‍पणियां:

Shikha Kaushik ने कहा…

पुरुष प्रधान समाज में यही तो ज्यादती है की स्त्री के लिए तो ''वेश्या' 'तवायफ' जैसे शब्द बना दिए गए किन्तु जो पुरुष उनका शोषण करते हैं वे सदा पाक -साफ बने रहते हैं .अधिकांश स्त्रियों को गरीबी के कारण इस निंदनीय काम को अपनाना पड़ता हैं या उनके घर के पुरुष खुद उन्हें बेचकर ऐसे घटिया काम में लगा देते हैं .जब तक पुरुष द्वारा शोषण बंद नहीं होगा तब तक औरत का यह रूप भी समाज में रहेगा .मांग -पूर्ति के सिद्धांत की तरह .पुलिस विभाग तो स्वयं स्त्रियों के शोषण में लगा रहता है वो क्या इन्हें पकड़ेगा ?

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

शिखा जी ! आपकी बात से तो यह लगता है कि ग़रीब औरतें अपना तन बेचने के लिए तैयार रहती हैं और अगर औरतों के पास धन हो तो वे अपने सतीत्व की रक्षा ज़रूर करेंगी ?
आप भी जानती हैं कि यह बात सही नहीं है। आज आप दुनिया भर की अमीर औरतों की सूची बना लीजिए और देखिए कि वे नैतिकता के कितने प्रतिमान पूरे कर रही हैं ?
जबकि आपको ग़रीब औरत आज भी उनके मुक़ाबले अधिक नैतिक मिलेगी।
औरत हो मर्द , ग़रीब हो या अमीर वह जुर्म और पाप तब करता है जबकि उसका यह यक़ीन कमज़ोर पड़ जाता है कि जो कर्म वह कर रहा है उसका फल देने वाला ईश्वर-अल्लाह उसे देख रहा है।

मैं आपसे सहमत हूं कि सारे ऐबों में औरत के साथ रहने के बावजूद बदनाम अक्सर औरत ही होती है जबकि मर्द पाक-साफ़ बना रहता है। अगर समाज को पुरूष प्रधान से धर्म-प्रधान बना दिया जाए तो फिर ऐसा नहीं होगा। जुर्म जो भी करेगा, ज़लील होकर सज़ा पाएगा और उन्हें सज़ा मिलती देखकर दूसरे लोगों को इबरत हासिल होगी।

मांग और आपूर्ति का सिद्धांत सही है लेकिन आखि़र मांग को जायज़ तरीक़े से पूरी करने में क्या बाधाएं हैं ?
उन बाधाओं को दूर करके मांग और आपूर्ति के सिद्धांत को सम्मानित तरीक़े से पूरा किया जा सकता है। विवाह इस समस्या का हल है। इसके अलावा संयम और सदाचार की शिक्षा भी केवल धर्म ही देता है।
धार्मिकता के तत्व को बढ़ाकर इस औरत को तबाही के रास्ते पर जाने से रोका जा सकता है और यही बात मर्दों के लिए भी लाभदायक है।

धन्यवाद !

अशोक कुमार शुक्ला ने कहा…

Mujhe lagta hai ki hame saiyamit hone ki jatoorat hai. Yesi khabro me hum police aur us mahila ki tasveer hi kyo use karte hai?
Un aadmiyo(purusho) ki tasveer kyo nahi lagate jo inhe paise ya kisi aur yareeke se is 'dhande' me jane par majboor karte hai?
Kam se kam is blog par to unka hi chehra dikhaya jana chahiye tha.
Shyad shikha ji meri baat se sahmat ho.

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

@ अशोक जी ! अगर आपके पास उन लोगों के फोटो हैं तो प्लीज़ आप भेज दीजिए , उन्हें भी लगा दिया जाएगा ।