प्रश्न पूनम पांडे से !
[मेरी इस पोस्ट को ''नारी का कविता ब्लॉग ''से हटा दिया गया था .यह पूनम पांडे के उस बयाँ से सम्बंधित है जो उसने भारतीय क्रिकेट टीम के विश्व-कप जीतने की पूर्व संध्या पर दिया था ]
कैसी आदिम सोच है तुम्हारी?
किस आधुनिक पीढ़ी का
प्रतिनिधित्व कर रही हो तुम ?
क्या पाना चाहती हो तुम
और कैसे ?
क्या तुम्हारा अनुसरण
कर स्त्री जाति फहरा
पायेगी सशक्तिकरण का झंडा ?
क्या तुम सोचती हो कि
स्त्री के पास अपनी देह के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं ?
तुम्हारी मानसिकता इतनी
दिवालिया क्यों हो गयी ?
तुम्हारा नाम तो अमावस्या होना
चाहिए था फिर किसने
''पूनम ''रख दिया ?
तुमने तो आज नग्नता
को भी शर्मसार कर दिया !
15 टिप्पणियां:
सुश्री शिखा कौशिक जी, आपने कविता के माध्यम से मोडल पूनम पांडे से बहुत अच्छा प्रश्न पूछा है. ऐसे प्रश्न चाहे कोई पुरुष हो या महिला से जरुर पूछने चाहिए. जो दिवालिया मानसिकता से पीड़ित हो और अनैतिकता की सीमा लांघता है.
भारतीय नारी ब्लॉग की स्थापना पर मेरे पूरे प्रकाशन परिवार "शकुन्तला प्रेस" की ओर से हार्दिक शुभकामनायें व बधाई.
इस ब्लॉग पर पहली पोस्ट की हार्दिक शुभकामनायें व बधाई.
मेरा विनम्र अनुरोध है आप यहाँ अच्छी महिला की भी चर्चा करें व बुरी महिला की भी.
नोट करें: महिला बुरी और अच्छी नहीं होती बल्कि अच्छी व बुरी उनकी मानसिकता कहूँ या विचार होते हैं.
आप यहाँ पर बुरी मानसिकता वाली महिलाओं की चर्चा करके उन्हें अपनी मानसिकता बदलने के लिए सोचने पर मजबूर कर सकती हैं. बुरे इंसान को बदलने के लिए आपको ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.मगर जीवन की इसी में सार्थकता है.
आप "सच" के साथ कदम बढ़ाये किसी से डरे नहीं.अपनी प्रोफाइल में कुछ अन्य जानकारियों का अभाव है और कृपया ब्लॉग का नाम देवनागरी लिपि हिंदी में रखे. इसमें महिलाओं के हितों की रक्षा करने वाले विभागों की वेबसाइट के लिंक आदि भी जोड़े.
मुझे यह मालूम नहीं आप मुझे अनुसरणकर्त्ता के रूप में रखेंगी या नहीं और मेरी टिप्पणी को रखेंगी या नहीं. मगर इस ब्लॉग को खुली मानसिकता का परिचय देते हुए महिलाओं और पुरुषों को रखकर कुछ नया रचनात्मक कार्य करें.
जो सच है उसको सार्वजनिक करने से कैसा डर? जान से मारने की धमकी देकर आपको डरना भी चाहेंगे कभी मत डरें. जब तक जीवन है शान से जीएं. सच को मारना इतना आसान नहीं है. सच लिखने में डरता वो है, जो गलत होता है.
मेरी "शकुन्तला प्रेस" यहीं कार्य करती हैं. ब्लॉग जगत में नया हूँ.इसलिए ज्यादा लोग मेरे विचारधारा से परिचित नहीं है. शकुन्तला प्रेस को मैंने अपनी बहन स्व.शकुन्तला जैन की याद में देश व समाज को समर्पित कर रखा है. जिससे उसके सुसराल वालों ने जलाकर मार दिया था. हम आर्थिक व शारीरिक रूप से कमजोर होने के साथ ही भ्रष्ट न्याय व्यवस्था के कारण कुछ नहीं कर पायें. इसलिए मेरे विचारों में अन्याय की प्रति इतनी अधिक उग्रता है.मगर किसी को शारीरिक चोट नहीं पहुचंता हूँ. अपने जैन धर्म का पालन करता हूँ.मुझे पूरे ब्लॉग जगत को अपनी विचारधारा से अवगत करने में लगभग एक साल ओर लग सकता है. इसका प्रमुख्य कारण है अंग्रेजी के ना कारण इन्टरनेट पर तकनीकी ज्ञान होने में समय लग जाता है.पारवारिक स्थिति अच्छी न होने के कारण पढाई भी "मैट्रिक" तक बड़ी मुश्किल से हुई है. मन मैं किसी प्रकार की बिना द्वेष भावना रखे.हमारे हर ब्लॉग का अवलोकन करें. उसका एक-एक शब्द पढकर देखे.फिर विचार व्यक्त करें.
एक बार फिर से "भारतीय नारी" ब्लॉग की स्थापना पर मेरे पूरे प्रकाशन परिवार "शकुन्तला प्रेस" की ओर से हार्दिक शुभकामनायें व बधाई.
इसका उपशीर्षक के शब्दों में ऐसा हो कि-वो शब्द न होकर हर महिला को अपने दर्द की दवा लगे.
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "शकुन्तला प्रेस का पुस्तकालय" ब्लॉग की मूल भावना"
सुश्री शिखा कौशिक जी, देखा आपने भी अब आपकी पोस्ट को भी हटा दिया गया. यहाँ से लौटकर आपकी पोस्ट ही नहीं मिली. मैं हमेशा सच का साथ देता हूँ. अगर आप चाहे तो वो पोस्ट मुझे भेज सकती हैं या ब्लॉग की ख़बरें में प्रयास करें. मैं आपसे पूछता हूँ, क्या वो आपकी निजी समस्या नहीं थीं? फिर वो क्यों ब्लॉग जगत पर आई या यह कहूँ "मंच" पर आई. क्या आपने जानबूझकर अपनी चैटिंग या ईमेल में बात की थीं. जिससे आपका कोई दोष ना बता सकें. आज आप भी वहीँ ओर उसी मोड़ पर खड़ी हैं. जहाँ किसी दिन मैं खड़ा था. मैंने सच लिखा था और उसपर कायम भी रहा.जितना हो सकता था उतना अन्याय का विरोध भी किया. अब मैं और पूरा ब्लॉग जगत आपके और आपकी दोस्त के अन्याय का इन्तजार कर रहें. देखते है आप अब कितना विरोध कर पाती हैं?
आप मेरी बेशक यह टिप्पणी हटा देना, मगर आप इस सच को झुठला नहीं सकती हैं कि-ब्लॉग जगत में "सच" का समर्थन करने वाले बहुत कम लोग है.
मैं पहले भी कहता आया हूँ और आज ब्लॉग जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं. दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे
जरुर देखे."लड़कियों की पीड़ा दर्शाती दो पोस्ट"
रमेश जी हौसला बढ़ने के लिए आभार .अपनी पोस्ट मैंने स्वयं हटाई हैं .कोई भी आपत्ति करे मुझे ये पसंद नहीं .सामूहिक ब्लॉग की अपनी नियमावली होती है अगर BBLM का तकनिकी सलाहकार जब पोस्ट पर आपत्ति करता है तो पोस्ट हटा लेना ही उचित था . आपने ब्लॉग का अनुसरण कर व् बहुमूल्य सलाह देकर उत्साहवर्धन किया मैं इसके लिए आपका हार्दिक धन्यवाद करती हूँ .
आप विरोध नहीं कर सकती है. आपके तर्क से असहमत हूँ. अगर सच्ची है. तब उससे कहीं और जगह या अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करें. मैं यही मानूंगा.आपने दवाब में हटाई है.अगर ऐसा नहीं है तो वो पूरी पोस्ट मुझे भेजो.मैं अपने ब्लॉग पर लगाकर दिखता हूँ. अगर उसमें सच्चाई है तो, नहीं तो आपने शब्दों के साथ खेलकर एक कहानी तैयार की थीं. मैं यहीं कहूँगा या यह कहूँगा कि-पुरुष प्रधान समाज से डर गई है. अगर आप सही हैं तब डर किसका? मौत का ? क्या जिस दिन मौत आएगी आप रोक सकती हो? फिर डर कैसा?
जब सब जगह हो निराश, तब सिरफिरा के पास आओ. सिरफिरा सच के लिए सिर कटवाना जानता है.
सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट
http://shakuntalapress.blogspot.com/2011/07/blog-post.html
अच्छी रचना।
वो स्त्री होकर इस तरह की पेशकश करती है और जब उस पर कोई सवाल करे तो कुछ लोगों को आपत्ति होती है।
शिखाजी, मैं कुछ व्यक्तिगत कारणों से ब्लॉग जगत से दूर हूँ, आज यहाँ देखा तो पता चला काफी कुछ विवाद चल रहा है, bblm का भी जिक्र है, इन दिनों योगेन्द्र जी ही वहा जिम्मेदारी उठा रहे है, मैं उनके किसी निर्णय को बिना पूरी जानकारी के अनुचित भी ठहरा सकता. जैसे आप भारतीय ब्लॉग समाचार में हर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है. फिर भी BBLM की तरफ से आपको ठेस पहुंची है माफ़ी चाहूँगा.
क्या तुम सोचती हो कि
स्त्री के पास अपनी देह के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं?
यक्ष प्रश्न
अन्याय का विरोध न करना भी अन्याय है.
खुलकर करें.अगर संभव हो तो अपनी पोस्ट में अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग ना करें. अगर कहीं जरूरत भी हो तब उसका हिंदी में अनुवाद देने का भी प्रयास करें. अगर आपकी बात कहूँ या विचार को सही से समझेगा तब उसको टिप्पणी करने में कहूँ या विचार व्यक्त करने में आसानी होगी.
सभी पाठक देखें और विचार व्यक्त करें. जरुर देखे "सच लिखने का ब्लॉग जगत में सबसे बड़ा ढोंग-सबसे बड़ी और सबसे खतनाक पोस्ट"
सही प्रश्न उठाया है आपने ... नारी स्वतंत्रता का मतलब नग्नता नहीं होता ...
bahas karne bhar ke liye kuchh kahaa jaaye , so to theek naheen .
vishay jitna gambheer hai utna hi puraatan bhi hai .
charchaa ho rahi hai , vishay bhi jeevant rahegaa , shaayad samaaj ki maansiktaa badal jaaye .- und
tiger.und@gmail.com
bhut samvedansheel vichaar hain .
आदरणीय शिखा कौशिक जी, आप भी आज उसी द्वध्द से लड़ रही है. जिससे कुछ दिनों पहले मैंने भी "भारतीय ब्लॉग समाचार" के मंच पर लड़ा था. उस दिन सभी को डॉ अनवर जमाल खान बुरे नज़र आ रहे थें, क्योंकि उन्होंने मेरी उस पोस्ट को यहाँ "रमेश कुमार जैन ने 'सिर-फिरा'दिया शीर्षक से पोस्ट लगा दी थीं.तब मैंने भी चैटिंग को शामिल करते हुए अपनी जिम्मेदारियां की जानकारी प्राप्त करने की कोशिश की थीं. तब सम्मानीय और आपकी दोस्त शालिनी कौशिक ने उसी मंच पर उसको मेरी निजी मामला/ख़बरें कहकर अपमानित किया था. जब कोई ब्लोग्गर किसी के निजी दुःख और सुख में साथ नहीं दें सकते हैं. तब क्यों यह दोस्ती और भाईचारे का ढोंग? आज तक सिरफिरा ने "सच" का साथ दिया है और देता रहेगा.आज आप किन हालातों से गुजर रही हैं. मैं यह भली-भांति समझ सकता हूँ. वैसे तो आपके उस मंच पर लगी यहीं पोस्ट उस मंच के मापदंड को पूरा नहीं करती हैं. उसमें भी किसी की निजी समस्या है. उस मंच के उद्देश्य को पूरा नहीं करती हैं. मगर यहाँ पोस्ट डालने वाले भाई अनवर जमाल खान साहब की हैसियत और जिसकी यह समस्या(प्रधान संपादक-शिखा कौशिक)है, उनकी हैसियत मेरे से लाख गुना बड़ी है. आखिर यह भेदभाव क्यों? सिर्फ इसलिए मैं गरीब, लाचार, कमजोर था. गरीब, लाचार और कमजोर को कोई भी थप्पड़ मार लेता हैं. अपने से ताकतवर को मारे तब बहादुरी है. आज कहाँ गई उस मंच के मंडल और मालिक की ताकत? उस दिन एक-दो को छोड़कर बाकी मौन थें और आज भी मौन क्यों है? यानि यहाँ पर तमाशा देखने वाले ज्यादा है. बल्कि आगे बढ़कर "सच" का समर्थन करने वाले कम है. मैंने जो कहा करके दिखाया और आगे भी दिखता रहूँगा. इसका सबूत भी उन्हें ईमेल करके दे रहा हूँ. जब सच का कोई साथ ना दें तब सिरफिरा के पास आये.सिरफिरा सच के लिए अपना सिर भी कटवाने के लिए तैयार रहता है. मैं पहले भी कहता आया हूँ और आज ब्लॉग जगत पर कह रहा हूँ कि-मुझे मरना मंजूर है,बिकना मंजूर नहीं.जो मुझे खरीद सकें, वो चांदी के कागज अब तक बनें नहीं.दोस्तों-गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
सार्थक पहल, शुभकामनाएं
नए ब्लॉग के लिए आपको और पूरे हिंदी ब्लॉग जगत को मुबारकबाद ।
@ आदरणीय रमेश जैन जी से अति विनम्र विनती करना चाहूँगा कि वे इस बात को समझें कि सच बोलने वालों के स्वभाव में थोड़ा थोड़ा अंतर पाया जाता है । इसके पीछे आयु , लिंग और माहौल आदि बहुत से कारण होते हैं । बल्कि कई बार तो एक ही आदमी अलग अलग मौकों पर अलग अलग तरह रियेक्ट करते हैं । सच बोलने की आपकी अपनी शैली है तो शिखा जी और शालिनी जी की अपनी शैली है ।
नए ब्लॉग के उद्घाटन के अवसर पर इस तरह की टिप्पणियाँ सर्वथा अनुचित हैं ।
आपकी शिक्षा मैट्रिक तक हुई है और इन दोनों बहनों की उससे आगे तक । कुछ बातें आपको उनसे सीखने की कोशिश करनी चाहिए और मुझे भी इसकी ज़रूरत है ।
आपकी बहन के दर्दनाक वाक़ये के बारे में पता चला बहुत दुख हुआ । जीव न खाने वाले जैन द्वारा भी अपनी बहू जलाने की घटनाएं बताती हैं कि हिंसा का कारण उसके मन में होता है ।
धन्यवाद !
सही प्रश्न उठाया है आपने
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