यूँ तो भारतीय नारी का हर स्वरुप प्रेरणादायी है पर एक शहीद की पत्नी के रूप में स्त्री कितना बड़ा त्याग करती है सोचकर भी ह्रदय गदगद हो जाता है और आँखें नम .इन्ही भावों को संजोये है यह रचना .शत-शत नमन इन वीर नारियों को -
हे! शहीद की प्राणप्रिया
तू ऐसे शोक क्यूँ करती है?तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.
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श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
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सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-चोथ -व्रत करती हैं
ये देख के तेरी आँखों सेआंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की
धड़कन कहती है--------
जिसका प्रिय हुआ शहीद यहाँ वो ''अमर सुहागन'' रहती है.
9 टिप्पणियां:
बहुत खूब ।
ati sunder. aman ka paigham pe mahilaon se jude mudde ko padhein.
yeh rachna to dil ko choo gai.bahut achchi.
bahut sunder !!
एक ही समय में भाव विह्वल ,गौरवान्वित करने वाली रचना .अप्रतिम शीर्षक "अमर सुहागन ".
दिल को छु लेने वाली रचना । बहुत सुन्दर ।
श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
बहुत ही सुन्दर भाव
और शहीद वीरांगनाओं को नमन
bahut bahut aabhar utsahvardhan hetu .
अति सुंदर, शिखा जी आपको प्रणाम
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