विख्यात शायर साहिर लुधियानवी से अमृमा प्रीतम का प्यार तत्कालीन समालोचकों का पसंदीदा विषय था। साहिर के साथ अपने लगाव को उन्होंने बेबाकी से अपनी आत्मकथा में इस प्रकार व्यक्त किया है।ः-
‘‘--- पर जिंदगी में तीन समय ऐसे आए हैं-जब मैने अपने अन्दर की सिर्फ औरत को जी भर कर देखा है। उसका रूप इतना भरा पूरा था कि मेरे अन्दर के लेखक का अस्तित्व मेरे ध्यान से विस्मृत हो गया--दूसरी बार ऐसा ही समय मैने तब देखा जब एक दिन साहिर आया था तो उसे हल्का सा बुखार चढा हुआ था। उसके गले में दर्द था-- सांस खिंचा-खिंचा थां उस दिन उसके गले और छाती पर मैने ‘विक्स’ मली थी। कितनी ही देर मलती रही थी--और तब लगा था, इसी तरह पैरों पर खडे़ खडे़ पोरों से , उंगलियों से और हथेली से उसकी छाती को हौले हौले मलते हुये सारी उम्र गुजार सकती हूं। मेरे अंदर की सिर्फ औरत को उस समय दुनिया के किसी कागज कलम की आवश्यकता नहीं थी।---
चित्र चित्रकार इमरोज द्धरा बनाया गया अमृता जी का एक पोट्रेट
कुछ पंक्तियाँ और देखिये
लाहौर में जब कभी साहिर मिलने के लिये आता था तो जैसे मेरी ही खामोशी से निकला हुआ खामेाशी का एक टुकड़ा कुर्सी पर बैठता था और चला जाता था---वह चुपचाप सिगरेट पीता रहता था, कोई आधा सिगरेट पीकर राखदानी में बुझा देता था, फिर नया सिगरेट सुलगा लेता था।और उसके जाने के बाद केवल सिगरेट के बड़े छोटे टुकडे़ कमरे में रह जाते थे।
कभी --एक बार उसके हाथ छूना चाहती थी, पर मेरे सामने मेरे ही संस्कारों की एक वह दूरी थी जो तय नहीं होती थी--
तब कल्पना की करामात का सहारा लिया था। उसके जाने के बाद, मै उसके छोडे हुये सिगरेट को संभाल कर अलमारी में रख लेती थी, और फिर एक-एक टुकडे़ को अकेले जलाती थी, और जब उंगलियों के बीच पकड़ती थी तो बैठकर लगता था जैसे उसका हाथ छू रही हूं---- ’’
साहिर के प्रति उनके मन में प्रेम की अभिव्यक्ति उनकी अनेक रचनाओं में हुयी हैः-
‘‘---देश विभाजन से पहले तक मेरे पास एक चीज थी जिसे मैं संभाल -संभाल कर रखती थी। यह साहिर की नज्म ताजमहल थी जो उसने फ्रेम कराकर मुझे दी थी। पर देश के विभाजन के बाद जो मेरे पास धीरे धीरे जुडा है आज अपनी अलमारी का अन्दर का खाना टटोलने लगी हूं तो दबे हुए खजाने की भांति प्रतीत हो रहा है---
साहिर के प्रति उनके लगाव की सीमा को प्रदर्शित करता एक और वाकया जो उन्होंने रसीदी टिकट में उतारा है
---एक पत्ता है जो मैं टॉलस्टाय की कब्र परसे लायी थी और एक कागज का गोल टुकडा है जिसके एक ओर छपा हुआ है’-एशियन राइटर्स कांफ्रेस और दूसरी ओर हाथ से लिखा हुआ है साहिर लुधियानवी यह कांफ्रेंस के समय का बैज है जो कांफ्रेस में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक लेखक को मिला था। मैने अपने नाम का बैज अपने कोट पर लगाया हुआ था और साहिर ने अपने नाम का बैज अपने कोट पर । साहिर ने अपना बैज उतारकर मेरे कोट पर लगा दिया और मेरा बैज उतारकर अपने कोट पर लगा लिया और------’’
जीवन के उत्तरार्ध में अम्रता जी इमरोज नामक कलाकार के बहुत नजदीक रहीं। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा हैं-
‘‘मुझ पर उसकी पहली मुलाकात का असर- मेरे शरीर के ताप के रूप में हुआ था। मन में कुछ घिर आया, और तेज बुखार चढ़ गया। उस दिन- उस शाम उसने पहली बार अपने हाथ से मेरा माथा छुआ था-
बहुत बुखार है?
इन शब्दों के बाद उसके मुॅह से केवल एक ही वाक्य निकला था- आज एक दिन में मैं कई साल बडा हो गया हूं।
--कभी हैरान हो जाती हूं - इमरोज ने मुझे कैसा अपनाया है, उस दर्द के समेत जो उसकी अपनी खुशी का मुखालिफ हैं--
एक बार मैने हंसकर कहा था,
ईमू ! अगर मुझे साहिर मिल जाता , तो फिर तू न मिलता- और वह मुझे , मुझसे भी आगे , अपनाकर कहने लगा:-मैं तो तुझेे मिलता ही मिलता, भले ही तुझे साहिर के घर नमाज पढ़ते हुए ढूंढ लेता!
सेाचती हूं - क्या खुदा इस जैसे इन्सान से कहीं अलग होता है--’’
अमृता प्रीतम ने स्वयं अपनी रचनाओं में व्यक्त अधूरी प्यास के संदर्भ में लिखा है कि
‘‘ग्ंगाजल से लेकर वोडका तक यह सफरनामा है मेरी प्यास का।’’
आज की चर्चा बस इतनी ही .... अब अगली पोस्ट में सोहनी-महीवाल की भूमि पर भाई-बहन के प्रेम की अनोखी मिसाल !
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कोलाहल से दूर... पर क्लिक करके भी पढ़ सकते हैं। लिंक है:-
प्रेम की अधूरी प्यास के दस्तावेजों की सर्जक अमृता !
7 टिप्पणियां:
अमृता प्रीतम को पढ़ना एक अलग सा एहसास है.
lagatar padhna aur baad me ek lambi saans bahar nikalna yesa hi hua hai yeh lekh padhte hue.bas isse adhik aur kya likhun.
बहुत सुन्दर दिल को छू लेने वाली अमृता जी की पंक्तियों को चुना है आपने .साभार .
बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति
बेहद खूबसूरत ब्लॉग ...
पहली बार हूं इस ब्लॉग पर...अच्छा लगा ये ब्लॉग
आपके सहयोग एवं स्नेह का सदैव आकांक्षी रहूँगा सवाई सिंह आगरा
अमृता जी की इस पाकीज़ा प्रस्तुति ने उनके प्रेम के सूक्ष्म तम स्वरूप से सामना करवाया .शुक्रिया शिखा जी का .
sarthak aalekh sarahniy prastuti.
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