- एक ही वर्ष में रहस्यमय तरीके से गायब हो गये थे तीन बच्चे
- पुलिस ने पाँच वर्ष तक नहीं की रिपोर्ट दर्ज, बाल अधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस के अथक प्रयासों से पाँच वर्ष बाद दर्ज हो सकी रिपोर्ट।
- बच्चों के गम में पिता ने पहले तो मानसिक संतुलन खोया आठ साल बाद कुत्ते के काटने से हो गई, बच्चों के गम में डूबे पिता ने इलाज भी कराना मुनासिव नहीं समझा।
- समय से पहले ही बूढ़ी हो चुकी सोमवती घरों में झाड़ू-पोछा करके बमुश्किल चला रही है घर
- थाना पुलिस से लेकर राष्ट्रपति तक लगाई जा चुकी है गुहार, सभी की ओर से मिलता है एक ही ‘‘जबाब तलास जारी है‘‘।
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आगरा के थाना जगदीशपुरा के बौद्ध नगर, घड़ी भदौरिया की तंग गलियों में रहती है अभागी सोमवती। एक छोटे से कमरे में अपने तीन बच्चों के साथ रहती है दलित सोमवती।
नौ साल से दरवाजे की ओर टकटकी लगाए बैठी एक मां को हर आहट पर यही लगता है कि शायद वो आया, लेकिन न तो वो आता है और ना ही उसकी आहट राहत देती है। वह हर सुबह इसी आस में जगती है और हर रात इसी उम्मीद में सोने की कोशिश करती है कि उसके ‘‘लाल‘‘ उससे मिलने आयेगें। वह पल पल जीती है और पल पल मरती है, मां के कलेजे को उनकी यादें सताती हैं और उसे रूला जाती हैं।
यह उस मां की सदाये हैं जो हद वक्त अपने ही लाडलों को पुकार रही है। बरसों बीत जाने के बाद भी मां बड़े जतन से अपने कलेजे के टुकड़ों के लौटने का इंतजार कर रही है। बेटों के इंतजार में आंखों में रात गुजरती है और आंशुओं में दिन। न इंतजार खत्म हो रहा है और न कलेजे को ठंडक पहुच रही है, न कोई खबर मिल रही है और न कोई सुध मिल रही है। बच्चों के गम में पहले तो पिता ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया।
वर्षों तक गुमसुम रहा बच्चों की याद में हर समय उस घड़ी को कोसता रहता जिस घड़ी ने उसके मासूमों को उससे जुदा किया था। आठ साल तक एकदम गुमसुम सा रहने वाले पिता को जिंदगी बोझ लगने लगी थी। एकदिन कुत्ते ने उस पिता को काट लिया तो उसने अपना इलाज तक कराना मुनासिव नहीं समझा। वह बच्चों के गम में पूरी तरह से टूट चुका था। उसने अपने कुत्ते की घटना के बारे में अपनी पत्नी को भी नहीं बताया। जब वह पानी से डरने लगा तो सोमवती को कुछ शक हुआ तो कई बार पूछने पर उसने बताया कि उसे कुत्ते ने काट लिया है और अपना इलाज न कराने को कहा वह बच्चों के गम में और अधिक जीना नहीं चाहता था। सोमवती रोती हुई अपने पति के इलाज के लिए दौड़ी लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और उसके पति ने बच्चों के गम में दम तोड़ दिया। अब अभागी सोमवती अकेली है वह अब किसी के साथ दुख बांट भी नहीं सकती है।
पथराई आंखे, पपड़ाये होठ, वक्त से पहले ही चेहरे पर झुर्रियों की मार कुछ ऐसी ही है सोमवती। सोमवती हमेशा से ही ऐसी नहीं थी। सोमवती की भी दुनिया कभी खुशियों से भरी थी। सोमवती के लिए मई 2002 दुर्भाग्य लेकर आया। को सोमवती ने अपने बड़े बेटे आनन्द को अपने पिता को बुलाने के लिए सड़क पर चाय की दुकान से बुलाने के लिए भेजा था। वह पिता को तो आने की कह आया लेकिन खुद नहीं लौटा। अपने 14 वर्षीय बेटा जब शाम छः बजे तक भी नहीं लौटा तो उसकी तलास शुरू कर दी। आस-पास तथा रिश्तेदारों के यहाँ तलाश करने पर भी नहीं मिला तो सोमवती अपने बेटें की रिपोर्ट लिखाने थाने पहुची तो पुलिस का वो क्रूर चेहरा सोमवती के सामने आया जिसे याद करके वह आज भी सिहर उठती है।
पुलिस ने बच्चे की रिपोर्ट लिखने से साफ मना कर दिया। कहा गया कि श्रीजी इंटरनेशनल फैक्ट्री में आग लग गई हमें वहां जाना है ऐसे बच्चो तो खोते ही रहते हैं। उसे रिपोर्ट दर्ज किये बिना ही भगा दिया गया। कहीं भी सुनवाई न होने पर सोमवती थक हारकर घर बैठ गई।
2002 की दीपावली से करीब पाँच-छः दिन पहले सोमवती का 12 साल का दूसरा बेटा रवि भी अचानक गायब हो गया। रवि घर के बाहर खेलने के लिए निकला था। रवि को तलाशने में खूब भागदौड़ की लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। इस बार भी सोमवती थाने में गुहार लगाने पहुची मगर नतीजा पहले की तरह से शून्य ही रहा। अभी सोमवती के उपर दुखों का पहाड़ टूटना बाकी था। करीब तीन माह बाद सोमवती का तीसरा पुत्र रवि रहस्मय तरीके से गायब हो गया।
तीसरे बच्चे के गायब होने पर भी पहले की तरह सोमवती जगदीशपुरा में रिपोर्ट दर्ज कराने गई तो इस बार तो पुलिस ने अमानवीयता की सारी हदें पार कर दीं। पुलिसकर्मियों ने लताड़ दिया और सोमवती से कहा कि तेरे बहुत बच्चे हैं। हर बार तेरे ही बच्चे गायब होते हैं। हमने क्या तेरे बच्चों का ठेका ले रखा है। क्यों इतने बच्चे पैदा किये ज्यादा बच्चे होंगे तो गायब होगें ही हम पर क्या तेरे बच्चे ढूढने का एक ही काम है जाओ और हमें भी काम करने दो।
तीन-तीन बच्चों के गम ने सोमवती तथा उसके पति गुरूदेव को झकझोर कर रख दिया। गुरूदेव बच्चों के गम में अपना मानसिक संतुलन खो बैठा दिन-रात सिर्फ बच्चों की याद में गुमसुम बैठा रहता। अब सारी जिम्मेदारी सोमवती पर आ गई थी। लेकिन सोमवती ने हार नहीं मानी और एक नियम बना लिया वह हर माह थाना जगदीशपुरा जाती और बच्चों के बारे में पूछती पुलिस द्वारा उसे हर बार भगा दिया जाता था लेकिन उसने थाने जाने का नियम नहीं तोड़ा।
10 फरवरी 2007 को सोमवती हर बार की तरह ही थाने गई थी पुलिस ने उसे हमेशा की तरह फटकार दिया था। सोमवती थाना जगदीशपुरा के बाहर बैठी रो रही थी तभी अचानक वहाँ से मानवाधिकार कार्यकर्ता नरेश पारस गुजर रहे थे। उन्होने सोमवती से रोने का कारण पूछा तो पहले तो उसने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। लेकिन अधिक अनुरोध करने पर सोमवती ने नरेश पारस को रोते रोत पूरी घटना बताई। नरेश पारस ने थाना जगदीशपुरा में संपर्क किया तो पता चला कि सोमवती की रिपोर्ट दर्ज की ही नहीं गई थी। नरेश पारस ने सोमवती के मामले को स्थानीय मीडिया में उठाया तो मीडिया ने सोमवती की खबर को प्रकाशित किया।
नरेश पारस ने सोमवती के दुख को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बताया तो मानवाधिकार आयोग ने तत्कालीन एसएसपी श्री जी के गोस्वामी को नोटिस जारी कर रिपोर्ट तलब की। आयोग के निर्देश एवं मीडिया की पहल पर सीओ लोहामण्डी सुनील कुमार सिंह तथा एसओ विनाद कुमार पायल ने सोमवती के घर जाकर हालचाल जाना तथा सोमवती की रिपोर्ट दर्ज की। सोमवती के गायब हुए तीनो बेटों की गुमसुदगी पाँच वर्ष बाद 14 फरवरी 2007 को दर्ज हो सकी।
नरेश पारस लगातार सोमवती के संपर्क रहे। सोमवती के बच्चों के फोटों लेकर पुलिस ने पैम्पलेट छपवाएं। जिले में गुमसुदा प्रकोष्ठ भी खोले गये। गुमसुदा प्रकोष्ठ में भी कई बार सोमवती गई लेकिन उसे सख्त हिदायत दी जाती कि गुमसुदा प्रकोष्ठ में वही कहना है जो दरोगा जी बतायें। कहा जाता रहा कि तलास जारी है। पुलिस द्वारा कोई ठोस कार्यवाही नही की गई। जबकि सोमवती ने अपने स्तर से एक बेटें को ढूढ निकाला।
सोमवती ने बताया कि उसका बड़ा बेटा आनन्द कुबेरपुर गांव में एक जाट परिवार में रहता है। सोमवती का कहना है कि जब वह अपने बेटे से मिलने गई तो जाट परिवार की महिला ने कहा कि वह आनन्द को फरीदाबाद रेलवे स्टेशन से लेकर आई थी । वह अब बच्चे को नहीं देगी। उसने बच्चे को दिल्ली के पास किसी जगह पर छुपा दिया। सोमवती ने कहा कि बच्चे को भले ही न दो लेकिन इतनी अनुमति दे दो कि वह अपने बेटे से त्याहारों पर मिल सके लेकिन उस महिला ने स्पष्ट इंकार कर दिया। और सोमवती को दुवारा नआने की हिदायत दी। सोमवती ने पुलिस से संपर्क किया तो पुलिस ने गाड़ी करने के लिए सोमवती से पैसों की मांग की। सोमवती की मदद के लिए पुलिस द्वारा कोई संतोषजनक कार्यवाही नहीं की। तंग आकर पुलिस ने अप्रेल 2010 में सोमवती के गुमसुदा बच्चों की फाइल ही बन्द कर दी।
सोमवती की फाइल बन्द होने की सूचना जैसे ही नरेश पारस को हुई तो नरेश पारस ने दुबारा से पुनः प्रयास किया। उन्होने सोमवती की मुलाकात तत्कालीन कमिश्नर श्रीमती राधा एस चौहान से मुलाकात कराई। श्रीमती चौहान ने नरेश पारस के अनुरोध पर सोमवती के गुमसुदा बच्चों की दुबारा फाईल खुलवाई। कमिश्नर ने सीओ लोहामण्डी सिद्धार्थ वर्मा को जाच सौपी और सोमवती के बेटों को ढूढने के निर्देश दिये।
नरेश पारस ने सोमवती का मामला महामहिम राष्ट्रपति को भी भेजा। राष्ट्रपति भवन से भी उ0 प्र0 सरकार के लिए निर्देश जारी हुए। उ0 प्र0 सरकार ने पुलिस को कार्यवाही के लिए निर्देश दिये। मामला फिर थान पुलिस पर आकर अटक गया। सोमवती आज भी अपने पुत्रों का इंतजार कर रही है। विगत मार्च माह में सोमवती के पति को कुत्ते ने काट लिया था। सोमवती का पति पहले ही बच्चों के गम में अपना मानसिक संतुलन खो चुका था वह बच्चों के गम में और अधिक जीना नहीं चाहता था इसलिए उसने अपने कुत्ते काटने के संबंध में किसी को भी नहीं बताया। यहाँ तक कि सोमवती का भी नहीं बताया। कुछ दिन गुजरने के बाद जब सोमवती का पति गुरूदेव पानी से डरने लगा तो सोमवती के कुछ शंका हुई और उसने अपने पति से पूछा तो गुरूदेव ने सोमवती को सबकुछ सच सच बता दिया और कहा कि वह अब और अधिक बच्चों का गम बर्दास्त नहीं कर सकता है इसलिए उसका इलाज भी न कराया जाए। सोमवती पति की बातों को सुनकर हैरान रह गई। वह आनन-फानन में पति को लेकर इलाज के लिए दौड़ी उसने कई जगह दिखाया लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। एक दिन बाद ही गुरूदेव ने दम तोड़ दिया। अब सोमवती बिल्कुल अकेली पड़ गई उसका आखिरी सहारा भी छिन गया था। अब वह दिन रात रोती रहती है। उसे अब उजाले से भी डर लगने लगा है। वह एक कमरे में अंधेरा करके बैठी रोती रहती है और अपने भाग्य को कोसती रहती है। अब उसके पास तीन बच्चे हैं 15 साल का संतोष, 12 साल की काजल तथा 10 साल का उमेश। पढ़ने लिखने की उम्र में सोमवती ने अपने दोनों बेटों को जूते का काम सिखाने के लिए पास के ही एक कारखाने में भेज दिया। अब सोमवती एकदम असहाय हो चुकी है। वह हर समय दरवाजे पर बैठी आंशू बहाती रहती है। उसकी मदद करने वाला कोई नहीं है।
सोमवती का मामला थाने से लेकर राष्ट्रपति भवन तक सबके संज्ञान में है। नरेश पारस ने सोमवती का मामला राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग को भी भेजा लेकिन बाल आयोग ने यह कहकर टाल दिया कि मामला पूर्व से ही राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में चल रहा है। इस लिए आयोग कोई भी कार्यवाही नही कर सकता है। मानवाधिकार आयोग ने भी यह कहकर फाईल बन्द कर दी कि पुलिस ने पैम्पलेट छपवाकर बांट, टीवी रेडियों के माध्यम से जानकारी प्रकाशित कराई है। पुलिस द्वारा कार्यवही जारी है इसलिए फाइल बन्द कर दी जाती है।
आगरा की महापौर श्रीमती अंजुला सिंह माहौर एक महिला हैं, उ0 प्र0 की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती हैं तथा देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर भी एक महिला श्रीमती प्रतिभादेवी सिंह पाटिल विराजमान हैं। देश में सभी जगह महिला शासन होते हुए भी एक महिला अपने तीन बेटों को ढूढने के लिए दर-दर भटक रही है। क्या सभी की मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं।
देश में तमाम महिला एवं बाल अधिकार संगठन हैं फिर भी सोमवती पर किसी को भी तरस नहीं आया। यदि पुलिस शुरूआत में ही सोमवती के बेटों की गुमसुदगी दर्ज कर लेती तो शायद उसके बेटों को ढूढा जा सकता था लेकिन पुलिस ने अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ लिया। सोमवती के बेटों को ढूढा जाए तथा उसकी आर्थिक मदद की जाए। उसके बच्चों की शिक्षा की व्यवस्था की जाए। सोमवती आज भी अपने बेटों का इंतजार कर रही है।---
आगरा से वरिष्ठ पत्रकार श्री ब्रज खंडेलवाल की रिपोर्ट
6 टिप्पणियां:
shravan जी बहुत सही व् सटीक बातें आपने लिखी हैं अपनी प्रस्तुति में पर दुःख तो यह है की कहने को ये अपना देश है अपना मानवाधिकार आयोग है किन्तु कहीं भी न्याय की उपस्थिति नहीं है जहाँ आज आम आदमी अपने पर हुए atyachar के liye foran मानवाधिकार आयोग की और देखता है वहीँ ऐसी घटनाएँ तोड़ कर रख देती हैं और पुलिस के vishay में तो सभी पहले से जानते ही हैं .
ब्लॉग पर आपकी sashakt प्रस्तुति के साथ आपका हार्दिक अभिनन्दन है.
shravan जी -आपने दिल को झंकझोर देने वाली घटना को अपनी पोस्ट में प्रस्तुत किया है .देश की समस्त व्यवस्था ही धराशायी हो चुकी है .सार्थक प्रस्तुति .
इस ब्लॉग पर आपका शुभागमन बहुत सार्थक पोस्ट के साथ हुआ है .आभार
अपनी पोस्ट में आपने दिल को झंकझोर दिया है .
Nice post.
jahan insaaniyat hi mar chuki ho vahan is gareeb ki kon sunega.yadi kisi mantri ka koi kutta kho jaaye to yahi police dhoondne me din rat laga degi.gareeb ke bachche ki koi aukat nahi inki najron me.aapki is prastuti ne to is desh ke uchchadikariyon aur police ke prati glani hi bhar di.
एक ही समय में भाव विह्वल ,गौरवान्वित करने वाली रचना .अप्रतिम शीर्षक "अमर सुहागन ".
दरअनअसल यह तंत्र जिसे प्रजा तंत्र कहतें हैं भारत में क़ानून की पालना भूल चुका है .इसीलिए ऊपर से नीचे तक संवेदन शून्यता आम है हर शासनिक प्रशासनिक अमले में .
क्या हम सब मिलकर कुछ कर सकते हैं ? कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओ खासकर नरेश पारस जी ने बहुत कोशिशें की .. उन्ही कि वजह से रिपोर्ट लिखी गई.. लेकिन फिर भी कोई कार्यवाही नहीं.. दो-चार अखबारों में सिर्फ ख़बरें छाप देने से भी कुछ नहीं होता... जरुरत है एक संकल्प की .. यहां जो व्यक्ति आगरा से हो वह अगर कुछ करने की इच्छा रखता हो तो संपर्क करे... हमने यह सारी बातें मुख्यमंत्री मायावती और महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल जी तक भी पहुचाई लेकिन अभी - तक कोई कार्यवाही नहीं ... कम से कम कुछ तो मदद मिलनी चाहिए न ? क्या कहते हैं आप लोग?
श्रवण शुक्ल
दिल्ली
आईएएनएस
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