महिलाओं का गर कहीं, होता है अपमान,
सिखला दुष्टों को सबक, खींचों जमके कान ||
सिखला दुष्टों को सबक, खींचों जमके कान ||
खींचों जमके कान, नहीं महतारी खींची ,
बाढ़ा पेड़ बबूल, करे जो हरकत नीची ||
कृपा नहीं दायित्व, हमारा सबसे पहिला,
धात्री का हो मान, सुरक्षित होवे महिला ||
एक दोहा--
पर जननी मिट गई तो--
जननी यदि कमजोर है, हो दुर्बल संतान |
पर जननी मिट गई तो, करिहै का विज्ञान ||
8 टिप्पणियां:
कृपा नहीं दायित्व, हमारा सबसे पहिला,
धात्री का हो मान, सुरक्षित होवे महिला ||
रवि जी बहुत प्रेरणादायक विचार हैं आपके .इस ब्लॉग पर आपकी पहली प्रस्तुति ही इस ब्लॉग को चार chand laga rahi है .आपका इस ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है.
कृपा नहीं दायित्व, हमारा सबसे पहिला,
धात्री का हो मान, सुरक्षित होवे महिला ||
रविकर जी सटीक बात कही है आपने .माता का सम्मान सबसे पहले होना ही चाहिए जो -माता का सम्मान नहीं करता वो मनुष्य कहलाने के भी योग्य नहीं है .बहुत सुन्दर पोस्ट के साथ आपका इस ब्लॉग पर शुभागमन हुआ है .स्वागत है आपका .आभार
बहुत सही बात कही है आपने रविकर जी अपने दोहे के माध्यम से | जननी का सम्मान और सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण है |
कान खींचने के साथ बदमाशों की नाक भी मुक्के मार कर पकौड़े जैसी कर देनी चाहिए ।
अच्छी पोस्ट ।
bahut uttam dohe hain.badhaai.
behad khoobsurat dohe!
सुन्दर रचना
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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जननी यदि कमजोर है, हो दुर्बल संतान |
पर जननी मिट गई तो, करिहै का विज्ञान ||
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ
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