वो लड़की पगली है ,
बावली है , बहकी हुई है ,
तभी तो ठहाका लगा देती है !
उसके ठाहके की गूँज
सोये हुए ज़मीर जगा देती है !!
दुष्कर्म पीडिता की मौत पर
आक्रोशित होती है ,रोती है
और जब उस पीडिता का
पिता लेता है इस हादसे
का मुआवजा और भाई
मांगते हैं नौकरी
तब वो लड़की चीखकर
कहती है बेशर्मों बंद करो
ये सब, वहशीपन
तुममे भी कम नहीं !
मजाक मत बनाओ मेरी
सखी साथ हुई
दरिदगी का !
ये कहकर हो जाती है चुप
फिर बिखरे बालों को कसकर
पकड़ती है हथेलियों में ,
सिर उठाकर देखती है
सहमी नज़रों से इधर-उधर ,
आँखों के अंगारों से
ठन्डे ज़ज्बात तपा देती है !
वो लड़की पगली है
बावली है , बहकी हुई है ,
तभी तो ठहाका लगा देती है !
वो कहती है बैठो सडको पर
जब तक दुष्कर्मी सब
चढ़ न जाये फाँसी पर ,
ठुकरा दो मुआवज़े ,
नौकरी की पेशकश और
फ़्लैट ,बस याद रखो
वे आँहें ; वे टीस जो
बिटिया ने भरी -सही हैं !
ज़ख्म देने वालों को
इतने सस्ते में मत छोड़ो !
ये कहकर खींचती है
लम्बी सांसे और चुप हो जाती है ,
फिर सोचती है अपना नाम
पर याद नहीं आता ,
वो सड़क पर पड़ा एक पत्थर
आकाश में उछाल देती है ,
बुझे आशा के दिए दिल में जगा देती है ,
वो लड़की पगली है
बावली है , बहकी हुई है ,
तभी तो ठहाका लगा देती है !
शिखा कौशिक 'नूतन '
1 टिप्पणी:
गहन अनुभूति बेहतरीन प्रस्तुति
जीवंत रचना
बहुत बहुत बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
मुझे ख़ुशी होगी
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