इब लौंडिया नी लौंडों को संभालो-लघु कथा
सुखबीर ....सुखबीर 'सख्त लहजे में लखनपाल आवाज़ लगता हुआ सुखबीर की दहलीज़ में घुसा .सुखबीर आँगन में खाट पर बैठा हुआ चाय पी रहा था .लखनपाल की आवाज़ सुनते ही सुखबीर ज्यों ही उठा लखनपाल वहीँ आ पहुंचा और कड़े स्वर में बोला -'सुख्बीरे कित्ती बेर टोका था तुझे ...लौंडिया को दाब के रख ...जवान छोरी .जींस पहरेगी ..फून रखेगी ...और तो और मोटर साईकिल पे फिरेगी ..लौंडा बन के .टेम देखा है तूने ?साँझ होने आ गयी ..इब तक न आई ..मेरा बबलू भी फंस गया उसके साथ ...अच्छा सोच्चा मैंने साथ साथ आ जाया करेंगें सकूल से ..पांच किलोमीटर का रास्ता .मेरे लौंडे के साथ रहने से तेरी लौंडिया की हिफाज़त भी हो जावेगी .तू इतने इत्मीनान से क्योकर बैठा ?कोई फून आया था के ?भाग न गयी हो किसी की गैल ?तावली कर तावली...''लखनपाल की बात पर सुखबीर ठहाका लगाकर हंस पड़ा और उसे झिड़कते हुए बोला -''बक बक पूरी होगी तेरी या ओर भी बकेगा ?मेरी लौंडिया ना भागी किसी की गैल .. तेरे लौंडे के कारण हो गया वहां सकूल में बबाल .उसने किसी नेता की लौडियां छेड़ दी ..फून से फोटू खीन्छ लिया .मेरी लौंडिया ने संभाला सारा मामला .उस लड़की को समझाया तब मानी वो ...अरनी पड़ गए थे लेने के देने .सब फून पे बताया मेरी लौंडिया ने .इब आने ही वाले . लखनपाल इब लौंडिया नी लौंडों को संभालो .सवरे बोत बिगड़ गए .''लखनपाल ये सुनकर ''आन दे आज हरामजादे कू... फून ना फोड़ दिया उसका तो मेरा नाम लखनपाल नी !!'' कहता हुआ खिसियाकर वहां से खिसक लिया .
शिखा कौशिक ''नूतन''
5 टिप्पणियां:
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको .
अर्थात .... सोचिये जब साथ साथ कोएज्यूकेशन में पढते हुए फोन से लोंडे इतना बवाल कर सकते हैं तो लोंडियाँ करेंगीं तो क्या होगा ...
सही कहा पहले लौंडे को ही संभाल लो बहुत सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति बधाई
वाह..!
बहुत बढ़िया बात कही आपने!
बहुत बढ़िया और सच्ची बात ....!
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