बुधवार, 28 नवंबर 2012

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा



'...जिज्जी बाहर निकाल उस मुसलमानी को .!!!'  रमा के घर के बाहर खड़ी भीड़ में से आवाज़ आई .आवाज़ में ऐसा वहशीपन था कि दिल दहल जाये .रमा  ने साडी का पल्ला सिर पर ढका और घर के किवाड़ खोलकर दरवाजे के बीचोबीच खड़ी हो गयी .नज़ारा बहुत खौफनाक था .भीड़ में बबलू का सिर फटा  हुआ था और राजू की कमीज़ फटी हुई थी .खून से सने कपड़ों में खड़ा सोनू ही चीख चीख कर रमा से कह रहा था ''....हरामजादों ने मेरी बहन की अस्मत रौंद डाली ...मैं भी नहीं छोडूंगा इसको ....!!!''रमा  का  चेहरा सख्त हो गया .वो फौलाद से कड़क स्वर में बोली - ''मैं उस लड़की को तुम्हारे  हवाले नहीं करूंगी !!! उसकी अस्मत से खेलकर तुम्हारी बहन की इज्ज़त वापस नहीं आ जाएगी .किसी और की अस्मत लूटकर तुम्हारी बहन की अस्मत वापस मिल सकती है तो ...आओ ..लो मैं खड़ी हूँ ...बढ़ो और .....'' ''जिज्जी !!!!!'' सोनू चीख पड़ा और आकर रमा के पैरों में गिर पड़ा .सारी भीड़ तितर-बितर हो गयी .सोनू को कुछ लोग उठाकर अस्पताल ले गए .रमा पलट कर घर में ज्यों ही घुसी घर में किवाड़ की ओट में छिपी फाटे कपड़ों से बदन छिपती युवती उसके पैरों में गिर पड़ी .फफक फफक कर रोती हुई वो बोली -'' आप न होती तो मेरे जिस्म को ये सारी भीड़ नोंच डालती .मैं कहीं का न रहती !'.रमा ने प्यार से उसे उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया .और कोमल बोली में धैर्य   बंधाते हुए बोली -लाडो डर मत !! धार्मिक उन्मादों में कितनी ही  बहन बेटियों की अस्मत मुझ जैसी औरतों ने बचाई है क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

6 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति .शिखा जी चमत्कार भरा है आपकी प्रस्तुति में बिलकुल आँखों के समक्ष ला देती है स्थिति को. कमाल ही है आपकी लेखनी .आपकी लेखन क्षमता को सलाम

kavita verma ने कहा…

bhav poorn abhivyakti...dharmik unmad me choor samaj ke muh par karara tamacha...abhar

देवदत्त प्रसून ने कहा…

'चिकनाहाहट'हद से ज्यादह है, पाँव फिसलेगा ज़रूर |बदलाव' लेगा,लेगा 'अपना हक़'लेगा ज़रूर' ||

nayee dunia ने कहा…

sach me ..! aurt kattr nahi hoti , bahut badhiya

Madhuresh ने कहा…

पूर्ण सहमत हूँ ... बहुत अच्छे आलेख मिले पढने को इस ब्लॉग पे .. सराहनीय !
मधुरेश

दिगम्बर नासवा ने कहा…

तभी तो नारी मन को कोमल कहा गया है ... जो सच ही बिलकुल ...