- शूर्पणखा काव्य उपन्यास----पूर्वा पर ....
- शूर्पणखा काव्य उपन्यास-- नारी विमर्श पर अगीत विधा खंड काव्य .....रचयिता -डा श्याम गुप्त
समय के जो कुछ कुपात्र उदाहरण हैं उनके जीवन-व्यवहार,मानवीय भूलों व कमजोरियों के साथ तत्कालीन समाज की भी जो परिस्थिति वश भूलें हुईं जिनके कारण वे कुपात्र बने , यदि उन विभन्न कारणों व परिस्थितियों का सामाजिक व वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण किया जाय तो वे मानवीय भूलें जिन पर मानव का वश चलता है उनका निराकरण करके बुराई का मार्ग कम व अच्छाई की राह प्रशस्त की जा सकती है | इसी से मानव प्रगति का रास्ता बनता है | यही बिचार बिंदु इस कृति 'शूर्पणखा' के प्रणयन का उद्देश्य है |
स्त्री के नैतिक पतन में समाज, देश, राष्ट्र,संस्कृति व समस्त मानवता के पतन की गाथा निहित रहती है | स्त्री के नैतिक पतन में पुरुषों, परिवार,समाज एवं स्वयं स्त्री-पुरुष के नैतिक बल की कमी की क्या क्या भूमिकाएं होती हैं? कोई क्यों बुरा बन जाता है ? स्वयं स्त्री, पुरुष, समाज, राज्य व धर्म के क्या कर्तव्य हैं ताकि नैतिकता एवं सामाजिक समन्वयता बनी रहे , बुराई कम हो | स्त्री शिक्षा का क्या महत्त्व है? इन्ही सब यक्ष प्रश्नों के विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक तथ्य प्रस्तुत करती है यह कृति "शूर्पणखा" ; जिसकी नायिका राम कथा के दो महत्वपूर्ण व निर्णायक पात्रों व खल नायिकाओं में से एक है , महानायक रावण की भगिनी --शूर्पणखा | अगीत विधा के षटपदी छंदों में निबद्ध यह कृति-वन्दना,विनय व पूर्वा पर शीर्षकों के साथ ९ सर्गों में रचित है |
समय के जो कुछ कुपात्र उदाहरण हैं उनके जीवन-व्यवहार,मानवीय भूलों व कमजोरियों के साथ तत्कालीन समाज की भी जो परिस्थिति वश भूलें हुईं जिनके कारण वे कुपात्र बने , यदि उन विभन्न कारणों व परिस्थितियों का सामाजिक व वैज्ञानिक आधार पर विश्लेषण किया जाय तो वे मानवीय भूलें जिन पर मानव का वश चलता है उनका निराकरण करके बुराई का मार्ग कम व अच्छाई की राह प्रशस्त की जा सकती है | इसी से मानव प्रगति का रास्ता बनता है | यही बिचार बिंदु इस कृति 'शूर्पणखा' के प्रणयन का उद्देश्य है |
स्त्री के नैतिक पतन में समाज, देश, राष्ट्र,संस्कृति व समस्त मानवता के पतन की गाथा निहित रहती है | स्त्री के नैतिक पतन में पुरुषों, परिवार,समाज एवं स्वयं स्त्री-पुरुष के नैतिक बल की कमी की क्या क्या भूमिकाएं होती हैं? कोई क्यों बुरा बन जाता है ? स्वयं स्त्री, पुरुष, समाज, राज्य व धर्म के क्या कर्तव्य हैं ताकि नैतिकता एवं सामाजिक समन्वयता बनी रहे , बुराई कम हो | स्त्री शिक्षा का क्या महत्त्व है? इन्ही सब यक्ष प्रश्नों के विश्लेषणात्मक व व्याख्यात्मक तथ्य प्रस्तुत करती है यह कृति "शूर्पणखा" ; जिसकी नायिका राम कथा के दो महत्वपूर्ण व निर्णायक पात्रों व खल नायिकाओं में से एक है , महानायक रावण की भगिनी --शूर्पणखा | अगीत विधा के षटपदी छंदों में निबद्ध यह कृति-वन्दना,विनय व पूर्वा पर शीर्षकों के साथ ९ सर्गों में रचित है |
शूर्पणखा काव्य उपन्यास ...पूर्वा पर ...इस अध्याय में विषय का पूर्व रूप कि शूर्पणखा की क्या विडम्बना थी एवं कोई भी नारी या व्यक्ति क्यों बुरा बन जाता है के भाव-भूमि की चर्चा की गयी है ...
१.
'बिधि वश सुजन कुसंगति परहीं,
फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं '|१
सच ही है कि आत्मतत्व और,
जीव सदा निर्मल होता है |
शास्त्र मान्यता यही रही है,
व्यक्ति तो सूजन ही होता है ||
२.
हो विधि बाम विविध कारण से,
सामाजिक पारिवारिक स्थिति,
राजनीति की कठिन परिस्थिति,
पूर्व जन्म के संचित कर्म व्,
सुदृढ़ नैतिक शक्ति की कमी,
से कुकर्म करने लगता है ||
३.
तब वह बन जाता है दुर्जन,
फनि मनि सम निज गुन दिखलाता |
यद्यपि अन्तःकरण में यही,
सदा जानता, अनुभव करता ;
कि वह ही है असत मार्ग पर,
सत् का मार्ग लुभाता रहता ||
४.
और समय आने पर कहता,
'तौ मैं जाय वैर हठि करिहौं ',२
इच्छा अंतर्मन में रहती,
प्रभु के वाणों से तर जाऊं |
सत्य रूप है यही व्यक्ति का,
शिवं सुन्दरम आत्म-तत्व यह ||
५.
इसी तथ्य को रखे ध्यान में,
घृणा बुरे से ही न करें बस,
अपितु बुराई मात्र से बचें;
और उसी का नाश करें हम|
मिटे बुराई यदि समाज से,
बुरे पात्र उत्पन्न न होंगे ||
६.
समय आगया न्याय करें हम,
जो बहुज्ञात कुपात्र समय के |
यदि झांकें उनके अंतर में,
और जानलें कारण उनके,
विविध कुकर्म क्रिया कलाप के ;
ताकि बच सकें उन कर्मों से ||
७.
रोक सकें उन कुरीतियों को,
स्थितियों को, परिस्थितियों को;
उत्पन्न व विकसित होने से ,
देश समाज राष्ट्र में जग में |
ताकि सुजन,दुर्जन न बन सकें,
मिटे बुराई भाव जगत से ||
८.
यद्यपि इसके लिए व्यक्ति वह,
स्वयं ही है उत्तरदायी |
है दायित्व पर राज्य, धर्म का,
साहित्यिक बौद्धिक जग का भी |
सम्मानित, संभ्रांत जनों का ,
होता है दायित्व अधिक ही ||
९.
अति भौतिक अभिलाषा से ही ,
मनुज दूर होजाता प्रभु से |
श्रृद्धा औ विश्वास न रहता ,
अनासक्ति का भाव न रहता |
घिर जाता है लोभ-मोह में ,
नैतिक बल भी गिर जाता है ||
१०.
नैतिक बल जिसमें होता है ,
हर प्रतिकूल परिस्थिति में वह;
सदा सत्य पर अटल रहेगा |
किन्तु भोग-सुख लिप्त सदा जो,
दास परिस्थिति का बन जाता,
निज गुन, दुष्ट कर्म दिखलाता |
११.
यह विचार ही सार भाव है,
इस कृति की अंतर्गाथा का;
कृति प्रणयन उद्देश्य यही है |
भाव सफल तब ही होता है,
ईश्वर की हो कृपा, अन्यथा-
विधि-वश३ पर बस किसका चलता ||
१२.
शूर्पणखा भी एक पात्र है,
जग विजयी रावण की भगिनी |
बनी कुपात्र परिस्थितियों वश ,
विधवा किया स्वयं भ्राता ने ,
राज्य-मोह, पद लिप्सा कारण;
पति रावण विरोध पथ पर था ||
१३.
यद्यपि वह विदुषी नारी थी,
शूर्प-मनोहारी नख-शिख थे |
पर अन्याय अनीति व्यवस्था,
के प्रति, घृणा-द्वेष के कारण |
अनाचार में लिप्त हुई थी,
भाव राक्षसी अपनाया था ||
१४.
सुख विचरण, स्वच्छंद आचरण,
असुरवंश की रीति नीति युत ;
नारी की ही प्रतिकृति थी वह |
भोगी संस्कृति में नर नारी ,
शारीरिक, सौंदर्य-विलास को;
ही, हैं जीवन भाव मानते ||
१५.
परित्यक्ता पतिहीना नारी ,
अधिक आयु जो रहे कुमारी |
पति पितु भ्राता अत्याचारी ,
पति विदेश यात्रा रत रहता |
भोग रीति-नीति में पली हो ,
अनुचित राह शीघ्र अपनाती ||
१६.
जनस्थान४ की स्वामिनी थी वह,
था अधिकार दिया रावण ने |
वही बनी थी प्रमुख भूमिका,
लंकापति के पतन का कारण |
विडम्बना थी शूर्पणखा की ,
अथवा विधि का लेख यही था ||
कुंजिका ---१ व २ ... तुलसी रामचरित मानस से ....३ = ईश्वर इच्छा .... ४= विन्ध्याचल वन-प्रदेश का दक्षिण में समुद्र तक का विभिन्न जनपदों में बंटा आबादी वाला प्रदेश |
---क्रमश -- सर्ग एक... चित्रकूट ..... अगली पोस्ट में
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
त्यौहारों की शृंखला में धनतेरस, दीपावली, गोवर्धनपूजा और भाईदूज का हार्दिक शुभकामनाएँ!
धनयवाद शास्त्रीजी ....आभार ... आपको भी धनतेरस एवं दीपावली पर्व समूह की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आपको दीपावली की शुभकामनाएं| ग्रीटिंग देखने के लिए कलिक करें |
तीन लोग आप का मोबाईल नंबर मांग रहे थे, लेकिन !
धन्यवाद विनीत जी ... आभार जो आपने शान्ति, सुख, समृद्धि इन तीनों को सदेह हमारे यहाँ आने का कार्यक्रम बना दिया ..
एक टिप्पणी भेजें