इन्द्रधनुष-----स्त्री-पुरुष विमर्श पर..... डा श्याम गुप्त का का उपन्यास ....
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’ इन्द्रधनुष’ ------ स्त्री-पुरुष विमर्श पर एक नवीन दृष्टि प्रदायक उपन्यास (शीघ्र प्रकाश्य ....)....पिछले अंक से क्रमश:......अंक -दो
सुमित्रा कुलकर्णी, कर्नल रामदास की इकलौती पुत्री, मेडीकल कालिज में मेरी सहपाठी,बीच पार्टनर, सीट पार्टनर; सौम्य, सुन्दर, साहसी, निडर, वाकपटु, स्मार्ट, तेज-तर्रार । लगभग सभी विषयों में पारंगत; स्वतंत्र, स्पष्ट व् खुले विचारों वाली, वर्तमान में जीने वाली, मेरी परम मित्र। हमारी प्रथम मुलाक़ात कुछ यूं हुई ।
चिकित्सा महाविद्यालय में प्रथम वर्ष, रेगिंग जोर-शोर से जारी थी हम सभी नए छात्र क्लास रूम में बैठे थे , प्रोफ. सिंह के इंतजार में । अचानक द्वितीय वर्ष के सीनियर छात्र कक्ष में घुस आये और रेगिंग प्रारम्भ । आदेश हुआ --सभी लडके जल्दी से अपनी क्लास की न. १ से लेकर न. १० तक ब्यूटी-टापर्स लड़कियों के नाम की लिस्ट लिख कर दें । हाँ -कारण भी बताएं । जों जितनी देर करेगा उतने ही थप्पड़ों का हकदार होगा ।
अभी तक तो क्लास में लड़कों के नाम भी ठीक तरह से ज्ञात नहीं होपाये थे, लड़कियों की तो बात ही क्या । घबराहट में उपस्थिति रजिस्टर में मेरे से दो स्थान आगे सुमित्रा नाम आता था वही लिख दिया । आगे क्या होना है इसका तो किसी को ज्ञान ही कहाँ था ।
सभी कागजों को सरसरी तौर पर देखकर सीनियर छात्र ने एक कागज़ निकाल कर हंसते हुए कहा..... ' कौन है यह, सिर्फ एक ही नाम, एक मैं और एक तू ,..अच्छा, श्री कृष्ण गोपाल गर्ग जी ...आइये डाक्टर साहब , पढ़िए जोर से क्या लिखा है आपने ।'
सबको काटो तो खून नहीं । खैर, डरते-डरते मैंने सुमित्रा कुलकर्णी का नाम पढ़ा और कारण की कोई और नाम याद ही नहीं है । सारी क्लास ठहाकों से गूँज उठी । सुमित्रा ने आश्चर्य मिश्रित क्रोध से मेरी और देखा तो मैंने हाथ जोड़ दिए । क्लास में फिर ठहाके गूंजे । सजा दीगयी -परसों तक सारी लड़कियों के नाम लिख कर देने हैं और गुण भी । सोमवार ७.३० ए एम, यहीं पर ...साथ में 'डिसेक्टर' के पहले पृष्ठ को भी रट कर सुनाना है..शब्द व शब्द ।
' रेगिंग का वास्तविक उद्देश्य शिक्षकों, छात्रों, सीनियर व जूनियर साथियों , महिला-पुरुष साथियों में आपसी संवाद, विचार-विनिमय, सहृदयता, अंतरंगता का माहौल बनाना है ताकि पांच वर्ष के कठोर अध्ययन- साधना का क्रम व कठिन परिश्रम का लम्बा समय तनाव रहित व सामान्य रहे । पूरा विद्यालय एक परिवार की भाँति रहे। आपसी ताल मेल द्वारा ज्ञान, व्यवसायिक ज्ञान व व्यवहारिक ज्ञान का तालमेल बने, जो अभी तक सिर्फ पुस्तकीय -एकेडेमिक ज्ञान तक सीमित था। इसका उद्देश्य अंतर्मुखी व्यक्तित्व को बहिर्मुखी बनाना भी है । यह चिकित्सा जैसे सामाजिक -सेवा व्यवसाय क्षेत्र व व्यवहार जगत में उतरने के लिए आवश्यक है । सेवा, सौहार्द, सदाशयता सहृदयता, मानवीयता आदि भाव छात्रों के अन्दर उत्पन्न हों तथा अन्दर छिपी हुई प्रतिभा , अतिरिक्त सर्जनात्मकता को बाहर लाना भी इसका उद्देश्य है ।'......नवागंतुक छात्रों की स्वागत-समारोह या रेगिंग पार्टी के अवसर पर चिकित्सा महाविद्यालय के प्रिंसीपल -डाक्टर के सी मेहता..एम एस, ऍफ़ आर सी एस (लन्दन) ,ऍफ़ आर सी एस ( एडिनबरा )...रेगिंग पर अपना अभिभाषण प्रस्तुत करते हुए उसकी उपादेयता व आवश्यकता पर प्रकाश डाल रहे थे , जिसका जोर से करतल-ध्वनि से स्वागत किया गया ।
रेगिंग पार्टी प्रथम वर्ष के नवागंतुक छात्रों को सीनियर छात्रों द्वारा दी जाती है । तत्पश्चात रेगिंग को पूरी तरह समाप्त समझा जाता है ।फिर प्रारम्भ होती है अध्ययन-अध्यापन की कठोर साधना, लगभग प्रत्येक वरिष्ठ क्षात्रों व अध्यापकों के सहयोग से ।
जूनियर व सीनियर क्षात्रों द्वारा विभिन्न सांस्कृतिक आयोजन-कार्यक्रमों के पश्चात रात्रिभोज के साथ समारोह समाप्त हुआ तो सभी छात्र आपस में हंसी-मज़ाक के साथ-साथ आने वाले पांच वर्षों के भावी जीवन के विविध तानों-बानों के भाव -स्वप्नों में उतराते हुए चल दिए ।
मैंने चलते हुए सुमित्रा से कहा, 'सुमित्रा जी, आपका गायन वास्तव में सुन्दर था, बहुत-सुन्दर ।
'आपको नाम या होगया मेरा ?' उसने गर्दन टेडी करके पूछा ।
'एस, ऑफकोर्स ', मैंने उसे घूरते हुए पूछा , क्यों ?
कुछ नहीं , वह मुस्कुराती हुई चल दी ।
* * ** **
फिजियो-लेब में सुमित्रा मेंढक आगे बढाते हुए बोली, कृष्ण जी ये मेंढक ज़रा 'पिथ' कर देंगे ।
क्यों, क्या हुआ। मैंने हाथ आगे बढाते हुए पूछा ?
अभी ज़िंदा है, और बार-बार फिसल जाता है ।
तो क्या मरे को 'पिथ' किया जाना चाहिए ? मैंने मेंढक को पकड़ते हुए कहा, 'ब्यूटीफुल' ।
कौन? क्या ! उसने चौंक कर पूछा ।
ऑफकोर्स, मेंढक, मैंने कहा, देखो कितना सुन्दर है, है न ?
आपके जैसा है, वह चिढ कर बोली ।
मैं तुम्हें सुन्दर लगता हूँ ?
नहीं, मेंढक... वह मुस्कुराई ।
अच्छा, तभी यह इतना सुन्दर है, मैंने नहले पर दहला जड़ा । देखो इसकी सुन्दर टांगें चीन में बड़े चाव से खाई जाती हैं ।
इतनी अच्छी लगती हैं तो पैक करके रखदूं, ले जाने के लिए; उसने शरारत से कहा ।
टांगें तो तुम्हारी भी अच्छी हैं, सुन्दर ....क्या उन्हें भी.....।
शट अप, क्या बकवास है ।
जो दिख रहा है वही कहा रहा हूँ ।
हूँ ! वह पैरों की तरफ सलवार व जूते देखने लगी ।
' सब दिखता है, आर-पार, एक्स रे निगाहें होनी चाहिए ।', मैंने सीरियस होकर उसे ऊपर से नीचे तक घूरकर देखते हुए कहा । वह हड़बड़ा कर दुपट्टा सीने पर सम्हालती हुई एप्रन के बटन बंद करने लगी । मैं हंसने लगा तो सुमित्रा सर पकड़ कर स्टूल पर बैठ गयी । बोली ..
चुप करो, मेरा मेंढक बापस करो, फेल कराना है क्या ?
'लो हाज़िर है तुम्हारा मेंढक' मैंने एक कदम उसकी तरफ आगे बढ़कर मेंढक देते हुए कहा,'क़र्ज़ रहा'।
वह चुपचाप अपना प्रेक्टीकल करने लगी ।
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रात्रि के लगभग नौ बजे जब लाइब्रेरी से 'स्वच्छ व पेय जल' एवं दुग्ध की संरचना '...पर सिर मार कर बाहर आया तो सुमित्रा आगे-आगे चली जारही थी, अकेली । मैंने उसके साथ आकर चलते चलते पूछा ...'अरे! इतनी रात कहाँ से ?'
जहां से आप ।
ओह! बीच में रास्ता सुनसान है, आपको डर नहीं लगेगा, क्या हास्टल छोड़ दूं ?
अजीब हैं, डर की क्या बात है ? वह बोली ।
ओके, गुड नाईट , बाय, मैंने कहा और आगे बढ़ गया ।
'थैंक्स गाड ' जल्दी पीछा छूटा, वह बड़-बडाई ।
पर सात कदम तो चल ही लिए हैं , मैंने मुड़कर मुस्कुराते हुए कहा ।
क्या मतलब?', उसने सर उठाकर देखा ।
बाय, मैंने चलते हुए कहा ।
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स्पोर्ट्स वीक के अंतिम दिन छात्राओं के लिए 'मटका दौड़ ' व छात्रों के लिए 'गधा दौड़' का आयोजन था । लड़कियों को रंग से भरा हुआ घडा सिर पर रखकर दौड़ना था । या तो भीगने के डर से धीरे धीरे चलकर रेस हार जाएँ, या तेजी से दौड़कर सारे कपडे रंग से भिगोलें । कपडे भी सफ़ेद ही होने चाहिए ।
सुमित्रा तेजी से दौड़कर यथास्थान पहुँची तो कपडे पूरी तरह से लाल रंग से सराबोर थे और शरीर से चिपक कर रह गए थे । चेहरा पूरी तरह से लाल रंग से रंगा हुआ था। कम या अधिक सभी लड़कियों का यही हाल था मानो हरे, पीले, लाल रंग में डुबकी लगा कर आयी हों । कुछ तो बीच में ही घडा फैंक कर भाग खड़ी हुईं । मैंने अचानक सुमित्रा के सामने आकर कहा , ' क्या जीतने के चक्कर में पूरा भीगने के आवश्यकता थी ?'
वह अचकचा गयी, फिर बोली, आप क्या जानें ...इस तरह भीगने में कितना आनंद आता है, भीगने का भीगना, जीत प्रशंसा व् पुरस्कार अलग से बोनस में । दुगुने लाभ के बात है । समझे ? तन से मन से रंग जाने को जी करता है ।
और आप ही कौन से कम एक्साईटेड थे, वह कहने लगी, ' गधे को ऐसे दौड़ा रहे थे जैसे खानदानी गधा -सवारी गांठने वाले हों । और गधा भी क्या खानदानी गधा निकला -जिद्दी ..कि मैं तो ऐसे गधे के साथ नहीं दौड़ता । और न दौड़ा तो न दौड़ा ।
मैं उसे घूरकर देखने लगा तो मुस्कुराती हुई दौड़कर लड़कियों के झुण्ड में गायब होगई ।
..............क्रमश : अंक तीन ....अगली पोस्ट में ......
3 टिप्पणियां:
badhai ......bahut achchi lgi aapki prastuti.
धन्यवाद...निशा जी.
सुन्दर प्रस्तुति ||
आपका आभार ||
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