जब कोई टोकता है
इतनी उछल कूद
मत मचाया कर
तू लड़की है
जरा तो तमीज़ सीख ले
क्या लडको की तरह
घूमती -फिरती है
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
जब कोई कहता है
तू लड़की है
अब बड़ी हो गयी है
क्या गुड़ियों से खेलती
रहती है ?
घर के काम काज में
हाथ बंटाया कर
सच कहू
मुझे अच्छा नहीं लगता !
जब कोई समझाता है
माँ को
ध्यान रखा करो इसका
जवान हो गयी है
कंही कुछ ऊँच -नीच
न कर बैठे
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
पिता जी जब हाथ जोड़कर
सिर-कंधें झुकाकर
लड़के वालों से करते
हैं मेरे विवाह की बात
हैसियत से ज्यादा दहेज़
देने को हो जाते है तैयार
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
ससुराल में जब
सुनती हूँ ताने
क्या दिया तेरे बाप ने ?
माँ ने कुछ सलीका नहीं सिखाया ?
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
बेटा जन्मा ...थाल बजे
उत्सव मनाया गया
बेटी जन्मी ...मातम
सा छा गया
बेटे को दुलारा गया
बेटी को दुत्कारा गया
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
मेरी बेटी भी
उसकी होने वाली बेटी भी
क्या यही सब सहती रहेंगी
बस यही कहती रहेंगी ?
सच कहूँ
मुझे अच्छा नहीं लगता !
4 टिप्पणियां:
सुन्दर विचार
sachmuch achchhaa naheen lagataa...
सार्थक रचना.
satik rachana
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