नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !
''हू ला ला'' पर थिरके कदम
''शीला-मुन्नी'' पर निकले है दम
नैतिकता का है ये पतन
दूषित हो गया अंतर्मन
ओ फनकारों करो कुछ शर्म
शालीन नगमों का कर लो सृजन
फिर से सजा दो लबो पर हर दम
वन्देमातरम .....वन्देमातरम !
नारी का मान घटाओ नहीं
प्राणी है वस्तु बनाओ नहीं
तराने रचो तो रचो सोचकर
शक्ति है नारी तमाशा नहीं
नारी की महिमा का फहरे परचम
फिर से सजा दो ..........
नारी है देवी पहेली नहीं
दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं
इसका सम्मान जो करते नहीं
फनकारी के काबिल नहीं
बेहतर है रख दें वे अपनी कलम
फिर से सजा दो ..............
शिखा कौशिक
[विख्यात]
18 टिप्पणियां:
बात तो सही कही है आपने ..पर सिनेमा तो सिर्फ मनोरंजन की दृष्टि से देखा जाए तो ही अच्छा ..
kalamdaan.blogspot.in
सारगर्भित लेख है |आखिर नारी को एक सम्मानीय स्थान क्यों नहीं दिया जा रहा है ?या तो उसे देवी बना दिया जाता है या फिर ................
लेख अच्छा है...
मगर नारियों के पास हक़ है..कम से कम ये शीला/मुन्नी/चिकनी चमेली के पास तो है ही..कि वे खुद नकार दें ऐसे रोल....
पुराने समय की तरह पुरुष ही निभाएं ये किरदार...
जिन नारियों के पास option है वो ही अधिक ज़िम्मेदार हैं...जो मजबूर हैं उनके लिए क्या कहूँ..
सादर.
बेहतर है रख दें वे अपनी कलम ....क्या बात है शिखा जी....सच है एसे लोगों को तो चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जाना चाहिये...
----और मीडिया...देखने-गाने वाली जनता...इन्हें सेलीब्रिटी कहने वाले दलाल...उन्हें तो...
---रितु जी गलत है...सिनेमा या कोई भी मनोरन्जन का ज़रिया सिर्फ़ मनोरन्जन के लिये नहीं होता अपितु उसमें समाज-शास्त्र जुडा होता है...व्यष्टि व समष्टि पर प्रभाव जुडा होता है...अन्यथा किसी के लिये ..वैश्याव्रत्ति ...सडक पर नन्गे घूमना, हत्या करना , बलात्कार करना भी मनोरन्जन हो सकता है...
अच्छी फ़टकार लगाई ।
हम भारतीयों ने ... स्वं ही सीता को चमेली बना दीया है
मेरे भी ब्लॉग पर आकर मार्गदर्शन करे
मैं सहमत हूँ.... ये गीत नहीं हैं... शाब्दिक बलात्कार है...
बाजारवाद के दौर ने ये कमाल किया है....
बढिया रचना।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है। चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......
बहुत अच्छा लिखा है ....
एक प्रबल सोच देती रचना ...
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !
सुंदर प्रस्तुति .....
बहुत पुरजोर तरीके से आपने बात को रखा है. बधाई इस विषय को उठाने के लिये.
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
सटीक बात काही है।
सादर
विचारणीय रचना ...
ekdum satik kaha aapne....
सारगर्भित रचना ,बधाई .बहुत सही कहा आज ऐसे गीतों के चलते ही युवा मन भटक रहा है .सिनेमा ,साहित्य ,मीडिया सभी का दायित्व है कि ऐसी रचनाओ को जगह न बनाने दे .
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